मीडियाविजिल प्रतिनिधि
अभी दिल्ली में यह चर्चा शुरू ही हुई थी कि राजस्थान में किसान आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा है। बमुश्किल दो दिन हुए थे जब लोगों की जबान पर सीकर का नाम चढ़ा था। लाल झंडों और लाल साडि़यों से पटी राजस्थान की उपज मंडियों की तस्वीरें अभी सोशल मीडिया में आना शुरू ही हुई थीं। कुछ पत्रकार जयपुर हाइवे का रुख कर चुके थे, तो कुछ निकलने वाले थे। कुल चौदह जिलों की सड़कों पर उतरे लाखों किसानों की सुध लेने को मीडिया पर एक हलका दबाव बना ही था कि हादसा हो गया। यह हादसा नया नहीं है। मंदसौर पिछला गवाह था। उससे पहले तमिलनाडु की नरमुंड वाली तस्वीरें हमारे ज़ेहन में हैं। हर बार किसान सड़क पर आते हैं और हर बार वे खलिहानों में लौट जाते हैं। कभी पुलिस की गोली खाकर, कभी आश्वासन का गोला खाकर।
राजस्थान के किसान आंदोलन की तेरहवीं पर जो घटा है, उसे ‘समझौता’ कहा जा रहा है। समझौता किसानों और सरकार के बीच। किसान नेता इस समझौते को किसानों की जीत बता रहे हैं। गांव में लौट रहे किसानों का स्वागत हो रहा है। किसान जानते हैं कि इस ‘जीत’ और ‘जश्न’ के बाद उनकी किस्मत में मौत लिखी है। आंदोलन की तेरही हो चुकी। अब उनकी बाकी है। वे बेचैन और मजबूर हैं। किसके हाथों, यह कहना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि जो लोग आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे कुछ दोष उनके सिर भी आता ही है।
आइए बिंदुवार देखते हैं, यह ‘समझौता’ क्या है।
- किसानों ने पूरे कर्जे की माफी की मांग की थी। सरकार ने इसके अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाने की बात कही है। अगली मांग चूंकि स्वामिनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की थी, तो समझ जाइए कि कर्ज माफी के लिए जो कमेटी बनेगी, उसकी सिफारिशों को (अगर किसान समर्थक हुईं तो) लागू कराने के लिए एक और आंदोलन करना होगा।
- किसानों ने मांग की थी कि उन्हें फसलों का लाभकारी मूल्य दिया जाए और स्वामिनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए। कृषि मंत्री ने इसके जवाब में बताया कि स्वामिनाथन कमेटी टास्क फोर्स की 80 प्रतिशत से ज्यादा सिफारिशें लागू की जा चुकी हैं; कृषि विकास की समस्त योजनाएं टास्क फोर्स की सिफारिशों पर ही आधारित हैं और लागत मूल्य गन्ना एवं एम.एस.पी सिफारिशों में संशोधन हेतु भारत सरकार से दोबारा निवेदन किया जाएगा। एम.एस.पी खरीद हेतु मंडी टैक्स में रियायत स्वीकार योग्य है एवं शीघ्र निर्णय लेकर खरीद 2017 उत्पाद के लिए इसी हफ्ते खरीद केंद्र खोले जाएंगे। इसका कुल मतलब है कि मांग को महज जबानी जमाखर्च से निपटा दिया गया है।
- तीसरी मांग यह थी कि पशुओं के बेचने पर लगाई गई पाबंदी का कानून वापस लिया जाए और पशु व्यापारियों की सम्पूर्ण सुरक्षा की जाए। सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा पहले ही कर चुका है, बाकी सुरक्षा हम दे देंगे। बात खत्म।
- चौथी समस्या आवारा पशुओं की थी और बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटाने की मांग थी। सरकार ने कह दिया है कि तीन साल की जगह बछड़े की उम्र दो साल करने पर एक रिपोर्ट आएगी। इससे ज्यादा हास्यास्पद समझौता और कुछ नहीं हो सकता।
- सहकारी समिति के कर्जों में कटौती बंद की जाए, सभी किसानों को फसली ऋण दिया जाए- यह पांचवीं मांग थी। सरकार ने इसके जवाब में पिछली सरकार द्वारा वितरित कर्ज से अपने की तुलना करते हुए बता दिया कि इस मामले में राज्य देश में पहले स्थान पर है और बकाया कर्ज अगले साल दिया जाएगा।
- 65 साल से ज्यादा के किसानों को पेंशन की मांग की गई थी, सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन का नाम लेकर किसानों को टरका दिया है।
- बेरोजगारों को रोजगार देने की मांग पर सरकार ने मनरेगा को गिनवा दिया और किसान संतुष्ट हो गए।
