मध्यप्रदेश में मनुस्मृति आधारित वर्णव्यवस्था का नया प्रयोग है ‘मंत्री बाबा!’ 

 

हिन्दूराष्ट्र की परिकल्पना साकार करेंगे पांच संत राज्यमंत्री

 

मध्यप्रदेश सरकार ने एक विशेष समिति बनाकर पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देकर एक प्रयोग किया है। इसे गुजरात-यूपी के हिंदुत्व प्रयोग की तुलना में एक नए प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि एक गंभीर और शांतचित्त राजनेता की है। उनके इस प्रयोग से देश में मनुस्मृति आधारित वर्णव्यवस्था की पुनर्स्थापना करने और हिन्दूराष्ट्र के निर्माण की परिकल्पना साकार करने की सम्भावना होगी।
मध्यप्रदेश सरकार ने पांच धार्मिक नेताओं नर्मदानंद महाराज, हरिहरनंद महाराज, कंप्यूटर बाबा, भय्यू महाराज और पंडित योगेंद्र महंत को राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए नर्मदा नदी संरक्षण हेतु एक विशेष समिति का गठन किया है। इस पद से जुड़ी सभी तरह की सुविधाएं भी इन संतों को दी जाएगी। जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस पर सवाल पूछा गया तो वह कुछ भी कहने से बचते दिखे। लेकिन समझा जाता है कि देश के किसी भी राज्य में पहली बार एक धर्मविशेष से जुड़े पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देकर हिन्दूराष्ट्र की दिशा में नया प्रयोग किया गया है।
जानकार लोगों का मानना है कि इन संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने वाली यह विशेष समिति मध्यप्रदेश में हिंदुत्व के उदार और जनकल्याणकारी स्वरूप को सामने लाने तथा राज्य-व्यवस्था के संचालन में ब्राह्मण वर्ण को समुचित सम्मान एवं महत्ता प्रदान करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार बनने के बाद से भाजपा और आरएसएस से जुड़े एक वर्ग द्वारा देश में हिन्दूराष्ट्र की स्थापना की पुरजोर वकालत की जा रही है। ऐसे लोगों का मानना है कि मनुस्मृति में सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था के संचालन तथा चारों वर्णों के अधिकार एवं दायित्वों का स्पष्ट वर्णन है। वस्तुतः मनुस्मृति को हिन्दूराष्ट्र के संविधान के तौर पर देखा जा सकता है। सदियों से हमारे देश में स्थापित रीति-रिवाज और मान्यताएं मनुस्मृति में वर्णित व्यवस्था पर ही आधारित हैं। लेकिन ब्रिटिशकाल में नए-नए प्रावधानों के कारण उन परंपराओं पर चोट पहुंची। आजादी के बाद भी अंग्रेजों के बनाए कानूनों को ही विस्तार मिला तथा मनुस्मृति आधारित व्यवस्था को कमजोर किया गया।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेष समिति के संतों को भारतीय वर्णव्यवस्था की विशिष्टताओं का विशेष ज्ञान है तथा राज्य के संचालन में पारंपरिक व्यवस्था के उपयोगी पहलुओं को शामिल करने संबंधी इन संतों के सुझावों पर अमल करना संभव हो सका, तो राज्य में हिंदुत्व का एक नया प्रयोग देखने को मिल सकता है।
हालांकि इस मामले को अदालत में चुनौती दिए जाने के कारण संशय की स्थिति उत्पन्न हो गई है। हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में दायर याचिका में रामबहादुर वर्मा ने कहा है कि सरकार के इस कदम से जनता पर आर्थिक बोझ और बढ़ जाएगा।
दूसरी ओर, काशी सुमेरूपीठ के शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने इस कदम की आलोचना करते हुए पूछा है कि संत यदि मंत्री हो जाएं तो कैसा सम्मान?

जाहिर है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में किसी प्रयोग को तरह-तरह की आलोचना झेलनी पड़ेगी।

 

 

 (उम्मीद की जानी चाहिए कि इस ख़बरनुमा व्यंग्य का संदेश दूर तक पहुँचेगा। )



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