इंडिया टुडे के न्‍यूज़रूम में बँटा जनादेश का केसरिया लड्डडू राजदीप सरदेसाई की राजनीतिक पापमुक्ति है!

यह महान दृश्‍य है। इसे याद रखिएगा। भविष्‍य में जब कभी भारतीय मीडिया के इतिहास पर कोई बात होगी, तो य‍ह दृश्‍य फिल्‍म सिटि की गलियों से जिन्‍न की तरह निकलकर खुद-ब-खुद नमूदार हो जाएगा।

तारीख 11 मार्च 2017 और जगह नोएडा स्थित फिल्‍म सिटी का मीडियाप्‍लेक्‍स यानी इंडिया टुडे समूह का कार्यालय परिसर। मौका उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे में भारतीय जनता पार्टी को प्राप्‍त प्रचंड बहुमत और घटना मीडियाप्‍लेक्‍स के न्‍यूज़रूम में बंटे लड्डू का अश्‍लील प्रदर्शन।

लड्डू खाने और बांटने में किसी को क्‍या आपत्ति हो सकती है, लेकिन उसके उत्‍साहजनक प्रदर्शन पर सवाल उठते हैं जब आजतक की ऐंकरा अंजना ओम कश्‍यप इंडिया टुडे टीवी के संपादक राजदीप सरदेसाई से कहती हैं कि ‘’इस लड्डू का रंग चाहे जो हो लेकिन फिलहाल इसे केसरिया समझ कर खाया जाए’’।

लड्डू पहले भी बँटे हैं न्‍यूज़रूम में, लेकिन ऐसा मुज़ाहिरा कभी नहीं हुआ। राजदीप सरदेसाई से पूछा जाना बनता है कि क्‍या उनकी भविष्‍यवाणी यही होने की यह खुशी है या भाजपा की जीत की। पत्रकारों का काम है चुनाव का आकलन करना। सही हों या गलत, इस पर बार-बार याद दिलाना कि ‘’सबसे पहले मैंने भाजपा की जीत की बात लिखी थी’’ और इस बात को भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष अमित शाह का नाम लेकर उन तक यह कहते हुए पहुंचाना कि ‘’हम लोग हमेशा बीजेपी की हार की बात नहीं करते’’- क्‍या यह अतीत की पापमुक्ति का कोई उपक्रम है?

यह पूछा जाना चाहिए कि क्‍या राजदीप सरदेसाई, जो हफ्ते भर पहले फोन कर के ग़लत ख़बर चलाने के लिए बीएचयू के संघप्रिय कुलपति से माफी मांग चुके थे, अमित शाह को लड्डू के साथ याद कर के प्रायश्चित कर रहे थे। यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्‍या एक राजनीतिक दल की जीत का जश्‍न किसी न्‍यूज़रूम में पेशेवर पत्रकारिता की कब्र खोदने जैसा काम नहीं है?

आइए, इंडिया टुडे के इस वीडियो को देखें और अपने दौर के बड़े संपादकों से कुछ सवाल करें।

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