- एक समस्या सीकर जिले में टोल की थी। सरकार ने कहा है कि उस पर विचार करेगी।
- अगली समस्या सीकर जिले में नहरों की थी। सरकार का कहना है कि पंजाब के साथ समझौता हो रहा है।
- मुफ्त बिजली की मांग पर कहा गया है कि बातचीत से इसे निपटाया जा सकता है।
- किसानों ने कहा कि दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाई जाए, सरकार ने कह दिया कि इन घटनाओं में गिरावट आई है।
यह है 11 सूत्रीय मांगों का हास्यास्पद समझौता, जिसका जश्न मनाया जा रहा है और 1 सितंबर 2017 से राजस्थान में चल रहा किसान आंदोलन अंततः वापस ले लिया गया है। याद करें कि 30-40 हजार किसानों की भागीदारी वाला यह आंदोलन 13 सितंबर तक व्यापक रूप ले चुका था। 13 सितंबर तक इस आंदोलन में 18 जिलों के किसानों के अलावा, व्यापारी, शिक्षक संघ, ट्रेड यूनियन, डी.जे.यूनियन, ऑटो चालक यूनियन समेत समाज के विभिन्न तबके इसमें शामिल हो चुके थे। इस आंदोलन के महत्वपूर्ण पक्षों में से एक था इसमें महिलाओं की भागीदारी। भारी संख्या में महिलाओं ने इस आंदोलन में भागीदारी कर आंदोलन को व्यापक और जोशीला बनाया। स्थानीय अखबारों के पन्ने देखकर ऐसा लग रहा था कि राजस्थान अब देश में किसान आंदोलन का आधारक्षेत्र बनने जा रहा है।
फिर अचानक जाने क्या हुआ, 12 सितंबर को सरकार के साथ वार्ता विफल हो जाने के बाद किसान और ज्यादा आक्रोशित हो गए और उन्होंने सीकर से गंगानगर, जयपुर, बीकानेर, नागौर, झुंझनु की तरफ जाने वाली सड़कें जाम कर दी गईं। अंततः 13 सितंबर के दिन में एक बजे से सरकार के साथ वार्ता शुरु हुई। चार चरणों में यह वार्ता 14 सितंबर की सुबह 1 बजे तक चली। वार्ता समाप्त होने बाद 14 सितंबर की सुबह आमरा राम ने वार्ता को सफल बताते हुए किसानों से महापड़ाव समाप्त करने तथा जाम खोल देने की अपील की।
समझौते के दौरान ऋण माफी के नाम पर 50000 कर्जे की माफी एक तरह से किसानो के साथ किया गया भद्दा मजाक है। जिस देश में किसान कर्जे की वजह से आत्महत्या कर ले रहे हैं उस देश में 50000 जैसी मामूली कर्ज माफी किसी भी कीमत पर स्वीकार कर सकने योग्य नहीं है। इस क्षेत्र का किसान अगर अपनी एक भैंस बेच दे तो उसे पचास हजार से ज्यादा राशि तुरंत मिल जाएगी। दूसरा दिलचस्प सवाल यह है कि यदि स्वामिनाथन कमेटी की 80 प्रतिशत सिफारिशें पहले ही लागू की जा चुकी हैं तो क्यों इस देश के किसान संगठन समय-समय पर इसे लागू करने की मांग उठाते रहते हैं और क्यों सीकर के आंदोलनकर्ताओं ने यह मांग उठाई।
सीकर को नहर से जोड़े जाने की मांग के संदर्भ में सरकार द्वारा दिया गया जवाब पूरी तरह से भ्रामक है। सरकार द्वारा सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम का कोई वायदा तक नहीं किया गया। पंजाब के साथ होने वाले एम.ओ.यू में कितना पानी मिलेगा और किसानों के हिस्से कितना जाएगा यह बाकी देश में हो रहे एम.ओ.यू तथा पानी पर कार्पोरेट के कब्जे से सहज समझ सकते हैं। नर्मदा बांध का पानी जो किसानों को मिलने वाला था, आज कोका कोला तथा अडानी की कंपनियों को दिया जा रहा है।
किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली की मांग पर तो सरकार ने पहले से ही दी जा रही रियायत का उल्लेख कर दिया और आंदोलन के अगुवाकार भी सरकार के साथ सहमत हो गए। दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार में गिरावट के संदर्भ में पहलू खान की हत्या का उदाहरण देखा जा सकता है जहां हत्यारों को जमानत मिल चुकी है।
पूरी तरह से अहिंसात्मक और अनुशासनात्मक तरीके से चल रहा यह किसान आंदोलन सरकार को झुका देने का माद्दा रखता था लेकिन आंदोलन और सरकार के बीच हुआ यह समझौता उतना ही निर्जीव और रीढ़विहीन दिख रहा है। समझौते की मेज़ पर दरअसल हमेशा की तरह इस बार भी सैकड़ों किसानों की संभावित आत्महत्याओं की इबारत लिख दी गई है। बस अगली बुरी ख़बर का इंतज़ार है।