मोदी पुलिस ने ‘भाषा आंदोलन’ में भूसा भरा ! गालियों से टूट गए श्यामरुद्र पाठक !

यूपीए राज में दो सौ से दिनों से ज़्यादा चला था धरना, मोदी राज में चार दिन में आंदोलन ख़त्म !

 

यूपीए सरकार के समय दो सौ से ज़्यादा दिनों तक धरना आंदोलन चलाने वाले ‘भाषा-योद्धा’ श्यामरुद्र पाठक को मोदी-राज में चार दिन भी बरदाश्त नहीं किया गया। दिल्ली पुलिस की गालियों और शारीरिक मानसिक अभद्रता से आहत होकर उन्होंने चार दिन में ही हार मान ली। 3 मई से रोज़ाना प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर धरना देने की कोशिश कर रहे श्यामरुद्र पाठक को यक़ीन नहीं हो रहा है कि पुलिस ऐसा कर सकती है। उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार की गुंडागर्दी के सामने वे हार मानते हैं। पढ़िये आज यानी सात मई को उन्होंने फ़ेसबुक पर क्या लिखा-

Shyam Rudra Pathak
3 hrs ·
कल (6 मई) हम पाँच सत्याग्रही प्रधानमन्त्री कार्यालय की ओर धरना पर जा रहे थे | प्रधानमन्त्री कार्यालय से एक किलोमीटर दूर ही पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर ने हमें गाली दिया और हाथ और लाठी का इस्तेमाल किया, हमें वहाँ से दूर भगाने के लिए | पुलिस का कहना है कि अगर हम वहाँ धरना देने जाएँगे तो उन्हें अधिकार है, हमें पीटने का और वे पीटने के लिए तत्पर हैं | हमारा यह कहना कि अगर हम आपकी नजर में गलत काम कर रहे हैं तो आप हम पर कानूनी कार्रवाई (गिरफ्तारी, जेल) कीजिए, उनको मंजूर नहीं है | गाली देने और पीटने को ही वे अपना अधिकार मानते हैं |
सरकार की गुंडागर्दी के सामने हम हार मान रहे हैं |हम गिरफ्तारी और जेल का कष्ट सहने को मानसिक तौर पर तैयार थे, परन्तु मोदी सरकार न तो हमारी मांग पर विचार करने को तैयार है और न ही कोई कानूनी कार्रवाई करने को तैयार है |वह सीधे हमें गाली देने और पीटने पर आमादा है ।

1990 में अपने आंदोलन की वजह से आईआईटी प्रवेश परीक्षा में हिंदी को स्थान दिला चुके श्यामरुद्र पाठक की माँग है कि उच्च न्यायालयों से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओ में कामकाज की इजाज़त हो। उन्होंने दिसंबर 2014 में पीएमओ जाकर अपना ज्ञापन सौंपा था और कार्रवाई की उम्मीद जताई थी।लेकिन जब ढाई साल में कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने 3 मई से धरना देने का ऐलान किया। इसी के साथ दिल्ली पुलिस ने उन्हें असली रूप दिखाना शुरू किया। संसद मार्ग थाने की पुलिस ने उन्हें फोन पर धरना ना देने की चेतावनी दी। जब वे नहीं माने तो उन्हें पकड़कर थाने ले गई और उन्हें और उनके साथियों को गालियाँ दीं। उन्हें बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं दी गई और ना कैंटीन से खाने पीने की चीज़ें लेने की इजाज़त दी गई। पुलिस वालों ने हाथापाई की और डंडों से धकेला। उनके एक साथी रवींद्र कुमार की रीढ़ पर डंडे से धकेले जाने की वजह से काफ़ी चोट आई है। पुलिस वालों ने ख़ुद श्यामरुद्र पाठक पर भी हाथ छोड़ने से गुरेज़ नहीं किया।

कल यानी 6 मई को धरना देने जाने के पहले उन्होंने सुबह फ़ेसबुक पर लिखा था कि पुलिसस इस बार ज़्यादा आक्रामक लग रही है। सत्याग्रह जारी रखने में परेशानी हो रही है।

Shyam Rudra Pathak
Yesterday at 9:12am ·

हमें तनखाह के लिए दफ्तर में हाजिरी थोड़े न लगानी है | अतः हमारे लिए शनिवार, रविवार, सोमवार सभी एक समान हैं |
इसी मुद्दे पर सोनिया गांधी के निवास के बाहर धरना में मैं तिहाड़ जेल भेजे जाने के पूर्व अनवरत 225 दिनों (4-12-2012 से 16-7-2013 तक) तक दिन रात धरने में रहा; या तो पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर थाने में या सोनिया गांधी के निवास के बाहर, और उसके बाद 24-7-2013 को तिहाड़ जेल से रिहा हुआ | इस बार पुलिस ज्यादा आक्रामक है, अतः हमारा सत्याग्रह अनवरत नहीं चल पा रहा है

