2019 चुनाव में मोदी को नहीं हराया तो न लोकतंत्र बचेगा, न विपक्ष- अरुण शौरी

मुंबई में 10 अगस्त 2018 को ‘राष्ट्र मंच‘ की सभा में अरुण शौरी के भाषण का अंश

 

…अब और कोई बात बढ़ाने की गुंजाइश नहीं है कि डेमोक्रेसी और कांस्टिट्यूशन खतरे में है। अभी एक शब्द यूज किया गया ‘न्यू नॉर्मल।’ इसको समझना चाहिए कि हम आदी हो जाते हैं किसी चीज के। शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि 72 ‘ lynching deaths’ (सामूहिक रूप से पीट-पीटकर मार डालना) की घटनाएं हो गई हैं। क्या आप जानते हैं राइट टु इनफार्मेशन में जिन लोगों ने सिर्फ इंफॉर्मेशन मांगी एक कानून के तहत, उनमें से कितने लोग मारे गए है? 63 लोग, मगर किसी पेपर ने भी नहीं छापा होगा। सोहराबुद्दीन के मर्डर के केस में कितने गवाह है जो अपने बयान से पलट गए हैं? तकरीबन 54 के करीब। यूपी में एनकाउंटर्स में कितने लोग मारे गए है? दिल्ली के पेपर्स में भी अगर एक इंच का आइटम आता होगा तो वह भी कॉमर्स पेज पर या और कहीं… या सीबीआई को किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है… तो यह सब एक ‘न्यू नॉर्मल’ हो गया है….इसका मतलब है कि जब हम किसी नई व्यवस्था के आदी बन जाते हैं उससे अगर दो इंच और ज्यादा कुछ खराब होता है तो हमें लगता है कि कोई बात नहीं, यह तो होता ही रहता है। दैट इज द एंड ऑफ द सिस्टम। कहा जाता है, हालांकि मैंने यह एक्सपेरिमेंट नहीं किया है, लेकिन बताते हैं कि अगर आप उबलते पानी में मेंढक को फेंक दें तो वह उछल कर बाहर आ जाएगा और वह बच जाएगा। लेकिन अगर उसी मेंढक को रूम टेंपरेचर पर किसी पतीले में डालिए और उसे आहिस्ता-आहिस्ता गर्म कीजिए और उबालिए तो वह उसका आदी होता जाता है और फिर मर जाता है। हमारी वही हालत हो गई है। हम सब इन चीजों को अपनी लाइफ में अनुभव करते हैं।

मैं डिफरेंस ऑफ ओपिनियन से शुरू करके एक ही बात पर आऊंगा कि अब हम क्या करें। हम समझ तो गए हैं कि यह हो रहा है लेकिन अब करना क्या चाहिए! डिफरेंस ऑफ ओपिनियन यह है, दिनेश ने जैसे कहा कि इन्हें कांफिडेंस है कि पार्लियामेंट फिर से ठीक होगा, कॉन्फिडेंस है कि जुडिशरी फिर से ठीक होगी। मुझे यह कोई कॉन्फिडेंस नहीं है क्योंकि तवारीख सिखाती है कि कोई तय नहीं, सिस्टम्स टूट जाते हैं, कंट्रीज खत्म हो जाती हैं, डेमोक्रेसीज डिक्टेटरशिप में बदल जाती हैं। इसलिए हमें देखना चाहिए कि हम क्या करेंगे।

