हरियाणा में ऐतिहासिक चक्काजाम, रोडवेज़ के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन चरम पर
मीडिया विजिल
Published on: Wed 31st October 2018, 01:08 PM
कविता विद्रोही
हरियाणा रोडवेज के लगभग 19 हजार कर्मचारी गत 16 अक्तूबर से हरियाणा सरकार द्वारा रोडवेज के निजीकरण की नीति के खिलाफ हड़ताल पर हैं और सरकार के अड़ियल व तानाशाही रवैये के चलते राज्य में पूरी तरह से रोडवेज का चक्का जाम है। रोडवेज कर्मचारियों की एकमात्र मांग है कि खट्टर सरकार 720 निजी बसों को किलोमीटर स्कीम के तहत किराये पर लिए जाने के फैसले को तुरंत रद्द करे। प्रदेश का तमाम कर्मचारी वर्ग, शिक्षक वर्ग, छात्र-नौजवान, महिलाएं, पड़ोसी प्रदेशों के रोडवेज कर्मचारी हरियाणा रोडवेज कर्मचारियों के समर्थन में उतर आये हैं। लेकिन प्रदेश की बीजेपी सरकार अपने चंद चहेते पूंजीपतियों के हितों को पूरा करने के लिए निजीकरण के खिलाफ चल रहे इस आंदोलन को एस्मा कानून लगाकर, रोडवेज नेताओं व उनके समर्थन में आए लोगों को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंसकर, झूठे मुकद्में बनाकर, निलंबन व बर्खास्तगी के जरिए दबाने की नीति अपनाये हुए है। सरकार ने एस्मा के तहत 1222 मामले दर्ज किए हुए हैं, 275 गिरफ्तारियां हुई हैं और 245 को जमानत पर रिहा किया गया है।
हरियाणा सरकार किलोमीटर स्कीम के तहत 720 निजी बसों को किराये पर लेने के लिए तुली हुई है। बताया जा रहा है रोडवेज विभाग इन प्राइवेट बसों को 36 रूपये से 41 रूपये प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान करेगा और 300 किलोमीटर तक का किराया देना अनिवार्य होगा। इसके अलावा परिचालक का वेतन, 20 प्रतिशत यात्री टैक्स आदि को मिलाकर विभाग को एक बस लगभग 55 रूपये प्रति किलोमीटर की दर से पड़ेगी। वर्तमान में सरकारी बस पर 46 रूपये प्रति किलामीटर का खर्च आता है। रोडवेज कर्मचारियों का कहना है कि जितना पैसा प्राइवेट बसों को किराए पर लाने में खर्च किया जाएगा उतने में तो सरकारी बसें खरीदीं जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार अगर सरकार 40 रूपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया दे तो प्रतिदिन एक बस मालिक को 12000 रूपये देने होंगे, महीने में 3.60 लाख रूपये, यानी 720 बसों के लिए 25 करोड़ 92 लाख रूपये बतौर किराया दिया जायेगा, जबकि बसें फिर भी सरकार की नहीं होंगीं। इतनी रकम में प्रत्येक माह में 144 और पूरे साल में सरकार 1728 बसें खुद खरीद सकती है। सरकार प्राइवेट बसों से 12000 रूपये महीना यात्री कर लेती है जबकि रोडवेज की सरकारी बस 36000 रूपये महीना यात्री कर सरकार को देती है।
सरकार संसाधनों की कमी व घाटे का बहाना बनाकर 720 प्राइवेट बसों को चलाना चाहती है। हालांकि निजी बसों को किराये पर लेकर घाटे को पूरा करने का सरकार का दावा बिल्कुल बेतुका व निराधार है लेकिन रोडवेज कर्मचारियों ने इस पर भी सरकार को घेर लिया है। रोडवेज कर्मचारियों ने सरकार को पेशकश की है कि वे अपना एक-एक महीने का वेतन देने के लिए तैयार हैं या उनके वेतन का 20 प्रतिशत 10 महीने तक काट लिया जाए (जो उन्हें रिटायरमेंट के समय लौटा दिया जाए) और सरकारी बसें खरीद ली जाएं। प्रदेश के शिक्षकों ने ऐलान किया है कि वे 100 बसें सरकार को खरीद कर दे देंगे। सरकार के पास कोई बहाना नहीं बचा है। लेकिन बीजेपी सरकार अपने चंद चहेतों के मुनाफों के लिए रोडवेज के निजीकरण करने की हठधर्मिता कर रही है। ‘साफ नीयत, सही विकास’ का राग अलापने वाली बीजेपी सरकार की नीयत का यह खोट किनके विकास के लिए इतना जग जाहिर हो रहा है?
