मेरे जूते की नोक पर ऐसी पत्रकारिता–रुक्मिणी सेन
…फ़र्ज़ कीजिए ‘आज तक’ के मालिक अरुण पुरी या संपादक सुप्रिय प्रसाद का बच्चा लापता हो जाए ! कई दिनों तक पता न चले और उनके दुख में दुखी तमाम पत्रकार थाने का घेराव कर दें और कुछ घंटे बाद जब यह घेराव ख़त्म हो तो किसी चैनल में हेडलाइन चले— लापता पर जारी ड्रामा ख़त्म !
यक़ीनन ऐसी कल्पना नहीं की जानी चाहिए। अरुण पुरी या सुप्रिय प्रसाद के बच्चे ख़ुश रहें, आबाद रहें, फूले-फलें। लेकिन ऐसा क्यों है कि इन लोगों को अपने बच्चों के लिए तड़पते लोगों का दुख ‘ड्रामा’ लगता है। आख़िर पत्रकारिता में इस्तेमाल हो रही भाषा और संवेदना का यह स्तर हमें परेशान क्यों नहीं करता ?
मामला जेएनयू के लापता छात्र नजीब का है जिसे लेकर हुआ वीसी दफ़्तर का घेराव जब ख़त्म हुआ तो ‘आज तक’ में हेड लाइन थी— जेएनयू का बंधक ड्रामा ख़त्म।
इसे ‘ड्रामा’ कैसे कह सकता है आज तक ? और फिर क्या ख़त्म हुआ…क्या नजीब का पता चल गया ? थोड़ा ग़ुस्से में पूछती हैं रुक्मिणी सेन जो ‘आज तक’ सहित कई चैनलों में लंबे समय तक काम कर चुकी हैं। रुक्मिणी ने अपने फ़ेसबुक पर जो टिप्पणी पोस्ट की है वह चैनलों को लेकर लोगों के रुख का बयान है। रुक्मिणी लिखती हैं—
“ नजीब पर आजतक का संवेदनहीन रवैया। उसकी हेडलाइन है -जेएनयू का बंधक ड्रामा ख़त्म।
देश की राजधानी के विश्वविद्यालय का छात्र नजीब लापता है। आजतक एफआईआर लिखने में हुई देरी पर सवाल नहीं करता। उसका आमतौर पर चीखने वाला हृदय नहीं पूछता कि उस नौजवान का क्या हुआ?
आज तक इसे ‘ड्रामा’ बताता है। फिर वामपिंथियों की ‘चाल’ बताता है। एबीवीपी का नेता छात्रसंघ पर आरोप लगा रहा है कि जब तक नजीब की माँ नहीं आईं, तब तक एफआईआर नहीं लिखी गई ,यह भी कि वामपंथी उसकी ‘मामूली’ खरोचों की जाँच के लिए मेडिकल कराते हैं।
नजीब की माँ और बहन ने बताया है कि पुलिस ने एफ़आईआर लिखने में देरी की।
‘आज तक’ के अरुण पुरी और सुप्रिय प्रसाद जैसे लोग केवल स्त्रीविरोधी मर्दवादी झुंड के हिस्से नहीं हैं, उनके मन में ख़ुद के अलावा किसी के परिवार के प्रति सम्मान भी नहीं है। एक नौजवान, सत्ताधारी दल के छात्रसंगठन के लोगों से पिटने के बाद लापता है और ‘आज तक’ सत्ताधारी दल के उस बग़लबच्चे एबीवीपी के साथ खड़ा है !
मेरे जूते की नोक पर ऐसी पत्रकारिता…! सत्ताधारी दल के चमचे ! एबीवीपी के चमचे !
‘ड्रामा ख़त्म’ — क्या नजीब घर वापस आ गया ? नहीं ! पर किसे परवाह है? बच्चों का युनिवर्सिटी से उठा लिया जाना आम बात है जब तक कि वह हमारा बच्चा नहीं है !”
रुक्मिणी का ग़ुस्सा सिर्फ़ रुक्मिणी का नहीं है। ज़्यादातर लोग ऐसा ही सोच रहे हैं और चैनलों की साख रसातल में है। ‘आज तक’ चाहे तो इस पोस्ट को आईना समझ सकता है। इसमें उसे अपना गंदा होता चेहरा नज़र आ जाएगा। वरना नंबर वन तो वह है ही जैसे नंबर वन हो चुके हैं हैं दुनिया के तमाम नटवरलाल।
नीचे वह वीडियो देखिये जिसके बारे में रुक्मिणी की प्रतिक्रिया है–