ले.उमर के लिए जली मोमबत्तियों के बीच लगे मोदी विरोधी नारे, मीडिया ने छिपाया !

कल शाम इंडिया गेट पर कश्मीर में वीरगति पानेवाले लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ को श्रद्धांजलि देने हज़ारो लोग इकट्ठे हुए। मोमबत्तियां जलाई गईं। गीत गाए गए। नारे भी बुलंद किए गए।मीडिया में इस घटना को ठीक ठाक जगह भी मिली।लेकिन वहां कुछ और भी हुआ , जिसकी कोई झलक मीडियाई रिपोर्टों में नहीं दिखाई पड़ी। ये मामूली बातें हैं, लेकिन अगर उन पर मीडिया का ध्यान गया होता, तो कुछ ग़ैर मामूली सच्चाइयां उभर कर आ सकती थीं।

उमर एक कश्मीरी नौजवान थे। उनके एक चाचा मुजाहिद लड़ाका रहे थे , जो सेना के साथ संघर्ष में मारे गए थे। उमर ने अपनी मर्जी से सैन्य सेवा चुनी थी। लेफ्टिनेंट उमर की हत्या जिस तरीके से हुई , उसने देश भर में कुछ ज़्यादा ही ग़ुस्सा पैदा किया है। जिस समय घर से उनका अपहरण किया गया वे अपनी नव विवाहिता के साथ थे। यह घटना कायरता की पराकाष्ठा जान पड़ती है। ख़ुद कश्मीर के भीतर इस बात को लेकर ग़मोगुस्सा मौज़ूद है। शायद इसीलिए हिजबुल मुजाहिदीन ने बयान जारी किया है कि वह इस घटना के लिए जिम्मेदार नहीं है।

इंडिया गेट पर मौजूद जनता किसी पार्टी विशेष की समर्थक नहीं थी। ये वे लोग थे , जो कश्मीर में लगातार जारी रक्तपात से बेचैन हैं । वे इस बात से भी बेचैन थे कि मोदीजी ने उम्मीद जगाई थी कि उनके राज में पाकिस्तान की मुश्कें कस दी जाएंगी और युद्ध विराम के उल्लंघन और आतंकी हमलों में कमी आएगी। लेकिन कमी की जगह इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं इन बढ़ोतरी देखी जा रही है। सन तेरह और चौदह में घाटी में हर साल औसतन तीस सैनिकों की मृत्यु हुई तो पन्द्रह सोलह के सालों में साठ की। इंडिया गेट पर लगाए गए नारों में इस नाउम्मीदी से उपजे आक्रोश की झलक मौज़ूद थी।

पाकिस्तान मुर्दाबाद , इंडियन आर्मी ज़िंदाबाद , कश्मीर की आशा उमर फैयाज़ और तुम कितने उमर मारोगे , हर घर से उमर निकलेगा जैसे नारोंकी गूंज के बीच अचानक मोदी सरकार मुर्दाबाद , मोदी सरकार होश में आओ , चुप बैठी सरकार मुर्दाबाद जैसे नारे गूंजने लगे। जगह और मौके के देखते हुए इन नारों का उठना बता रहा है कि नरेंद्र मोदी ने धार्मिक उग्रराष्ट्रवाद और देशभक्ति के उन्माद के सहारे एकनायकानुवर्तित्व की राजनीति का जो भव्य भवन खड़ा किया है , वह दरकने लगा है । भक्त जब देवता से नाराज़ होता है तो उसकी नाराज़गी के तीव्र घृणा में बदलते देर नहीं लगती। मोदी जी को समझना पड़ेगा कि भक्ति का कितना भी गाढ़ा तड़का लंबे समय तक लगातार जारी उपद्रव और बढ़ती प्राणक्षति से पैदा होनेवाली बेचैनी को रोक नहीं पाएगा। उन्हें अब सोचना चाहिए कि उनके पास यहां से आगे जाने के राजनीतिक रास्ते क्या हैं । वे अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान के साथ युद्ध कोई विकल्प नहीं है। युद्ध सबसे पहले तो उनके उन पूंजीपति दोस्तों को ही गवारा न होगा , जिन्होंने पाकिस्तान में तगड़ी पूंजी लगा रखी है। युद्ध तो छोड़िए , इन्ही तत्वों के चलते पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा है ।

उनकी मुसीबत यह है कि युद्ध की राजनीति के सहारे ही वे यहां तक पहुंचे हैं । वे अपनी खास अपील गँवा कर ही युद्द से पीछे हट सकते हैं ।और अगर युद्ध की दिशा में आगे बढ़ते हैं तो उन्हें अपने चुनावी फण्डदाताओं का ग़ुस्सा झेलना पड़ेगा।

इंडिया गेट पर मोदी विरोधी नारे लगते ही एक और घटना हुई। पुलिसवाले रोकने चले आए। उन्होंने कहा कि पॉलिटिकल नारे नहीं लगाए जाने चाहिए।इस पर जब कुछ लोगों ने कहा कि सभी नारे देशहित के हैं , कोई भी देशविरोधी नहीं है , तब कहा गया कि सभा की इजाज़त केवल आठ बजे तक की थी और इंडिया गेट की शांति भंग नहीं की जा सकती। लेकिन यह तर्क देर से लग रहे पाकिस्तान विरोधी नारों पर लागू नहीं किया जा रहा था।

इंडिया गेट न कश्मीर है , न जेएनयू । देश की राजधानी का हृदय स्थल है। अवसर एक शहीद सैनिक को श्रद्धांजलि देने का है। अगर यहाँ भी इतनी सेंसरशिप है कि सरकार विरोधी कोई नारा नहीं लगाया जा सकता तो बाकी देश में , खास कर कश्मीर जैसे इलाकों में लोकतंत्र की क्या स्थिति होगी , क्या इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि हम भारत के असंतुष्ट हिस्सों की जनता को यह भरोसा कैसे दे सकते हैं कि लोकतांत्रिक भारत उनके लिए सैन्य शासित राज्यों से बेहतर विकल्प है।

यह सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि ठीक से रिकॉर्ड न किया जा सका। लेकिन घटनाक्रम की साफ झलक इस वीडियो क्लिप में देखी जा सकती है। यह ख़बर के नेपथ्य की वह ख़बर है , जहाँ सच्चाइयाँ मेकअप उतार कर मिलती हैं ।

देखिए ये वीडियो जिसमे मोदी सरका के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी को रोका जा रहा है–

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