रोडवेज कर्मचारियों का तो यहां तक कहना है कि निजी बसों को ठेके पर लेने की इस नीति के जरिए बड़ा घोटाला किया जा रहा है, सरकार के अपने ही आदमियों को टेंडर दिये जा रहे हैं। हरियाणा सरकार के परिवहन मंत्री कृष्ण पवार पर ही निजीकरण के बहाने अपनी बसें लाने के आरोप भी लग रहे हैं। रोडवेज यूनियनों का कहना है कि प्राइवेट मालिक बसें लोन लेकर ही खरीदते हैं और माल्या, नीरव मोदी जैसे कितने प्राइवेट लोग बैंकों का लाखों करोड़ रूपये लेकर भगोड़े हो चुके हैं। अगर सरकार बैंक को गारंटी दे तो विभाग ही नई बसों को लोन पर ले सकता है। रोडवेज कर्मचारियों का कहना है कि सरकार घाटे का बहाना बनाकर रोडवेज विभाग को ही बंद करना चाहती है, असल में रोडवेज में किसी प्रकार का घाटा नहीं है, सरकार के ऊपर बैठे अधिकारी व मंत्री अपने कमीशन के लिए बसों के स्पेयर पार्ट व अन्य सामान बाजार से दोगुना-तिगुना दामों में खरीदते हैं जो कि घाटे का कारण है। प्राइवेटाइजेशन के द्वारा भ्रष्टाचार को और बढ़ावा दिया जाएगा।
रोडवेज यूनियन नेताओं का कहना है कि लगभग 1150 बसें स्टॉफ की कमी के चलते विभिन्न डिपों में खड़ी हैं, सरकार स्टॉफ भर्ती करने की बजाय रोडवेज को ही निजी हाथों में सौंपकर भविष्य में सरकारी रोजगार के रास्ते को ही बंद करना चाहती है। रोडवेज कर्मचारी लम्बे समय से रोडवेज के निजीकरण के खिलाफ लड़ाई रहे हैं। भजनलाल सरकार के दौरान 1993 में भी निजीकरण के खिलाफ रोडवेज की हड़ताल आठ दिनों तक चली थी। सन् 2013 और जनवरी 2014 में भी रोडवेज कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ मोर्चा खोला था। प्रदेश में चौटाला सरकार रही हो, हुड्डा सरकार या खट्टर सरकार सभी ने निजीकरण की नीति को ही आगे बढ़ाया है। 1993 में 1000 परमिट प्राइवेट बसों के मालिकों को दिये थे जिससे जनता आज तक पेरशान है।
हालांकि रोडवेज कर्मचारियों की यह हड़ताल कोई वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी की मांग को लेकर नहीं हैं, वे जनता के नाम जारी अपनी अपील में बार-बार दोहरा रहे हैं कि यह हड़ताल रोडवेज के निजीकरण के खिलाफ है और भविष्य में युवकों के रोजगार बचाने के लिए है लेकिन फिर भी हरियाणा सरकार अखबारों में लाखों रूपये खर्च कर विज्ञापन छपवाकर दुष्प्रचार करने में लगी है कि रोडवेज कर्मियों को बढि़या वेतन-भत्ते दिये जाते हैं लेकिन फिर भी वे हर रोज हड़ताल पर चले जाते हैं और जनता को परेशान किया जाता है। इस दुष्प्रचार का एकमात्र मकसद है हड़ताल के असली कारण पर पर्दा डालना और लोगों को गुमराह करना। अखबारों में दुष्प्रचार, रोडवेज में अस्थायी भर्तियों के इश्तिहार, निजी बसों के सहारे सरकार हड़ताल को तोड़ना चाहती है। नौसिखिये ड्राइवरों व अन्य विभागों से कर्मचारियों को बसें थमाकर आम जनता के जीवन को खतरे में डाला जा रहा है। हर रोज जगह-जगह से दुर्घटनाओं के वीडियो सामने आ रहे हैं। लेकिन सरकार जनता की जान की कोई परवाह न करते हुए चंद पूंजीपतियों के हितों में काम करने के लिए अडि़यल रवैया अपनाये हुए है। चक्का जाम के चलते रोडवेज को हर रोज 8 से 9 करोड़ रूपये का घाटा हो रहा है। जनता को हो रही असुविधा और उनके नुकसान के लिए हरियाणा सरकार पूरी तरह से जिम्मेवार है।
