अख़बारनामा: पर्रिकर की प्रशंसा में भाजपा की निन्दा से बचते अख़बार!

परिकर के निधन के बाद की राजनीति और सरकार बनाने के लिए हुई जोड़तोड़ को न बताना असल में भाजपा सेवा है और आज यह काम बाकायदा हुआ है।

संजय कुमार सिंह

मनोहर परिकर देश के आम राजनीतिज्ञों से अलग, पढ़े-लिखे, ईमानदार दिखने और साधारण रहन सहन वाले राजनेता तथा मुख्यमंत्री थे। भारतीय राजनीति में देश के रक्षामंत्री की कुर्सी तक पहुंचे तो लगा था कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ईमानदार सरकार देने के दावे का असर है। पर गोवा में सरकार बनाने की बात आई तो जिस तरह उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से मुक्त कर दिया गया उससे उनका राजनीतिक चातुर्य भी स्पष्ट हो गया। बाद में हिन्दू अखबार में रफाल सौदे में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा समानांतर वार्ता चलाने की खबर और उसपर रक्षा मंत्री के रूप में उनकी अनछपी टिप्पणी तथा बाद में उसे सार्वजनिक किया जाना एक भले आदमी का राजनीतिक दुरुपयोग था और कल फेसबुक पर इस आशय की पोस्ट थीं कि भाजपा ने उनका अंतिम समय तक दुरुपयोग किया। 

रफाल वाली खबर में रक्षा मंत्री के रूप में मनोहर परिकर की टिप्पणी नहीं छापना असल में उन्हें इस विवाद से अलग रखना भी हो सकता है। मनोहर परिकर ने अगर भारतीय नेगोशिएटिंग टीम के एतराज को खारिज कर दिया था तो यह उनका भ्रष्टाचार नहीं था। वे प्रधानमंत्री का बचाव कर रहे थे जो प्रधानमंत्री की टीम में होने के कारण कोई भी करता। मेरे ख्याल से टीम वर्क यही है और ऐसा करना भी चाहिए। या फिर गलत था तो आईएनटी की रिपोर्ट की जरूरत ही नहीं थी। रक्षा मंत्री के रूप में उन्हें पता होना चाहिए था, होगा। पर भाजपा ने पूरी बेशर्मी से उनकी टिप्पणी का उपयोग किया। उनकी जो टिप्पणी एकदम मौके पर लीकर हो हई उसे बाद में चोरी का दस्तावेज भी बताया गया। यह पूरा मामला दिलचस्प था और आज मनोहर परिकर के निधन पर इसकी चर्चा भी बनती है पर शायद ही हो।

सोशल मीडिया पर ऐसी प्रशंसा (या भाजपा की निन्दा) पर कुछ लोगों को एतराज भी था कि मरने वाले पर टीका-टिप्पणी नहीं करते। लेकिन यह टिप्पणी मरने वाले यानी मनोहर परिकर पर नहीं, भाजपा की राजनीति पर थी और मरने वाले की आड़ में अगर इसपर टिप्पणी रोकी जाए तो यह मरने के बाद भी मनोहर परिकर का दुरुपयोग होगा। उन्हें सच्ची श्र्द्दांजलि तो रह ही जाएगी। देश के अखबार इन दिनों जब वैसे ही भाजपा के पक्ष में बिछे हुए हैं तब मनोहर परिकर के निधन के बाद की राजनीति और सरकार बनाने के लिए हुई जोड़तोड़ को न बताना असल में भाजपा सेवा है और आज यह काम बाकायदा हुआ है। दैनिक भास्कर, नवोदय टाइम्स और द टेलीग्राफ जैसे कुछ अखबारों ने पूरी बात बताई है वरना ज्यादातर ने इसे रूटीन खबरों की तरह छाप दिया है। 

शपथ ग्रहण हो गया तो गनीमत रही कि अखबारों में यह खबर नहीं छपी (या प्रमुखता से नहीं छपी) कि परिकर के निधन के तुरंत बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने की कोशिशें तेज कर दी थी। सोशल मीडिया पर कल इस तरह की खबरें भी चल रही थीं जैसे भाजपा की कोशिशें सही हों और कांग्रेस की गलत। सरकार बनने के बाद कांग्रेस को कोसना जरा मुश्किल होता पर भाजपा को कोसने में रह गए या कहिए कोसना ही नहीं था। यही है आजकल की पत्रकारिता अखबार खबर नहीं देते आपकी राय बनाने और बदलने में लगे हैं। 

आपको याद होगा कि पिछले साल सितंबर अक्तूबर में परिकर करीब एक महीने एम्स में भरती थे और एक दिन अचानक उन्हें आईसीयू से डिस्चार्ज कर दिया गया और वे सीधे गोवा पहुंच गए। लंबे समय तक बीमारी के कारण गोवा से बाहर रहने (और स्पष्ट बहुमत न होने के कारण) गोवा की उनकी भाजपा सरकार तो खतरे में थी ही, अखबारों की खबरों पर यकीन किया जाए तो कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा भी ठोंक दिया था और तब खतरे को भांपते हुए उन्हें अचानक गोवा शिफ्ट किया गया और वहीं उनके इलाज की व्यवस्था की गई जबकि एक महीने तक एम्स में रहने के दौरान सरकार के सुचारू रूप से काम करने के तरीकों पर चर्चा के लिए बीजेपी की गोवा इकाई की कोर कमिटी के सदस्यों और गठबंधन के सहयोगी दलों के मंत्रियों ने एम्स में उनसे मुलाकात भी की थी। 

