हथकरघा उत्पादों पर से कर हटाने की मांग को लेकर पिछले पांच दिन से सत्याग्रह पर बैठे प्रसिद्ध रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता प्रसन्ना के साथ अब देश के तमाम आंदोलन जुड़ेंगे। प्रसन्ना 14 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे हुए हैं क्योंकि कर खत्म करने की मांग को लेकर की गई तमाम गतिविधियों पर जीएसटी काउंसिल की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने दिवाली के दिन 19 अक्टूबर को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए प्रसन्ना के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की है और देश के करोड़ों कामगारों के हक में उठाई गई मांगों को भी समर्थन दिया है।
हाथ से बने उत्पादों पर जीएसटी लगने के बाद दक्षिण भारत में इसके खिलाफ कुछ दिनों पहले कर विरोधी सत्याग्रह शुरू हुआ था जिसे लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने अपना समर्थन दिया था। इसी क्रम में प्रसन्ना ने अपने अनशन का आरंभ किया। हथकरघा उत्पादों पर 5 से 28 फीसदी के बीच कर लगाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके चलते करोड़ों ग्रामीण और वंचित लोगों की आजीविका पर असर पड़ेगा।
एनएपीएम ने विज्ञप्ति में सरकार से मांग की है कि हाथ से बने उत्पादों पर लगे जीएसटी को वह तुरंत वापस ले तो करोड़ों ग्रामीण गरीबों और वंचितों को थोड़ी राहत मिल सके जो पहले से ही नोटबंदी की मार से अब तक मुक्त नहीं हो सके हैं। मांगपत्र पर जिन लोगों ने दस्तखत किए हैं, उनमें मेधा पाटकर, अरुणा रॉय, प्रफुल्ल सामंतरा, बिनायक सेन, कविता श्रीवास्तव, दयामनी बरला, लिंगराज आज़ाद, डॉ. सुनीलम समेत देश भर के तमाम आंदोलनकारी शामिल हैं।
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