‘रवीश कुमार! डर क्या होता है, यह पत्रकार मुन्ना उर्फ संजीव से पूछिए!’

व्यालोक पाठक 

प्रिय रवीश जी,

आप मेरे हमपेशे हैं, एक रिपोर्टर के तौर पर बहुत पसंद थे। एंकर के तौर पर आपका अहंकार मुझे पसंद नहीं आता, मैंने कभी आपको खुली चिट्ठी नहीं लिखी, आज लिख रहा हूं। उम्मीद है, आपका कोई न कोई चाहनेवाला आपतक पहुंचा दे और शायद आप इसे पढ़ लें। डिस्क्लेमर पहले ही आपकी तरह दे देता हूं कि मैं टी.वी. खासकर एंटरटेनमेंट चैनल्स तो बिल्कुल नहीं देखता।

मैंने अचानक सपना देखा कि मैं दस साल आगे चला गया हूं। यानी, मोदी तानाशाह बन गए हैं। सबके सोशल साइट्स के रिकॉर्ड निकाले जा रहे हैं, गिरफ्तारियां हो रही हैं, वो सब इसलिए कि लालू को जेल भेज दिया गया है। फिर मारन, कणिमोझी आदि सब। इसके विरोध में जनता भी उतरी, तथाकथित। स्थिति को संभालने के लिए ही आपातकाल, मैं पसीने से नहाकर उठा …अचानक सांस आती सी महसूस हुई।

….मैं बहुत शक्की हो गया हूं। लालू की स्टोरी देखकर सोचा कि कहीं इसमें षडयंत्र तो नहीं…क्योंकि कल सालगिरह, बहू खोजाई आदि जैसी खबरें लगाकर पॉजिटव माहौल बनाया गया, फिर आज लालू का भड़कना सेट किया गया, ताकि मीडिया की ऐसी छवि बने। ये वाली क्लिप मुझे ज़ी न्यूज वाली किसी ने भेजी थी। इसमें तो अंत तक लालू यादव ने केवल एक बार ‘चोप्प’ कहा था।

…फिर, मेरे पास रिपब्लिक वाली वीडियो किसी ने भेजी। उसमें पूरे फॉर्म में हैं यादव-कुल-गौरव लालूजी। पूरी हनक और धमक के साथ पत्रकारों को धक्का देते, दिलवाते, अभद्र भाषा में बात करते, मुक्का मारने की धमकी देते।

यहां तक तो मैं फिर भी सब्र किए था, पर सब्र छलका ठीक उसी समय जब बरारी के विधायक नीरज यादव का टेप सुन लिया। कटिहार के बरारी के विधायक भी राजद के ही हैं और आपकी नज़र में ‘कौन जात है’ पूछने वाले घेरे में शायद नहीं आते हैं।

मिस्टर रवीश कुमार। डर क्या होता है, यह प्रभात ख़बर के उस पत्रकार मुन्ना उर्फ संजीव से पूछिए, जो अपनी मां-बहन की भद्दी गालियां सुन रहा है, फिर भी चुपचाप अपना काम कर रहा है, कर्तव्य कर रहा है, आपकी तरह स्टूडियो में माइम आर्टिस्ट को बुलाकर नाटक नहीं करता है। उसे आपकी तनख्वाह का शायद 10 वां हिस्सा भी नहीं नसीब है, पर वह कर रहा है सच्ची पत्रकारिता। आपकी तरह आंसूपछाड़ नहीं।

क्या मैं आपसे उम्मीद करूं कि आप लालू की पार्टी के किसी भी आदमी को बुलवाकर इस पर प्राइम टाइम करवाएंगे और उससे माफी मंगवाएंगे, क्या मैं आपके मालिक प्रणय रॉय से उम्मीद करूं कि जिस तरह एक पूछताछ मात्र को उन्होंने मीडिया बनाम सरकार बनाकर पेश किया, इसे मीडिया बनाम नेता बनाएंगे। लालू जैसे अनगढ़ बोल वाले नेताओं को शर्मिंदा करेंगे और नीरज यादव जैसे गुंडों को जेल भेजने के लिए पहल करेंगे?

मुझे नहीं पता कि आपको कितनी गालियां मिली हैं और किससे, नहीं जानता कि आपको किसने और कब धमकी दी है, पर हां, यह आवाज़ मुझे सुनाई दे रही है। क्या आप सुन रहे हैं, रवीश?

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