इन सबके बावजूद गोवा में भाजपा ने जोड़-तोड़ करके, राज्यपाल के समर्थन से फिर सरकार बना ली है। रात 1: 50 बजे शपथ ग्रहण हुआ। सहयोगी दलों को खुश रखने के लिए देश के सबसे छोटे राज्य में पहली बार दो उपमुख्यमंत्री होंगे। शपथग्रहण 11 बजे होना था पर हुआ 1: 50 बजे। 40 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है। चार सीटें खाली हैं। इनमें तीन पर 23 अप्रैल को उपचुनाव होने हैं। कांग्रेस के पास 14 सीटें हैं, भाजपा के पास 12 और मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल भी 12 सदस्यों का है। हालांकि, भाजपा के सभी विधायक मंत्री नहीं हैं क्योंकि सरकार बनाने के लिए दो उपमुख्यमंत्री सहयोगी दलों के बनाने पड़े हैं और इसीलिए भाजपा की सरकार बनी। 

अब देखिए आज के अखबारों के शीर्षक क्या है। इसी से अंदाजा लग जाएगा कि किस अखबार में क्या होगा। आप यह भी देखिए कि आपके अखबार ने इनमें से कितनी सूचना आपको दी और कैसे दी। शीर्षक पहले अंग्रेजी अखबारों के और फिर हिन्दी अखबारों में इस प्रकार हैं : 

टाइम्स ऑफ इंडिया 
गोवा विधानसभा अध्यक्ष प्रमोद सावंत मुख्यमंत्री के रूप में परिकर के उत्तराधिकारी बने 
हिन्दुस्तान टाइम्स 
भाजपा ने परिकर के बाद गोवा का नेतृत्व करने के लिए सावंत का चुनाव किया, उपशीर्षक है, देर रात ड्रामा – भाजपा, कांग्रेस के दावे के बाद विधानसभा अध्यक्ष को मुख्यमंत्री के पद के लिए चुना गया 
इंडियन एक्सप्रेस
सावंत परिकर के उत्तराधिकारी बने, दावा करने के लिए आधी रात को राजभवन पहुंचे 
द टेलीग्राफ 
गोवा में सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा ने सहयोगियों के आगे घुटने टेके 

हिन्दी में

नवभारत टाइम्स
परिकर के बाद सावंत को चुना गया चेहरा, भाजपा ने डिप्टी सीएम का पद दिया सहयोगी एमजीपी, गोवा फॉर्वार्ड को 
हिन्दुस्तान
प्रमोद सावंत गोवा के नए मुख्यमंत्री होंगे 
नवोदय टाइम्स
सावंत बने गोवा के सीएम, उपशीर्षक है – देर रात 1.49 पर 11 कैबिनेट सहयोगियों के साथ शपथ ली। अखबार ने इसके साथ प्रमुखता से यह भी बताया है कि दो सहयोगी दलों के नेता उपमुख्यमंत्री होंगे, कांग्रेस ने भी दावा किया था और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है। 
दैनिक जागरण
प्रमोद सावंत बने गोवा के सीएम, देर रात ली शपथ, उपशीर्षक है – सहयोगी दलों स विजय सरदेसाई व धवलीकर बने उप मुख्यमंत्री – बीच में खबर है मनोहर परिकर पंचतत्व में विलीन 
अमर उजाला 
प्रमोद सावंत गोवा के नए मुख्यमंत्री, उपशीर्षक है – रात 1:49 पर हुई शपथ : सुदिन धवलीकर व विजय सरदेसाई उप मुख्यमंत्री 
राजस्थान पत्रिका 
फ्लैग शीर्षक है – राजनीतिक संकट : देर रात तक सियासी गहमागहमी; मुख्य शीर्षक है – प्रमोद सावंत हो सकते हैं गोवा के नए सीएम, सहयोगी दलों से बन सकते हैं दो उपमुख्मंत्री 
साफ है कि यह खबर पहले की है और इससे यह भी पता चलता है कि सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों से हुआ सौदा सार्वविदित और पूर्व घोषित था।

इन सभी के मुकाबले दैनिक भास्कर का शीर्षक है, शाम 5.30 बजे परिकर का अंतिम संस्कार, रात 1.50 पर नई सरकार ने ली शपथ। फ्लैग शीर्षक है, सावंत बने गोवा के नए मुख्यमंत्री, दो गठबंधन सहयोगी उपमुख्यमंत्री बने, अलग है। इसके साथ एक खबर है, काम नहीं आया 14 विधायकों के साथ कांग्रेस का सरकार बनाने का दावा और एक अन्य, परिकर को राजकीय सम्मान के साथ विदाई। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )


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