बीजेपी के विज्ञापन को ख़बर की तरह छाप रहे हैं हिंदुस्तान और अमर उजाला !

ऊपर की तस्वीर देखिए। गोले बताते हैं कि कैसे एक ही तस्वीर को बार-बार जोड़कर इसे तैयार किया गया है। यह इलाहाबाद में 21 फरवरी को हुई अमित शाह की रैली की ख़बर (?) के साथ अमर उजाला और हिंदुस्तान जैसे अख़बार के गोरखपुर संस्करण में छपी है। (बाक़ी में भी छपी होगी, लेकिन मीडिया विजिल के सामने दो ही अख़बार हैं। इन्हें अपेक्षाकृत संतुलित माना जाता रहा है। दैनिक जागरण को लेकर तो कोई भ्रम नहीं रहा। )

दरअसल, यह पेड न्यूज़ का ही एक रूप है। पेड न्यूज़ को लेकर हुए तमाम हंगामे के बावजूद यूपी के बड़े-बड़े अख़बार जनता की आँख में धूल झोंककर यही काम कर रहे हैं। विज्ञापन इस तरह बनाए जा रहे हैं कि वे पूरी तरह ख़बर लगें। आम आदमी के लिए यह खोज पाना मुश्किल होता है कि वे ख़बर नहीं विज्ञापन देख रहे हैं। बेहद बारीक़ अक्षर में कहीं इसकी सूचना होती है।

21 फरवरी को इलाहाबाद में अमित शाह का रोड शो कैसा हुआ, गोरखपुर मंडल के पाठकों को बताया जा रहा है।  हिंदुस्तान के पेज नंबर 5 पर “भगवा रंग मं रंगा इलाहाबाद ” शीर्षक से यह छपा है।  भीड़ की एक तस्वीर को ही बार-बार जोड़कर भारी भीड़ का दृश्य रचा गया है। पाठक को देखकर लग सकता है कि यह इलाहाबाद की रैली की सच्ची ख़बर है।

 

लेकिन नीचे ध्यान से देखने पर बारीक़ अक्षरों में लिखा है कि यह विज्ञापन बीजेपी द्वारा जारी किया गया है।

उधर, अमर उजाला भी इस खेल में पीछे नहीं है। उसने भी इस विज्ञापन को पेज नंबर 7 पर इसी अंदाज़ में छापा है। नीचे एक कोने में advt  लिखा है जो एडवर्टीज़मेंट का शॉर्ट फार्म है। ज़ाहिर है, यह विज्ञापन गाँव-गाँव जाएगा जहाँ कितने लोग इसका मतलब समझ पाएँगे, कहना मुश्किल है। इसे ख़बर की ही तरह देखा जाएगा।

आख़िर ऐसा करने का मक़सद क्या है। ऐसा नहीं है कि बीजेपी भीड़ नहीं जुटा सकती या वह लड़ाई में नहीं है। लेकिन इलाहाबाद में 23 फरवरी को वोट पड़ेंगे तो गोरखपुर में 4 मार्च को। यह योगी आदित्यनाथ का इलाका है जिन्हें मुख्यमंत्री प्रत्याशी भी बताया जा रहा है। ऐसे में इलाहाबाद को भगवा रंग में रंगने का ऐलान करके बीजेपी पूर्वांचल में मनोवैज्ञानिक बढ़त लेना चाहती है।

ज़रा ख़बर की भाषा पर निगाह डालिए। बताया जा रहा है कि तीन चरणों के मतदान में बीजेपी की आँधी तूफ़ान में बदल गई है।

दिक्कत यह है कि जिन अखबारों पर यह  ज़िम्मेदारी है की वे पाठकों की नज़र साफ़ करें, वे बताने से ज़्यादा छिपाने का धंधा कर रहे हैं। विज्ञापन छापना गुनाह नहीं है, लेकिन विज्ञापन को ख़बर की तरह पेश करना गुनाह है। इस गुनाह में अमर उजाला और हिंदुस्तान ही नहीं, देश के लगभग सभी मीडिया हाउस शामिल हैं।

बर्बरीक

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