MP: सरकार को NBA का पत्र, नागरिक अधिकारों की संरक्षण के लिए ठोस कार्रवाई की मांग

नर्मदा घाटी में गैरकानूनी डूब के ताण्‍डव के बीच नर्मदा बचाओ आंदोलन ने मध्यप्रदेश सरकार को पत्र लिखकर प्रदेश के नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण करने हेतु ठोस कार्रवाई की मांग की है।

एनबीए नेता मेधा पाटकर तथा अन्‍य प्रभावितों से अनशन को समाप्त करने की अपील करते हुए प्रदेश सरकार ने स्‍वीकार किया था कि डूब क्षेत्र में हजारों प्रभावित परिवारों का पुनर्वास बाकी है तथा वह सरदार सरोवर बांध को पूरा भरने के खिलाफ है, लेकिन पिछले दिनों अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के उपाध्‍यक्ष श्री गोपाल रेड्डी तथा मुख्‍यमंत्री कमल नाथ द्वारा केन्‍द्र सरकार को लिखे गए पत्रों में ली गई भूमिका उनके इन आश्‍वासन के अनुरूप नहीं है। इसलिए आंदोलन ने आज गोपाल रेड्डी के नाम सरकार को पत्र लिखा है।

झूठे आंकड़ों का उपयोग बंद हो

पत्र में कहा गया है कि मुख्‍य सचिव के साथ 24 अगस्‍त 2019 को हुई मीटिंग में आंदोलन ने जोर देकर स्‍पष्‍ट किया गया था कि वर्तमान सरकार ने भी पिछली सरकार के झूठे आंकड़ों का उपयोग जारी रखा है। उल्‍लेखनीय है कि सरकार के नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी (एनसीए) को प्रेषित अपने पत्र दिनांक 27 मई 2019 में केवल धार जिले के 76 गांवों के 6000 परिवार प्रभावित होने का उल्‍लेख किया था। पिछली सरकार ने प्रभावितों से धोखाधड़ी करते हुए अलिराजपुर, बड़वानी और खरगोन जिलों पूरी तरह छोड दिया था, हालांकि अब सरकार ने प्रभावित गांवों की संख्‍या सुधारकर 178 कर ली है तथा प्रभावित परिवारों संख्‍या का पता लगाने के लिए सर्वे करवाया जाएगा।

सरकार घोषित भूमिका के अनुरुप कार्रवाई करें

गैरकानूनी डूब से प्रभावितों के अधिकारों के संरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया है। प्रदेश सरकार ने एनसीए और केन्‍द्रीय जलशक्ति मंत्री को लिखे पत्रों में सिर्फ इतनी ही आपत्ति उठाई है कि गुजरात सरकार ने सितंबर की किसी तारीख के बदले 31 अगस्‍त को ही जलस्‍तर 134.50 मीटर तक बढ़ा दिया। सरकार ने बांध के पूर्ण जलाशय स्‍तर तक भरने पर आपत्ति नहीं उठाई है। प्रदेश सरकार का यह कदम बिना पुनर्वास डुबाए जा रहे किसान-आदिवासी, केवट-कहार, कुम्‍हार, पशुपालक, भूमिहीन मजदूरों के हित संरक्षण की प्रदेश सरकार की घोषित भूमिका के खिलाफ है जबकि सभी प्रभावितों के उचित और संपूर्ण पुनर्वास होने तक जलस्‍तर को 122 मीटर तक सीमित करके प्रभावितों के बुनियादी, मानवीय और संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण करना सरकार की जिम्‍मेदारी है।

पत्र में अतिरक्त मुख्‍य सचिव को याद दिलाया गया है कि एनसीए अभी भी पिछली सरकार के उन्‍हीं झूठे शपथ-पत्रों को आधार मान रहा है जिनमें पुनर्वास का ज़ीरो बेलेंस दिखाया गया था। इस फर्जीवाड़े को मैदानी सच्‍चाई आधारित प्रासंगिक और विश्‍वसनीय ठोस तथ्‍यो से खारिज किया जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि संबंधित अधिकारी मुख्‍य सचिव, विभाग के मंत्री और मुख्‍यमंत्री को अवगत करवाए बिना पुराने आधारहीन तथ्‍यों को प्रस्‍तुत कर रहे हैं जिससे प्रभावितों के अधिकारों का हनन हो रहा है।

अप्रिय स्थिति में सरकार जवाबदेह

पत्र में बिना पुनर्वास डुबाए जा रहे प्रभावितों के अधिकारों के संरक्षण हेतु सरकार से तत्‍काल युद्ध स्‍तर पर प्रभावी भूमिका निभाने की मांग की गई है। यदि सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो जिंदा समुदायों की जल समाधि निश्चित हैं। ऐसे में सरकार को प्रभावितों के हित संरक्षण संबंधी उसकी भूमिका और कानूनी जवाबदेही संबंधी हर छोट-बड़े सवाल का जवाब देना होगा।

भागीरथ धनगररेहमत मंसूरीदेवीसिंह तोमरमहेंद्र तोमरकमला यादवजगदीश पटेलमेधा पाटकर


विज्ञप्ति : NAPM द्वारा जारी 

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