इसलिए मैं उसके बारे में दो-तीन सुझाव देना चाहता हूं और सिर्फ तीन कैटेगरी के लिए। एक मेरी जमात के लिए यानी मीडिया के लिए, दूसरा आपके लिए और तीसरा हमारी जो अपोजीशन पार्टी हैं उसके लिए। देखिए, कहा जा रहा है कि मीडिया में डर पैदा हो गया है। मुझे यह नहीं लगता कि डर है, मुझे लगता है कि यह लालच है और डर का एक बहाना बनाया जा रहा है। दिल्ली के बाहर तो कोई भी डर नहीं है और दिल्ली में भी अब कम डर है। मगर वे चीजें छप नहीं रही है। वह इसलिए छप नहीं रही हैं… देखिए मैंने भी मीडिया में काम किया था…हमारा कोई हिडेन एजेंडा नहीं है, हमारा ओपन एजेंडा है कि सरकार गलत चीजें कर रही है, हम उसका विरोध करेंगे। इसमें शर्माने की क्या बात है, जोश मलीहाबादी की लाइन है ‘जुल्म करता है दुश्मन और हम शर्माए जाते हैं।’ मीडिया भी ये जानता है। मैं आपको बताता हूं ये क्या कर लेंगे और किस चीज से यह मीडिया डर रहा है कि गवर्नमेंट का एडवर्टाइजमेंट रुक जाएगा।  आपको याद होगा कि जब बोफोर्स का मामला मैं और मेरे साथी इंडियन एक्सप्रेस में लिख रहे थे तो हमारे ऊपर कितने केस थे, कितने रेड हुए थे, कितनी इन्क्वायरीज थीं? अभी मेरे दोस्त गुरुमूर्ति ने गिनती की कि 326 क्रिमिनल केस, इंक्वायरीज, रेड्स वगैरह थे। कोई डर नहीं था। तो मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि क्या चीज हो जाएगी अगर वह एडवर्टाइजमेंट रोक देंगे? क्या चीज हो जाएगी अगर डिसमिस हो जाओगे आप? इंडिया में उस समय तक तीन एडिटर थे जो डिसमिस हुए थे। स्टेट्समैन से प्राण चोपड़ा, फिर जार्ज वर्गीज हिंदुस्तान टाइम्स से और तीसरा मैं था इंडियन एक्सप्रेस से। मगर हिंदुस्तान में एक ही एडिटर था जो दो बार डिसमिस हुआ था, और वह मै हूं। और अभी भी मैं आपके सामने खड़ा हूं और आप अभी भी तालियां बजा रहे हैं… सो देयर इज लाइफ आफ्टर डिसमिसल।

आप कहते हो कि दो सौ लोग हैं जो मानीटर कर रहे हैं कि चैनल में क्या आ रहा है? ठीक है, आ रहा है तो आने दो। डर क्या है! वी आर नॉट इन द कंडीशन इन व्हिच पीपल आर इन अदर डिक्टेटरशिप। वी आर फ्री, वी आर मीटिंग हियर टुडे। सो आई रियली डोंट थिंक दैट इट इज फियर। बाइबिल में कहा है कि आप एक ही समय अल्लाह की और शैतान की इबादत नहीं कर सकते। पहले यह होता था कि कुछ बिजनेस होता था उसमें से पैसे लेकर आप अखबार चलाते थे, अब आप अखबार चलाते हो इसलिए कि उससे कुछ लीवरेज मिल सके अपना बिजनेस चलाने की। इसलिए मैं नहीं समझता कि कोई कारण है कि हम सरकार से डरें। आप लालच छोड़िए तो आप फ्री होंगे।

अगर मीडिया आज अपना काम ना करे और मेरी राय में जो इसटेब्लिसड मीडिया है वह काम नहीं कर रहा है। एक ही पेपर, जो इंडियन एक्सप्रेस है, वह काम कर रहा है और एनडीटीवी चैनल है जो काम कर रहा है! इसलिए हमें इस दौर में सोचना चाहिए कि हमें क्या करना चाहिए क्योंकि कल इंडियन एक्सप्रेस का गला दबाया जा सकता है या NDTV को स्विच ऑफ किया जा सकता है। तो फिर क्या करें! इसलिए जो हथियार मोदी ने इस्तेमाल किया है वही इस्तेमाल करना शुरू कीजिए-वह सोशल मीडिया है। अभी आप अपने कैमरे से सारा वीडियो ले रहे हो आप जनर्लिस्ट बन सकते हो। चैनल वाले सरकार के दबाव से एक भी लिंचिंग नहीं दिखाते। लेकिन आपका कैमरा है, आप सारा वीडियो बना कर अपने दस दोस्तों को दीजिए, वे फिर दस को देंगे और शाम तक सारे हिंदुस्तान में ख़बर फैलेगी! गांधी जी कहा करते थे- दि हैंड्स ऑफ़ विलिंग कोपीस्ट्स आर आवर प्रिंटिंग प्रेस यानी सरकार जिस खबर को नहीं प्रचारित होने देना चाहती अगर उसी को हम एक पोस्टकार्ड पर दस लोगों को लिखकर भेजेंगे वही हमारी प्रिंटिंग प्रेस है।

