बनारस के चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी के ऊपर कुछ साल पहले हुए जानलेवा हमले के मामले पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आखिरकार बनारस के एसएसपी को तलब कर लिया हे। उन्हें दो महीने के भीतर इस मामले में आयोग के समक्ष सशरीर उपस्थित होने को कहा गया है और आदेश दिया गया है कि 2012 के मामले में हुई इतनी देरी पर वह आयोग के समक्ष अपना स्पष्टीकरण रखें।
बनारस से चलने वाली मानवाधिकार जन निगरानी समिति (पीवीसीएचआर) नामक संस्था के सीईओ डॉ. लेनिन रघुवंशी के ऊपर 2012 में जानलेवा हमला हुआ था जिसके बाद बनारस में एक एफआइआर दर्ज करायी गई थी और मानवाधिकार आयोग में शिकायत भी भेजी गई थी। पांच साल हो गए लेकिन इस मामले में अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई थी। पिछले साल अक्टूबर में मानवाधिकार आयोग ने बनारस के एसएसपी से इस मामले में रिपोर्ट मंगवायी थी जो अब तक जमा नहीं हुई है।
इस और इसके साथ संबद्ध कुछ अन्य एफआइआर से संबंधित फाइल संख्या 42218/24/72/2012, डायरी संख्या 19566/जेआर में बीते 15 दिसंबर को कड़ा रुख दिखाते हुए एनएचआरसी ने 19.04.2016 की अपनी कार्यवाही की निरंतरता में एक आदेश जारी किया है। प्रस्तुत आदेश पिछले अप्रैल को जारी इस आदेश के आलोक में है:
”आयोग ने इनवेस्टिगेशन डिवीज़न की विस्तृत नोटिंग और फाइल में मौजूद काग़ज़ात पर संज्ञान लिया है। जहां तक न्यायाधीन मामलों की बात है, आयोग उसमें दखल नहीं दे सकता है और शिकायतकर्ता को अपनी बात अदालत के समक्ष रखनी चाहिए। उनके ऊपर जानलेवा हमले और फर्जी मामले में फंसाए जाने का आरोप गंभीर प्रकृति का है। याचिकाकर्ता एनजीओ और आयोग की कोर कमेटी का सदस्य रहा है और उसने मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में देश भर से तमाम मामले दायर करवाए हैं। इस केस के तथ्यों और परिस्थितियों के आलोक में आयोग के इनवेस्टिगेशन डिवीजन के डीआइजी को डॉ. लेनिन को किसी उपयुक्त तारीख पर बुलाकर उनका बयान दर्ज करना चाहिए। उपर्युक्त आपराधिक मामले की मौजूदा स्टेटस 6 सप्ताह में प्राप्त हो जानी चाहिए। इसके बाद मामला आयोग के समक्ष पूर्णत: रखा जाएगा।”
इस पिछले आदेश के तहत इनवेस्टिगेशन डिवीजन की ओर से आयोग को 27.05.16 को एक नोट भेजा गया जिसमें बताया गया कि शिकायतकर्ता को ”उसकी सुविधा के अनुसार” बुलाकर उसका बयान दर्ज किया गया1 इसी के क्रम में मौजूदा स्टेटस की मांग की जा रही है।
आयोग का प्रस्तुत आदेश कहता है, ”यह रिपोर्ट किया गया है कि 19.10.16 तक कई बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद एफआइआर संख्या 199/2013, 4/2013, 359/2013 और 418/2013 के मामले में मौजूदा स्टेटस एसएसपी बनारस की ओर से प्राप्त नहीं हुआ है। दंडात्मक प्रक्रिया के ज़ोर से भी कोई परिणाम हासिल नहीं हुआ है। यह आयोग बनारस के एसएसपी द्वारा प्रतिक्रिया नहीं दिए जाने के रवैये को काफी गंभीरता से लेता है। लिहाजा पीएचआर अधिनियम, 1993 की धारा 13 के अंतर्गत बनारस के एसएसपी को समन जारी किया जाता है कि वे 20.02.2018 को आयोग के समक्ष उपस्थित होकर अपने तदर्थ व ढीले रवैये का कारण बतावें चूंकि ये मामले 2012 से लंबित हैं। हालांकि अगर तय तारीख के एक हफ्ते पहले कोई रिपोर्ट प्राप्त की जा सकी तो उन्हें सशरीर पेशहोने से रियायत दे दी जाएगी।”
मानवाधिकार रक्षकों की जिंदगी और प्रतिष्ठा के संबंध में एनएचआरसी का यह आदेश अहम है और मानवाधिकार के कार्यों की वैधता की पुष्टि करता है।