विचार शून्य से नहीं आते। न अच्छे-न बुरे। यहाँ तक कि हँसी-मज़ाक या गाली-गलौज की भाषा भी किसी की मानसिक बुनावट का ही संकेत होती है। ऐसे में यूपी में सपा-बसपा गठबंधन पर सबसे ‘तेज़ चैनल’ आज तक ने जो कार्यक्रम बनाया वह बताता है कि उसका न्यूज़रूम सवर्ण घृणा का बजबजाता कुंड है। ऐंकर-ऐंकरानियों के लिपे-पुते चेहरों पर पड़ने वाली जगमग रोशनी के पीछे वहाँ मध्ययुगीन अँधेरा अट्टहास करता नज़र आता है। लोकतंत्र की सामान्य कसौटियों पर भी वह अपराधी है। मायावती-अखिलेश यादव ने यूपी में गठबंधन किया और बिहार से तेजस्वी यादव शुभकामना देने पहुँचे तो यूपी बिहार लूटने साज़िश! हेडलाइन लिख दिया- ‘साथ आए हैँ यूपी-बिहार लूटने!’
क्या लोकतंत्र में साथ आना लूट के लिए होता है? फिर जनसंघ से लेकर बीजेपी तक यात्रा को अंजाम देने वाला आरएसएस सबसे बड़ा लुटेरा हुआ! लोहिया से लेकर वामपंथियों तक का साथ लेकर उसने केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ दशकों तक अभियान चलाया। अभी भी वह ‘अपना दल’ से लेकर रोज़ गरियाने वाले योगी के मंत्री ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन में है लेकिन ‘आज तक’ ने कभी इस ‘लूट’ को हेडलाइन बनाने की हिम्मत नहीं दिखाई?
आज तक के ‘सारे जहाँ से सच्चा’ होने की असलियत यही है। एक फ़िल्मी गाने की आड़ में उसने जो किया है, वह संयोग नहीं मनुवादी प्रतिक्रिया का विस्फोट है, जो आरएसएस के अभियान से नत्थी हो चुका है और मोदी जी को हराने की हर कोशिश को देश के ख़िलाफ़ साज़िश मानता है।ऐसी हेडलाइन इसलिए भी संभव हुई है क्योंकि मीडिया में दलित, पिछड़े,आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। यह कोई अंदाज़ भर नहीं है। इसको प्रमाणित करने वाले कई सर्वेक्षण अब सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं। यह अकेली हेडिंग बताने के लिए काफ़ी है कि मीडिया में आरक्षण क्यों ज़रूरी है। इसके लिए तुरंत संविधान संशोधन किया जाना चाहिए क्योंकि यह मनुवादी मीडिया भारत के संविधान और स्वतंत्रता आंदोलन के संकल्पों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ चुका है। पढ़िए सजग पत्रकार दीपांकर पटेल का विश्लेषण और उसके नीचे कुछ चर्चित बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया-
दीपांकर पटेल
मायावती-अखिलेश के गठबंधन को मीडिया इग्नोर तो कर नहीं सकता था तो उसे निगेटिव शेड दे दिया. अब आप पूछेंगे इस गठबंधन पर बैलेंस TV प्रोग्राम कैसा होगा? सही तो ये होता कि इस गठबंधन से यूपी की 71लोकसभा सीटों पर काबिज BJP की मुश्किल होने वाली राह का विश्लेषण किया जाता लेकिन “आज तक” ने इस गठबंधन से जनता को डराना शुरू कर दिया है.
आज तक वाले मीडिया एथिक्स का अचार डालकर उसे ऑफिस की छत पर सूखने के लिए डाल आए हैं. लगता है आजतक में रीलवाली कैसेट पलटकर नब्बे के दशक के गाने सुनने वाला स्क्रिप्ट राइटर आया है.
MeToo पर “तू मैंनू कैंदी नाना-नाना” याद है? ‘साथ आए हैं UP-बिहार लूटने’ कहने के पीछे आधार क्या है? निर्णय सुनाकर प्रोग्राम शुरू करने का मकसद क्या है?
हल्ला बोल के इन्ट्रो में ही अंजना कहती हैं-“आखिर इस मुलाकात का मतलब क्या है. क्या साथ मिलकर यूपी और बिहार को लूटने की तैयारी है?”
लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन है तो जीतने के बाद भी सपा-बसपा उत्तर प्रदेश सरकार तो चलाने वाले हैं नहीं तो UP-बिहार लूटने की संभावना भी कैसे बन रही है? अभी कौन-कौन UP लूट रहा है ABP न्यूज ने स्टिंग करके दिखाया था।
मीडिया कैसे नकारात्मकता फैलाता है, इसका उदाहरण देखिए. क्या गठबंधन पॉलिटिक्स वाले लूट-खसोट करने ही आते हैं? फिर तो इसी तर्क से NDA पूरे देश को लूट रहा है>
जब तक अखिलेश की सरकार थी आजतक और टॉइम्स वाले नोएडा में कुछ जमीन पाने के चक्कर में समाजवादी वंदना करते रहते थे. आज UP लुटवा रहे हैं!!!
नीचे वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल और दो अन्य बुद्धिजीवियों की फ़ेसबुक प्रतिक्रया भी देखिए-