सागरिका घोष का ट्वीट और उस पर राना अयूब का विस्‍मय प्रोपेगंडा माना जाए या अज्ञान?

एक बात अकसर दुहरायी जाती है कि जनता की याददाश्‍त बहुत छोटी होती है और लोग घटनाओं को भूल जाते हैं। घटनाओं को याद दिलाने वाला और रिपोर्ट करने वाला भी अगर ऐसी गलती करने लगे तो फिर कहने को कुछ खास नहीं रह जाता। वरिष्‍ठ टीवी पत्रकार सागरिका घोष ने नौ महीने पुरानी एक ऐसी ख़बर को आज ट्वीट किया है जिसकी गूंज आज तक हरियाणा के मेवात में मौजूद है, जिसकी सीबीआइ जांच पूरी नहीं हुई है और जो घटना राष्‍ट्रीय मीडिया में आज तक मेवात गैंग रेप के नाम से जानी जाती है।

देखिए, बिना संदर्भ और बिना कारण के इतवार को आया सागरिका घोष का यह ट्वीट:

इस ट्वीट को अचानक न्‍यूज़ स्‍ट्रीम में देखकर कोई भी चौंक जाएगा क्‍योंकि इधर बीच के अखबारों या टीवी पर यह ख़बर नहीं है। खोलने पर पता चलता है कि यह इंडि‍पेंडेंट में पिछले साल सितंबर में छपी मेवात गैंग रेप की ख़बर है जिसमें पीडि़त दो महिलाओं में से एक ने अपने बयान में ”गाय” का एंगल जोड़ा था, हालांकि बाद में पुलिस ने अपनी जांच में इस एंगल को खारिज कर दिया

अगस्‍त के आखिरी हफ्ते में मेवात में हुए इस हत्‍याकांड और दोहरे गैंगरेप ने राष्‍ट्रीय सुर्खियां बंटोरी थीं। पीडि़ताओं को दिल्‍ली लाया गया था और शबनम हाशमी ने उनसे प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करवायी थी। बाद में हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का इस पर बयान भी आया था कि ऐसी घटनाएं मामूली हैं। दबाव में चार लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। बाद में मामला सीबीआइ को सौंप दिया गया।

क्‍या वजह है कि नौ महीने बाद सागरिका घोष इसे ट्वीट कर रही हैं और राना अयूब इसे रीट्वीट कर रही हैं? राना अयूब ने अपने रीट्वीट में पूछा है- ‘वॉट!!!!’ क्‍या इतने बड़े-बड़े पत्रकार ख़बर नहीं पढ़ते? क्‍या ये शीर्षक देखकर ट्वीट मार देते हैं? क्‍या इन्‍हें नौ महीने पुरानी एक राष्‍ट्रीय खबर याद नहीं रहती? इसे सामान्‍य गलती कहना ठीक नहीं है क्‍योंकि ये पत्रकार लोगों की धारणा का निर्माण करते हैं।

ध्‍यान से देखिए, सागरिका के ट्वीट को करीब पांच सौ लोगों ने रीट्वीट किया है। तमाम लोगों ने जवाब में उन्‍हें याद दिलाया है कि यह घटना अगस्‍त 2016 की है और उनसे पूछा है कि इसे आज शेयर करने का संदर्भ व औचित्‍य क्‍या है, लेकिन पत्रकार महोदया इस पर चुप लगा गई हैं। क्‍या ये पत्रकार अपने ट्वीट पर आए जवाब भी नहीं देखते? क्‍या इन्‍हें अपने पाठकों की प्रतिक्रिया से कोई मतलब नहीं होता?

क्‍यों न इस किस्‍म की कार्रवाइयों को भी प्रोपगेंडा यानी दुष्‍प्रचार माना जाए?


Photo Courtesy The Indian Express

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