सरकार के बारे में मत सोचिए कि वह क्या करेगी? वह तो करेगी। ये हम सोचें कि हम क्या करें! अहमद फ़राज़ की बहुत अच्छी लाइन है – शिकवा-ए-जुल्मते शब से तो बेहतर था कि अपने हिस्से की एक शमा जलाते जाते। देखिए आप एक सब्जेक्ट लीजिए, मोदी का एक वायदा लीजिए, उसी को फॉलो कीजिए, उसी के बारे में फैक्ट्स  निकालिए। वह कहते हैं कि मुद्रा से पांच करोड़ जॉब हो गए तो आप एक ही चीज पकड़िये और देखिए कि हुए क्या? वो कहते हैं कि डीमनेटाईजेशन से ब्लैक मार्केट बंद हो गयी। आप अंबानी का घर देखें जरा छोटा हुआ है क्या? वे बड़े लोग कोई पैसे रखते हैं क्या? और वे यहां रखेंगे क्या? एक एक आदमी एक विषय को लेकर, एक प्रॉमिस को लेकर उसको गहराई में सर्च कर अपने दोस्तों में फैलाता रहे फिर वे जितने भी मीडिया को बंद करना है करते रहें- लोगों को चीज पता लग जाएगी। और जितना ज्यादा वे प्रोपगेंडा करेंगे अपना काम होगा क्योंकि लोग उस प्रोपगेंडा को अपनी लाइफ से कंपेयर करेंगे। तो सरकार से इतना डरना नहीं चाहिए। हमें जो करना चाहिए वह मैंने आपसे एक चीज़ कही- एक इंस्टिट्यूशन को लीजिए, एक प्रॉमिस को लीजिए, एक जुमले को लीजिए उसी पर रिसर्च कर फैक्ट्स अपने फ्रेंड्स को पहुंचाइए। इतना काफी रहेगा।

अब हमें आगे के बारे में सोचना है और इसमें मैं ज्यादा टाइम नहीं लूंगा। अब आप यह सोचिए कि जो जो उदाहरण आपको दिये गए हैं उसके अनुसार 2019 इज दि लास्ट चांस टु रिवर्स दि कोर्स। अगर इस बार आपने रेल नहीं पलटाई तो उसके बाद डेमोक्रेसी वगैरा आप भूल जाइए। ये तो ट्रेलर होंगे जो आपने अभी तक देखे। मैं पहले हमेशा कहा करता था कि यह ढाई लोगों की सरकार है, ढाई लोगों की पार्टी है- एक मोदी और एक शाह और बेचारा आधा अरुण जेटली जो ट्राइंग टु बी यूज़फुल। वह उनकी वकालत करने में लगा हुआ है। अब मैं कहता हूं कि यह एक, और तीन चौथाई लोगों की सरकार है। एक कौन है? अमित शाह–मोदी नहीं, क्योंकि मोदी तो अपनी फोटो खिंचाने में लगा हुआ है, वह इवेंट मैनेजमेंट में इतना व्यस्त है इसलिए जो मेन एजेंसीज हैं सीबीआई, एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट, सीरियस फ्राड्स ऑफिस ये सब अमित शाह को रिपोर्ट करते हैं। इनकी मेंटलिटी क्या है यह आप संजय से पूछिए, हमारे वकील साहेब से पूछिए वह जानते हैं।

यह नक्शा मन में रखकर आप सोच सकते हैं कि अगर 2019 में वे  वापस आ जाते हैं तो उसका क्या हश्र होगा। वो यह जानते हैं कि जिस तरह वो आए थे पिछली बार अब वह चीज उनसे काफी दूर चली गई है। यूथ उनके साथ नहीं है, ट्रेडर उनके साथ नहीं है, स्माल और मीडियम इंटरप्राइजेज उनके साथ नहीं हैं, फार्मर उनके साथ नहीं हैं इसलिए वह जानते हैं कि उनके पैर के नीचे से जमीन खिसक चुकी है। तीसरा, वो जानते हैं कि अगर वे वापस नहीं आते तो फिर वे बहुत खतरे में होंगे। इसलिए वे वापस आने के लिए जो भी जरूरी है, करेंगे- लोगों को बांटना, मरवाना, दहशत फैलाना-जो भी उनको लगता है कि वापस आने के लिए अनिवार्य है वो करेंगे। इसलिए आप यह देखिए कि दि कंट्री विल बी इन पेरिल इफ दे कम बैक। मगर अपोजीशन पार्टी के जो लीडर्स हैं, वे कंट्री को भूलें, यशवंत जी कहते हैं कंट्री विल बी इन डेंजर….आप अपने मित्रों को समझाइए कि कंट्री तो डेंजर में होगी ही, मगर वह पर्सनली खुद भी डेंजर में होंगे। मोदी उनमें से किसी को नहीं छोड़ेगा क्योंकि वह हर एक को दुश्मन समझता है।

