नोटबंदी में पति को गँवाने वाली वीणा का विलाप और ‘राजा निरबंसिया’ का अट्टहास!

डॉ.पंकज श्रीवास्तव


राजा निरबंसिया….!

आपने ठीक समझा। शीर्षक में इस देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी को ही निरबंसिया कहा गया है। निरबंसिया यानी जिसका वंश आगे न चले, जिसके बच्चे न हों।

ठहरिए, इसके पहले कि आप देश के प्रधानमंत्री के प्रति ‘अपमानजनक विशेषण’ के इस्तेमाल के लिए इन पंक्तियों के लेखक को लानत भेजें, उसका निवेदन भी पढ़ लीजिए। (यह निवेदन उनसे नहीं है जो ‘देशद्रोही’ का तमगा बाँटते घूमते हे। वे ऐसा करने को आज़ाद हैं।)

निश्चित ही किसी के बच्चे न होने का ताना देना, असभ्यता है, गाली है। क्रूरता है। संवेदनहीनता का चरम है। तमाम लोग इस संतान न होने पर जीवन भर घुलते रहते हैं। न जाने कितने डॉक्टर, ओझा, पीर, फ़कीर की चौखट पर माथा रगड़ते हैंं सिर्फ़ एक संतान के लिए। उन्हें निरबंसिया कोई कठकरेज ही कह सकता है।

लेकिन अपनी पत्नी से अलग रहने वाले प्रधानमंत्री मोदी को संतानहीन होने का कोई दुख नहीं है। वे तमाम चुनावी सभाओं में बार-बार कहते पाए जाते हैं कि उनका आगे-पीछे कोई नहीं है। बाल-बच्चा, परिवार नहीं। वे किसके लिए भ्रष्टाचार करेंगे! यानी अपने ‘निरबंसिया’ होने को उन्होंने अपनी योग्यता के रूप मे प्रचारित किया है।

(हालाँकि शास्त्रों में कहा गया है कि राजा का भरा-पूरा परिवार होना चाहिए ताकि वह रिश्तों की मधुरता और संवेदना का अहसास कर सके। वरना वह क्रूर हो जाता है।)

ऐसे में  पीएम मोदी को राजा निरबंसिया कहना, उनका अपमान नहीं, ख़ुद के बारे में उन्हीं की व्याख्या को शब्द भर देना है। वीणा देवी के करुण विलाप को सुनने के बाद कोई दूसरा शब्द ज़ेहन में आया भी नहीं। आख़िर कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है कि नोटबंदी में मारे गए लोगों के परिजनों के दुख की मियाद एक साल तय कर दे। मोदीजी पिता होते तो समझ सकते थे कि संतान का किसी माँ या पिता के लिए क्या मतलब होता है। लोग जीवन भर इस दुख से उबर नहीं पाते। (वैसे ‘समझ’ संतानहीन भी सकते हैं अगर उनमें पर्याप्त संवेदनशीलता हो।)

वीणा देवी की तस्वीर ऊपर है, विलाप करते हुए…लेकिन वे कौन हैं, इसे जानने से पहले जाने कि प्रधानमंत्री ने कहा क्या। दरअसल, नोटबंदी से हुई तक़लीफ़ को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की आलोचना का जवाब देते हुए मध्प्रदेश की एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि ‘जवान बेटे की मौत के बाद बूढ़ा बाप भी साल भर में संभल जाता है लेकिन एक परिवार रोए ही जा रहा है क्योंकि उनका चार पीढ़ी का जमा लुट गया है।’ ज़ाहिर है वे कांग्रेस को भ्रष्टाचारी साबित करना चाहते थे। लेकिन इसके साथ नोटबंदी के दौरान हुई मौतों तमाम मौतों के दुख को उन्होंने जितने हल्के तरीके से पेश किया उसने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्या कोई बूढ़ा बाप वाक़ई अपने जवान बेटे की मौत के दुख से साल भर में उबर जाता है? क्या नोटबंदी में जिन सौ के करीब लोगों ने जान गँवाई उनके परिजन दुख से उबर आए हैं? देश का प्रधानमंत्री अगर ऐसा कह रहा हो तो पड़ताल ज़रूरी है। पत्रकारों का यह दायित्व था, लेकिन ज़्यादातर पीएम का बयान छापकर या दिखाकर चुप हो गये। भला हो एनडीटीवी के संवाददाता सुशील महापात्रा का जिन्होंने नोटबंदी में अपने पति को गंवाने वाली वीणा देवी से मुलाक़ात कराई। दिल्ली के उत्तमनगर में रहने वाली वीणा देवी के पति अपनी गाढ़ी कमाई के रुपये बदलने के लिए लाइन में लगे थे जहाँ उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्हें बचाया नहीं जा सका। वे सब्जी बेचते थे। 53 वर्षीय वीणा देवी के आँसू दो बरस बाद भी नहीं सूखे हैं। पति ही अकेला सहारा थे। अब रिश्तेदारों और पड़ोसियों की मोहताज हैं। बेदिल दिल्ली में एक मकान मालिक भी है जो उनसे कमरे का किराया नहीं लेता।

सुशील महापात्रा के सवालों पर वीणा देवी ने नोटबंदी से उन्हें हुई तक़लीफ़ पर जैसा विलाप किया है, उससे पत्थर भी पिघल जाए। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह सब फ़ालतू है। उनके हिसाब से रोने की मियाद ख़त्म हो गई है। अब जो रो रहा है, वह सिर्फ गाँधी परिवार है जिसका चार पीढ़ियों का जमा लुटा है। ताली पीटते हुए चुनावी मंच पर व्यंग्यपूर्ण अट्टहास करते मोदी तक वीणादेवी का विलाप कभी नहीं पहुँचेगा, लेकिन इस विलाप में एक असहाय का शाप है जो बड़ी-बड़ी सत्ताओं को राख कर देता है।

क्या आपको अब भी लगता है कि मोदी को ‘राजा निरबंसिया’ कहना ग़लत है? ज़रा जी कड़ा करके सुशील महामात्रा की यह रिपोर्ट देख लें..बस एक बार। तब भी ग़लत लगे तो बंदा सज़ा के लिए हाज़िर है।

 

लेखक मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक हैं।



 

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