मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड आज 83 बरस के हो गए। वे 19 मई 1934 को भारत में पैदा हुए और लगभग पूरा जीवन यहीं गुज़ारा। कसौली मे पैदा हुए बॉन्ड दशकों से मसूरी में रहते हैं। उनके पुरखों का रिश्ता इंग्लैंड से था,लेकिन वे एक सम्मानित भारतीय नागरिक हैं। अँग्रेज़ी में लिखते ज़रूर हैं, लेकिन उनका पूरा साहित्य भारतीय समाज का आईना है।
बहरहाल, न्यूज़ 18 की नज़र में रस्किन बॉन्ड ‘विदेशी लेखक’ हैं। वेबसाइट पर बॉन्ड के जन्मदिन पर तमाम जानकारियों से सजे लेख की हेडलाइन में उन्हें साफ़-साफ़ ‘विदेशी’ बताया जा रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि हेडिंग के अलावा पूरे लेख में बॉन्ड के ‘विदेशी’ होने पर कोई प्रकाश नही डाला गया है।
आख़िर न्यूज़ 18 को बॉन्ड के ‘विदेशी’ होने की जानकारी मिली कहाँ से ? यह ठीक है कि आजकल पत्रकारों के पास पढ़ने का वक़्त नहीं है, लेकिन विकीपीडिया तो देखना ही पड़ता है। आजकल गूगल ‘दादा’ और विकीपीडिया ‘दादी’ ही ज़्यादातर पत्रकारों की रोज़ी-रोटी चला रहे हैं लेकिन विकीपीडिया भी बॉन्ड को ‘भारतीय नागरिक’ ही बता रहा है। तो क्या किसी ने उसे भी देखना गवारा नहीं किया ? डेस्क इंचार्ज से लेकर संपादक जी तक का इस हेडलाइन पर नज़र ना पड़ना किस मोतियाबिंद का इशारा है ?
एक बड़े समाचार समूह की इस वेबसाइट में तथ्यों के साथ ऐसा खिलवाड़ अजब है। या फिर यहाँ वही लोग जम गए हैं जिनके दिमाग़ में गुरु गोलवलकर का क़ब्ज़ा है। गुरू ने कहा था कि जिसकी ‘पितृभूमि’ और ‘पवित्रभूमि’ भारत नहीं है, वह कभी भारत का नही हो सकता। चेलों को यही सबक़ याद है। ‘ईसाई’ बॉन्ड, जिसकी पितृभूमि और पवित्र भूमि विदेशी धरती है, उनकी नज़र में विदेशी है तो हैरत क्या !
पुनश्च : मीडिया विजिल में यह ख़बर प्रकाशित होने के कुछ घंटे बाद न्यूज़ 18 ने हेडलाइन बदल दी। हेडिंग से ‘विदेशी ‘ शब्द हटा दिया गया।
न्यूज़ 18 ने सुबह 7:58 बजे प्रकाशित ग़लती शाम 4:54 बजे ठीक की। यानी कुल 8 घंटे 56 मिनट दुनिया भर के पाठकों के बीच भारत की शान रस्किन बॉन्ड ‘विदेशी’ बने रहे। बेहतर होता कि इस संबंध में रस्किन बॉन्ड और पाठकों से माफ़ी भी माँगी जाती। ख़ैर..जो नहीं है, उसका ग़म क्या…जैसे कि….
.बर्बरीक