इसे देखते हुए मुझे उनको चार-पांच सुझाव देने हैं। पहली चीज तो यह है- प्लीज डू नॉट स्टैंड ऑन योर  प्रेस्टीज (आप अपनी नाक का सवाल न बनाइये )। यह जो राज्यसभा का डिप्टी चेयरमैन का चुनाव था  उसके बारे में खबर मिली कि हमारे मित्र अरविंद केजरीवाल ने कहा पहले राहुल गांधी हमें फोन करें। राहुल गांधी कहते हैं कि मैं क्यों फोन करूं, और इसी में चीज हाथ से चली जाती है। अब एक तरफ तो आप कहते हैं कि कंट्री इज इन डेंजर और दूसरी तरफ कहते हैं कि यार तुमने तो फोन नहीं किया!… कई बार यह कहा जाता है कि तीन-तीन, चार-चार सीट पर एलायंस टूट जाता है, अंडरस्टैंडिंग नहीं होती। अरे एक तरफ कंट्री का सवाल है, आपकी जान का सवाल है और आप 3-4 सीट के लिए एक दूसरे का सर तोड़ रहे हो। अरविंद केजरीवाल जी ने आज कहा कि हम तो अकेले जाएंगे, हरियाणा में लड़ेंगे और दिल्ली में भी। मायावती जी भी कहती हैं कि मुझे इतनी सीट चाहिए… एक्सप्लेनेशन है कि यह तो ओपनिंग मूव है बारगेनिंग के लिए …70 सीटें मांगेंगे फिर 35 पर राजी हो जाएंगे। लेकिन उसका इफेक्ट पब्लिक माइंड में यह होता है कि इकट्ठे तो हो नहीं सकते, सरकार क्या चलाएंगे!

दूसरी चीज यह है कि फॉरगेट दि पास्ट। उसने मुझे यह कहा था, पिछली बार इलेक्शन में मुझे धोखा दिया था वगैरह वगैरह … इसीलिए मैं कहता हूं फॉरगेट दि पास्ट। मैं तो यह भी कहता हूं कि फॉरगेट दि फ्यूचर फॉर दि टाइम बीइंग कि आज मैं इनके साथ मिलकर इलेक्शन लड़ रहा हूं कल मुझे इन्हीं का स्टेट असेंबली में विरोध करना पड़ेगा। उस टाइम को आप भूल जाइए। वह टाइम शायद आएगा ही नहीं अगर आप अभी मिल कर नहीं चलोगे तो।

तीसरा मेरा सुझाव यह है कि प्लीज एक दूसरे के बारे में पब्लिक में बात न करिए। ‘एक दूसरे के बारे में नहीं’ बल्कि ‘एक दूसरे से’ बात कीजिए। अगर कोई समस्या है संबंधों में तो उनसे प्राइवेट में बात कीजिए।

एक बात और–31 और 69 की संख्या हर आदमी को याद रखना चाहिए। इसका क्या मतलब है? अपनी पॉपुलैरिटी के शिखर पर मोदी को 31परसेंट वोट मिले। अगर आप एक हो जाते हैं तो आपकी शुरुआत ही 69 परसेंट वोट से हो सकती है। इसलिए आप सब यह मिलकर प्रण लीजिए कि बीजेपी के एक कैंडिडेट के अगेंस्ट हम एक कैंडिडेट खड़ा करें। फिर देखिए वह कहीं जा ही नहीं सकते। मगर यह प्रण लेना बहुत आवश्यक है।

90 और 60 नंबर को भी याद रखिए जो मेरे दोस्त राजेश जैन कहा करते हैं । क्या है इसका मतलब कि वे स्टेट्स जो कि 60 फ़ीसदी मेंबर लोकसभा में पहुंचाते हैं उनका 90 परसेंट सीट्स मोदी ले गया था इसलिए वह जीता। यू पी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान। एक तो इसमें कांफिडेंस की बात ये है कि इस बार उसमें वह 90% सीट ले ही नहीं सकता। मगर दूसरी बात यह है कि उन स्टैट्स पर जरूर फोकस करना बहुत जरूरी है। तीसरी बात यह है कि जिन स्टेट पर अब वह फोकस कर रहा है कि भाई हमें यहां 50 सीट का नुकसान होगा तो फलां स्टेट से मेकअप कर सकता हूं इसलिए वहां आप जरूर ध्यान दें और वहाँ वन टु वन फाइट ज़रूर सुनिश्चित कीजिये।

 

 

वरिष्ठ पत्रकार अरुण शौरी, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री थे।

 



 

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