Shyam Rudra Pathak
Yesterday at 8:24am ·
3, 4 और 5 मई की तरह हम आज भी प्रधानमन्त्री कार्यालय के सामने धरना पर बैठने की योजना के साथ जा रहे हैं |
मुझ शक्तिहीन के जनहित के काम में आप भी अपना संभव योगदान दें |
प्रधानमन्त्री के नाम अपना पत्रादि किसी भी संगठन की ओर से दे सकते हैं | अगर किसी संगठन का नाम नहीं लिखना चाहते हैं तो व्यक्तिगत स्तर पर एक नागरिक की हैसियत से भी लिख सकते हैं, वह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है |

ज़ाहिर है, श्यामरुद्र पाठक उन दिनों की याद कर रहे हैं जब उन्होंने कांग्रेस दफ़्तर के सामने धरना दिया था। तब भी माँग यही न्यायालयों में भारतीय भाषाओं को स्थान देने की थी। उन्होंने यूपीए चेयरपर्सन की हैसियत से सोनिया गाँधी के दफ़्तर में माँगपत्र सौंपा था। इसके बाद 4 दिसंबर 2012 से लेकर 17 जुलाई 2013 तक अनवरत धरना दिया। पुलिस रोज़ शाम को उन्हें गिरफ़्तार करके तुगलक रोड थाने ले जाती थी। उन्हें और उनके साथियों को सम्मान के साथ थाने के इन्वसेटीगेटिंग अफ़सर के कमरे में रहने दिया जाता था। सुबह उन्हें छोड़ दिया जाता था। (24 घंटे से ज़्यादा हिरासत पर अदालत ले जाना पड़ता।) यह सिलसिला तब थमा जब 17 जुलाई को पुलिस ने उन्हें अदालत के सामने पेश किया। वे तिहाड़ भेजे गए क्योंकि उन्होंने बेल नहीं ली। पर अगली पेशी यानी 24 जुलाई को उन्हें छोड़ दिया गया।

इस दौरान सोनिया गाँधी के सलाहकर आस्कर फ़र्नांडिज़ उनसे लगातार बात करते रहे। सरकार के सचिव स्तर के अधिकारियों से भी उनकी बात चीत चलती रही। सरकार की ओर से कहा गया कि अगर विपक्ष भी इस बारे में माँग उठाए तो सरकार के लिए ऐसा कर पाना आसान होगा। श्यामरुद्र पाठक तब सुषमा स्वराज से मिले। उन्होंने आश्वासन दिया। फिर राजनाथ सिंह ने भी समर्थन जताया। श्यामरुद्र पाठक दोबारा भी सुषमा स्वराज से मिले, लेकिन बीजेपी ने इस मुद्दे को संसद में नहीं उठाया।

बहरहाल, श्यामरुद्र पाठक को उम्मीद थी कि मोदी जी ने बतौर मुख्यमंत्री गुजरात उच्च न्यायालय में गुजराती भाषा को स्थान देने की माँग की थी, सो बतौर प्रधानमंत्री यह उनके लिए ज़रूरी मुद्दा होगा। लेकिन दिल्ली पुलिस ने जिस तरह उनके साथ व्यावहार किया उससे वे बुरी तरह आहत हैं। उनका कहना है कि क़ानूनी कार्रवाई हो, जेल भेजा जाए, लेकिन मारपीट और गालियों से नवाज़कर सरकार क्या साबित करना चाहती है। यह तो सरासर गुंडागर्दी है।

दिलचस्प बात यह है कि श्यामरुद्र पाठक को हमेशा संघ या बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की सहानुभूति हासिल रही है। लेकिन अब वे कुछ नए अहसास पर पहुँचे हैं। उन्होंने मीडिया विजिल से कहा कि कांग्रेस ने तो आज़ादी के तुरंत बाद राजस्थान और 1972 में यूपी, एमपी और बिहार के हाईकोर्ट में हिंदी के इस्तेमाल की व्यवस्था करा दी थी, लेकिन बीजेपी ने सिर्फ़ गाल बजाया। 2002 में बीजेपी की अटल सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार की इस माँग पर भी ध्यान नहीं दिया था कि वहाँ के नए बने उच्च न्यायालय में हिंदी के इस्तेमाल की अनुमति हो। जबकि मध्यप्रदेश के हिस्सा रहने के दौरान वहाँ के लोगों को यह सुविधा हासिल थी।

श्यामरुद्र पाठक साफ़ कहते हैं कि बीजेपी भाषा के मुद्दे पर छल करती रही है। वह वास्तव में इस मुद्दे गंभीर थी ही नहीं। मुट्ठी भर अंग्रेज़ीभाषियों का पूरे तंत्र पर क़ब्ज़ा बना रहे, बीजेपी इसके पक्ष में है। वह इस शोषणकारी व्यवस्था को बरक़रार रखना चाहती है।

श्यामरुद्र पाठक को यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वे सरकार के इस दमनकारी रवैये से हार गए हैं। आगे क्या करेंगे नहीं जानते,लेकिन फिलहाल तो भाषा आंदोलन ठप हो गया है।

कहा जा सकता है कि महान मोदी की पुलिस ने दशकों से भाषा आंदोलन के पर्याय कहे जाने वाले श्यामरुद्र पाठक के होश महज़ चार दिनों में ठिकाने लगाकर महाबली होने का एक और प्रमाण दे दिया।

आंदोलन के संबंध में मीडिया विजिल में छपी ख़बरें पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें-

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