“नीचता” पहले पन्ने पर, ‘लव जिहाद’ की बर्बरता को जगह नहीं !

मणिशंकर अय्यर एक दग़े हुए नेता हैं। जनाधार विहीन। फिर भी उन्होंने प्रधानमंत्री पर आपत्तिजनक टिप्पणी की तो ख़बर बनेगी ही, पर उस टिप्पणी की वजह से उनका कांग्रेस से निकाला जाना क्या सबसे बड़ी ख़बर हो सकती है, ख़ासतौर पर तब जब राजसमंद की बर्बरियत भी सामने हो जहाँ बंगाल के एक मज़दूर की हत्या लव जिहाद के नाम पर कर दी गई। हत्यारे ने बाक़ायदा हत्या का वीडियो बनाया और इसे वायरल किया। ख़ुद को हिंदुत्व के लिे क़ुर्बान बता रहे शंभुलाल नाम के इस हत्यारे की कहानी बताती है कि राजनीतिक लाभ के लिए धर्म के इस्तेमाल का समाज पर कैसा असर पड़ रहा है।

लेकिन हिंदी के अख़बारों में ‘नीचता’ का बैनर तना है। शंभुलाल के हत्यारे बनने की कहानी आमतौर पर पहले पन्ने से ग़ायब है। जहाँ है भी, वहाँ बस सिंगल कॉलम।

दुनिया के के सबसे बड़ा अख़बार होने का दावा करने वाले दैनिक जागरण को देखिए। ‘नीच बोल’ पर अय्यर के कांग्रेस के निलंबन की ख़बर लीड है। पाँच कॉलम में फैली है जिसमें प्रशांत मिश्र की त्वरित टिप्पणी भी है-कांग्रेस के पैर पर कुल्हाड़ी या कुल्हाड़ी पर पैर। हेडिंग अच्छी है, लेकिन पूरा अख़बार अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से कहाँ पैर मार रहा है, यह भी देखना होगा। अख़बार ने राजसमंद की घटना को पहले पन्ने पर जगह ही नहीं दी ।

जागरण ने इस ख़बर को पेज नंबर 10 पर लगाया है। हेडिंग ऐसी कि घटना की बर्बरियात का अंदाज़ा न लगे।

जागरण की तुलना में ‘प्रतिष्ठित’ कहे जाने वाले अमर उजाला ने भी लीड, अय्यर के निलंबन को ही बनाया है। यहाँ पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम ख़बर लगी है- लव जिहाद के नाम पर नृशंस हत्या। नृशंसता से अय्यर का निलंबन कैसे बड़ी ख़बर है, यह अमर उलाजा वाले ही बता सकते हैं।

हिंदुस्तान का भी हाल यही है। अय्यर का निलंबन पहले पन्ने की लीड है !

हिंदुस्तान ने राजसमंद की घटना को पेज नंबर 9 पर जगह दी है। हेडिंग से घटना की विशिष्टता का कोई अंदाज़ा नहीं लग सकता।

दैनिक भास्कर ने पहले पन्ने पर रंगीन नीच विमर्श रचा है। अय्यर का कार्टून भी है। लेकिन राजसमंद की घटना गायब है।

लव जिहाद के नाम पर हत्या और वीडियो बनाने की घटना का ज़िक्र पेज नंबर पाँच पर है।

यही हाल नवभारत टाइम्स का भी है।

शंभुलाल के बारे में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम ख़बर है, बाक़ी पेज नंबर 20 पर है। हालाँकि सूचना पेज नंबर 18 की है।

जनसत्ता में भी अय्यर का निलंबन बैनर है। राजसमंद की घटना को कहीं जगह नहीं मिली है।

 

इस घटना को जगह मिली है पेज नंबर पाँच पर। इस छोटी सी ख़बर पर नज़र पड़ना भी मुश्किल है।

राजस्थान पत्रिका दिल्ली से नहीं प्रकाशित होता। जयपुर एडिशन में आज पहले पेज पर कोई ख़बर नहीं है।

पेज नंबर 13 पर फ़ालोअप जैसी ख़बर है।

क्योंकि पत्रिका ने 7 दिसंबर को ही राजसमंद की घटना को अख़बार में लीड बनाया था।

सवाल ये है कि दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अख़बारों ने राजसमंद की घटना को महत्व क्यों नहीं दिया। जबकि एक दिन पहले ही गौर सिटी में माँ-बेटी की नृशंस हत्या की ख़बर हर जगह पहले पन्ने पर थी। तो  क्या राजसमंद की घटना सामान्य है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि लव जिहाद के नाम पर चल रहे दुष्प्रचार से एक शख्स के हत्यारे में बदल जाने की ख़बर उस मीडिया को आईना दिखा रही है जो इसे लगातार हवा देता रहा है। ‘नीचता विमर्श’ की आड़ में इस इस अहम ख़बर को ढँकने की कोशिश ऊँची हरक़त तो नहीं कही जाएगी।

बर्बरीक

 



 

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