मुम्बई,लखनऊ आदि शहरों से होता हुआ देवबन्द पहुंचा दिल्ली का शाहीन बाग!गैर ज़रूरी क़ानून सीएए,एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ ईदगाह मैदान में महिलाओं का धरना-प्रदर्शन जारी है. मोदी, योगी सरकार को ललकारते हुए महिलाओं ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं से नरेंद्र मोदी सरकार बहुत प्यार दिखाती थी जो महज़ दिखावा था क्योंकि पिछले एक महीने से ज़्यादा हो गया है महिलाओं को सड़कों पर संघर्ष करते हुए लेकिन उनका फ़र्ज़ी प्यार भी दिखाई नहीं दिया है.
उनकी पार्टी के बद ज़बान प्रवक्ता इस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, जो एक इंसान नहीं कह सकता सिर्फ़ जानवर ही कह सकता है.
पूरी रात होती रही तेज बारिश भी महिलाओं के मज़बूत इरादों को डिगा नहीं पाई, कड़कड़ाती हाड़ कंपा देने वाली ठंड भी देवबन्द की महिलाओं के मज़बूत इरादों को रोक नहीं पायी, देवबन्द के ईदगाह मैदान में मज़बूती से डटी रही.
रात दो बजे के बाद पुलिस के अफ़सरों ने महिलाओं के बीच जाकर उनसे धरने को ख़त्म करने की पुरज़ोर अपील की लेकिन महिलाओं ने पुलिस के अफ़सरों को साफ़ कह दिया कि जब तक नरेंद्र मोदी सरकार ग़ैर ज़रूरी क़ानून सीएए वापिस नहीं लेती तब तक हमारा शान्ति पूर्ण गांधीवादी आंदोलन चलता रहेगा.
रात दो बजे महिलाओं के बीच एसपी ग्रामीण गए जिन्होंने मौसम का हवाला देकर महिलाओं से घर जाने के लिए कहा लेकिन महिलाओं के सवालों का एसपी ग्रामीण विद्या सागर मिश्र के पास कोई जवाब नहीं था महिलाओं का कहना था कि चलिए हम आपकी बात मान लेते हैं कि हम घर चले जाए क्या हमें आप आश्वस्त कर सकते हो कि सीएए,एनआरसी और एनपीआर में कोई संघ का एजेंडा लागू नहीं होगा. क्या हमें आप ये आश्वस्त कर सकते हैं? आसाम में हुई एनआरसी से हमारे 19 लाख हिन्दुस्तानी भाइयों को डिटेंशन सेंटरों में नहीं डाला जाएगा इसमें कोई हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई नहीं होगा? नहीं न? इसलिए हम यहाँ से एक इंच पीछे हटने को तैयार नहीं है.
जैसे देश का गृहमंत्री कह रहे हैं कि सरकार सीएए पर एक इंच पीछे नहीं हटेगी, ऐसे ही हम भी CAA वापिस लेने तक पीछे नहीं हटेंगे.
पुलिस और महिलाओं के बीच रात दो बजे से वार्ताओं का सिलसिला कई दौर में चलते-चलते सुबह हो गई लेकिन कोई हल नहीं निकला. इस वार्ता में पूर्व विधायक माविया अली भी मौजूद रहे. एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु भी रातभर थाना देवबन्द में मौजूद रहे.
दिनभर लगातार बढ़ती जा रही थी महिलाओं की भीड़, जैसे-जैसे महिलाओं की भीड़ बढ़ रही थी तो पुलिस के अफ़सरों की साँसें फुलने लगती थी. ज़्यादातर महिलाएं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के मर्द रजाई में महिलाएं सड़कों पर वाले बयान पर भड़की हुई थी जिसकी महिलाओं ने कड़े शब्दों में निंदा की.
देखने वालों का तो कहना है कि उनको मंच से नीचे खींचा गया तब जाकर उतरे नहीं तो उतर ही नहीं रहे थे. वहां के लोगों का कहना है कि मसूद परिवार अब तक सहारनपुर जनपद में सीएए के विरोध में कोई कार्यक्रम करने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए वह कहीं कार्यक्रम होने पर पहुंच जाते हैं. बोलने के लिए इतना बड़ा सहारनपुर है, कहीं भी कार्यक्रम कर विरोध प्रदर्शन कर सकता है. लेकिन पुलिस की लिस्ट में अपना नाम लिखवाने के लिए ऐसा नहीं कर पा रहा है और दूसरों के कार्यक्रम में बिना बुलाए पहुंच जा रहे हैं. जब वहां विरोध हुआ तो भागते नज़र आए.
अब समझ आया इस तरह का आंदोलन करना या सोचना कितना मुश्किल होता है. शाहीन बाग या अन्य बाग किस तरह चल रहे होंगे इसका अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है. लेकिन फिर भी मज़बूत इरादे इस तरह की या फिर किसी और तरह की दुश्वारियों को झेलते हुए अपने काम को अंजाम देते हैं.
देवबन्द लखनऊ या मुम्बई जहां-जहां भी सीएए,एनआरसी और एनपीआर को लेकर आंदोलन हो रहे हैं वहां के लोग अपनी एकता का सबूत दें और इस आंदोलन को गांधीवादी तरीक़े से चलाए कोई बुराई नहीं है. लेकिन इसको हिंसात्मक नहीं होने दे तभी कहा जा सकता है कि इतना बड़ा आंदोलन हुआ और कोई हिंसा नहीं हुई. यह भी इस आंदोलन की सफलता होगी. हाँ, अगर सरकार ही झगड़ा कराने पर उतारू हो जाए उसका कोई इलाज नहीं है. वैसे देखा जाए तो देशभर में कहीं भी आंदोलन करने वाले आंदोलकारी यही चाह रहे हैं कि आंदोलन गांधीवादी तरीक़े से ही चले और इसमें कुछ एक घटनाओं को छोड़ दें तो आंदोलन सही ही चल रहा है. जहां भी कुछ हुआ है वहां की सरकार ने ऐसा चाहा तब ऐसा हुआ, वर्ना नहीं. देवबन्द के बाद अब अगला आंदोलन रूपी बाग कहां बनेगा? क्या देश में अभी और ऐसे बाग बनेंगे या बस इन्हीं बागों के सामने गुटने टेक देगी नरेन्द्र मोदी सरकार यह एक सवाल बना हुआ है.