एक अनुमान अनुसार हरियाणा प्रदेश में औसतन 1 लाख 72 हजार विद्यार्थी पास सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। इनमें 40 प्रतिशत लड़कियां है जिनको पूरी तरह निशुल्क यात्र सुविधा है, 60 प्रतिशत लड़कें हैं जिनको महीने में दस टिकटों के बदले पास सुविधा दी जाती है। लगभग 12 लाख यात्री रोजाना रोडवेज बसों में सफर करते हैं। हरियाणा रोडवेज 45 श्रेणियों को यात्र करने में किराया छूट की सुविधा प्रदान करती है जिसमें बुजुर्ग, विकलांग, महिलाएं, खिलाड़ी आदि को मिलने वाली किराया छूट शामिल हैं। प्राइवेट बसों में आम जनता की न सिर्फ ये सुविधाएं खत्म होंगी बल्कि यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा भी ताक पर होगी। प्राइवेट बसों की मनमानी, महिलाओं से अभद्र व्यवहार, सवारियों की होड़ में झगड़ों से आम जनता पहले ही परेशान है। पंजाब और दिल्ली में प्राइवेट बसों में महिला असुरक्षा के कितने उदाहरण हमारे सामने हैं।
केन्द्र सरकार के नियम अनुसार जनता को सुविधाजनक व सुरक्षित यात्र मुहैया करवाने के लिए एक लाख आबादी पर 60 बसें होनी चाहिए, यानी नियमानुसार हरियाणा की आबादी (लगभग 3 करोड़) अनुसार 18000 बसें होनी चाहिए। वर्तमान में हरियाणा रोडवेज की लगभग 4100 बसें हैं जो कि सन् 1992-93 में भी लगभग इतनी (3900) ही थी जब प्रदेश की आबादी लगभग 1 करोड़ थी। रोडवेज कर्मचारियों की मांग है कि प्राइवेट बसों को किराये पर लेने की बजाय सरकारी बसों के बेड़े में 14000 बसें जोड़ी जाएं। हरियाणा रोड़वेज में एक बस पर छह युवकों को रोजगार मिलता है, इस तरह 84000 बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा। लेकिन खट्टर सरकार रोडवेज के निजीकरण द्वारा सरकारी नौकरी ही खत्म करने पर तुली है। रोडवेज कार्यशाला में 1993 के बाद से कोई भर्ती ही नहीं हुई है। जो रिटायर हो गए है उनकी जगह कोई भर्ती नहीं हुई है। खट्टर सरकार चुनाव में वादा कर के आयी थी कि हर साल एक हजार सरकारी बस लाई जाएंगी। असलियत यह है कि भाजपा सरकार बनने के बाद चार साल में सिर्फ 62 नई बसें ही मार्च 2015 में लाई गईं जबकि सैंकड़ों बसें हर साल नकारा हो जाती हैं या कुछ छोटे-मोटे स्पेयर पार्ट्स की कमी के चलते कबाड़ा बनती रहती हैं। सरकारी बसों को बढ़ाना तो दूर सरकार रोडवेज को ही निजी हाथों में सौंप देना चाहती है। सरकार पंजाब, यूपी, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश की तरह हरियाणा रोडवेज को निगम बनाने की सोच रही है। सरकार की निजीकरण की यह मुहिम बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य हर क्षेत्र में चल रही है।
निजीकरण के खिलाफ अब यह हड़ताल सिर्फ रोडवेज कर्मचारियों तक सीमित नहीं रही है बल्कि हरियाणा की सैंकडों कर्मचारी यूनियनें, तमाम शिक्षक यूनियनें, आशा वर्कर्स, सामाजिक जन संगठन, छात्र-महिला संगठन इस हड़ताल के समर्थन में आ गए हैं। जगह-जगह भूख हड़ताल, धरने-प्रदर्शन जारी है। कई ग्राम पंचायतों ने हड़ताल के समर्थन में प्रस्ताव पारित किये हैं। रोहतक में 27 ग्राम पंचायतों ने मिलकर रोडवेज कर्मियों के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया व हजारों लोगों ने निजीकरण के खिलाफ विरोध दर्ज करवाया। प्रदेश के लगभग 2 लाख कर्मचारियों व शिक्षकों ने गत 26 अक्तूबर को सामूहिक अवकाश लिया था। अभी 30-31 अक्तूबर को भी राज्यव्यापी हड़ताल का ऐलान है। रोडवेज कर्मचारियों की आम जनता से अपील है कि निजीकरण के खिलाफ चल रहे इस आंदोलन में वे उनका पूरा सहयोग दें और सरकार द्वारा कर्मचारियों पर चलाए जा रहे दमन चक्र का पुरजोर विरोध करें।