अनुच्छेद 370 का मायने भी नहीं जानते ज़्यादातर हिंदी पत्रकार-मीडिया स्टडी ग्रुप
16 से 22 अक्टूबर के बीच हुए इस सर्वे के नतीजे के मुताबिक 46 फ़ीसदी हिंदी पत्रकार कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति के बारे में महज़ अख़बार पढ़कर जानते हैं। केवल 11 फ़ीसदी को इस विषय में अपने शिक्षकों से जानकारी मिली। 11 फ़ीसदी ऐसे भी हैं जिन्होंने भाषण सुनकर अपनी राय बनाई और 16 फ़ीसदी को अनुच्छेद 370 के बारे में जानकारी लोगों से बातचीत के दौरान मिली।
मीडिया स्टडी ग्रुप के प्रकाशन ‘जन मीडिया’ के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िय ने सर्वे के नतीजों का विश्लेषण किया है। उनके मुताबिक इससे हिंदी पत्रकारों की मानसिक बुनावट की प्रक्रिया का पता चलता है। सर्वे के दौरान 80 फ़ीसदी पत्रकारों ने दावा किया कि वे अनुच्छेद 370 के राजनीतिक पृष्ठभूमि से वाक़िफ़ हैं और उन्होंने इसके बारे में पढ़ा है,वहीं 20 फ़ीसदी हिंदी पत्रकारों ने माना कि वे इस बाबत कुछ भी नहीं जानते। 67 फ़ीसदी ने माना कि कश्मीर के बारे में उनकी जानकारी का स्रोत महज़ अख़बार हैं जबकि 17 फ़ीसदी ने कहा कि वे पत्रिकाओं के ज़रिये कश्मीर को जानते हैं। केवल 1 फ़ीसदी पत्रकार ऐसे मिले जिन्होंने कहा कि उन्होंने कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले को समझने के लिए रिसर्च पेपर जैसी चीजें पढ़ी हैं।
कश्मीर के राजनीतिक इतिहास के बारे में पूछने पर पता चला कि 58 फ़ीसदी हिंदी पत्रकारों को इस बाबत अख़बार और पत्रिकाओं से जानकारी मिली। 23 फ़ीसदी ने कहा कि उन्होंने इस संदर्भ में पाठ्यपुस्तकों का सहारा लिया। छह फ़ीसदी ऐसे भी मिले जिन्होंने इस संदर्भ में शोधपत्र वग़ैरह भी पढ़े। सर्वे में शामिल पत्रकारों में से 30 फ़ीसदी को बिलकुल भी नहीं पता कि विभाजन के समय पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए तमाम कश्मीरियों ने अपनी जान क़ुर्बान की थी। हालाँकि 70 फ़ीसदी ने कहा कि उन्हें विभाजन के बाद पाकिस्तानी सैनिकों से मोर्चा लेने वाली कश्मीरियों की क़ुर्बानी की जानकारी है।
सर्वे में शामिल होने वाले केवल 42 फ़ीसदी पत्रकारों को कश्मीर की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी थी। 23 फ़ीसदी इसके बारे में बहुत कम जानकारी थी। ज़्यादातर कश्मीर को प्राकृतिक सौंदर्य, फ़िल्म शूटिंग और आतंकवाद के नजऱिये से ही देखते हैं। केवल 8 फ़ीसदी ऐसे थे जिन्होंने कश्मीर जाकर ज़मीनी हक़ीक़त का जायज़ा लिया था। जब पत्रकारों से पूछा गया कि क्या उन्हें हाल में किसी ऐसी ख़बर का ध्यान है जो कश्मीर की ख़ूबसूरती, फ़िल्म शूटिंग या आतंकवाद से इतर हो तो 46 फ़ीसदी ने इंकार किया। यह बताता है कि कश्मीर के आर्थिक और सामाजिक पहलू पर अध्ययन सामग्री की कितनी कमी है।
चौंकाने वाली बात यह रही कि सर्वे में शामिल 24 फ़ीसदी पत्रकार मानते हैं कि कश्मीर से केवल हिंदुओं का पलायन हुआ है। 58 फ़ीसदी पत्रकार कश्मीर के झंडे को
सर्वे में शामिल कुल हिंदी पत्रकारों के 49 फ़ीसदी मानते हैं कि समस्या के समाधान के लिए कश्मीर की अवाम से बातचीत होनी चाहिए। 19 फ़ीसदी ने जनमतसंग्रह की बात की तो 20 फ़ीसदी ने पाकिस्तान को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय बातचीत को रास्ता बताया। केवल 10 फ़ीसदी पत्रकारों ने सैन्य समाधान की वक़ालत की। सिर्फ़ एक फ़ीसदी पत्रकार ऐसे निकले जिन्होंने कहा कि केवल भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय वार्ता से कश्मीर समस्या का समाधान हो सकता है।
सर्वे में शामिल हिंदी पत्रकारों में 36 फ़ीसदी उत्तर प्रदेश, 26 फ़ीसदी बिहार, 9 फ़ीसदी मध्यप्रदेश, 7 फ़ीसदी राजस्थान, 6 फ़ीसदी से थे जबकि झारखंड तथा छत्तीसगढ़ से एक-एक फ़ीसदी थे। इसके अलावा सर्वे में शामिल पत्रकारों में 73 फ़ीसदी हिंदू और 4 फ़ीसदी मुसलमान थे। कुल पत्रकारों के 41 फ़ीसदी अख़बारों से जुड़े हैं जबकि 17 फ़ीसदी टेलिविज़न चैनलों से। 11 फ़ीसदी पत्रकार इंटरनेट माध्यमों में काम कर रहे हैं जबकि 5 फ़ीसदी पत्रकार पत्रिकाओं में काम करते हैं। सर्वे में शामिल दो फ़ीसदी पत्रकारों का रिश्ता रेडियो से है।
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कश्मीर सर्वे pdf