डॉ.स्कन्द शुक्ल
पुरुषत्व है , तो पितृत्व है। पुरुष होने का आनुवंशिक हस्ताक्षर छियालीस गुणसूत्रों में से एक वाई गुणसूत्र है। सबसे छोटा। वह जिसकी लम्बाई नित्य घटती जा रही है। और ऐसा माना जा रहा है कि साढ़े चार मिलियन वर्षों में यह गुणसूत्र लुप्त हो जाएगा।
तो फिर पुरुषों का क्या होगा ? पिताओं का क्या होगा ? स्त्री-पुरुष-यौनसम्बन्ध का क्या होगा ? और सबसे महत्त्वपूर्ण बात : प्रेम पर क्या बीतेगी ?
इन प्रश्नों के उत्तर वैज्ञानिकों ने अलग-अलग ढंग से देने का प्रयास किया है। वाई गुणसूत्र पर यौन-पहचान का जीन एसआरवाई होता है। इसके होने से ही मैं पुरुष हूँ और कोई अन्य स्त्री स्त्री। ध्यान दीजिए : पूरे गुणसूत्र का महत्त्व मर्दानगी की पहचान में नहीं है , इसी ख़ास जीन का है।
कई जानवर ऐसे हैं जिनमें वाई गुणसूत्र नहीं। लेकिन उनमें नर-मादा दोनों पाये जाते हैं। कुछ इसी तरह की बात वैज्ञानिक वाई गुणसूत्र और एसआरवाई जीन के बाबत सोचते हैं। वाई गुणसूत्र चाहे चला जाएगा , एसआरवाई कहीं और स्थापित हो जाएगा। किसी और गुणसूत्र पर। और तब वह गुणसूत्र लैंगिक पहचान तय करेगा। यह कुछ इसी तरह है कि पृथ्वी नष्ट हो जाए , पर जीवन नष्ट न हो। वह कहीं और , किसी अन्य ग्रह पर स्थापित हो जाए।
मिलियनों साल पहले यह मर्दाना गुणसूत्र अन्य गुणसूत्रों जितना लम्बा हुआ करता था। फिर इसकी लम्बाई घटने लगी , घटती गयी। इसलिए कई वैज्ञानिक मानते हैं कि एक दिन आएगा , जब यह गुणसूत्र मनुष्य की कोशिकाओं से लुप्त हो चुका होगा। लेकिन फिर दूसरी विचारधारा भी है। यह गुणसूत्र अपना और अधिक लघुकरण रोक रहा है। इसकी बनावट कुछ ऐसी है , जो शायद इसे और छोटा न होने दे। इस तरह से यह लुप्त नहीं होगा , इसी बौने आकार में मर्दानगी का घर बना रहेगा।
तो चाहे वाई गुणसूत्र जाए , चाहे बना रहे — पुरुषत्व संकट में फिलहाल नहीं नज़र आता। वह एसआरवाई से तय होता है , वह रहेगा। इसलिए पुरुष भी रहेंगे और पिता भी। प्रेम भी जीवित रहेगा और यौन-सम्बन्ध भी।
हैपी फादर्स डे ! एसआरवाई ज़िन्दाबाद !
पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। लखनऊ में रहते हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं।