यूपी चुनाव को देखते हुए अचानक गाय से लेकर मुस्लिम आबादी का मुद्दा गरमाया जा रहा है। विकास का दम भरने वाली बीजेपी की सफलता पाने की रणनीति ही समाज के धार्मिक विभाजन पर टिकी है। लेकिन अफ़सोस जब पत्रकारों को इस साज़िश का पर्दाफ़ाश करना चाहिए तब तमाम लोग इस साज़िश का हिस्सा बन चुके हैं। या कहें कि यूपी में दंगा करने की सुपारी ले चुके हैं। इसके ख़िलाफ चेताते हुए वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी एक ज्ञापन तैयार कर रहे हैं और समाज से समर्थन माँग रहे हैं। यह एक ज़रूरी काम है, समाज का दबाव ही इन दंगाइयों के हाथ बाँध सकता है, वरना सत्ता तो उन्हें संरक्षण दे रही है। यह संयोग नहीं कि जिस ज़ी न्यूज़ के कारनामे इस लिहाज़ से सर्वाधिक निशाने पर हैं, वे बीजेपी की ओर से राज्यसभा सदस्य बनने की जुगत भिड़ा रहे हैं। पढ़िये क्या कहते हैं पंकज चतुर्वेदी–
”इलेक्ट्रानिक मीडिया को पश्चिमी उ.प्र. में आग लगाने से रोका जाए, इस पर एक ज्ञापन तौयार कर रहे हैं, कौन कौन इस पर दस्तखत करेगा बताएं.
बीते तीन दिनों से कुछ टीवी चैनल जिसमें एक विचारधारा खास के , व छी टीवी के रूप में कुख्यात चैनल सबसे आगे हैं, मुज्रफरनगर के कैराना कस्बे से हिंदुओं के पलायन की स्टोरी चला कर उसे ‘कश्मीर” की तरह हिंदू रहित बनाने की साजिश की काहनियां चला रहे हैं, इसमें एक सांप्रदायिक दल के लोगो के इंटरव्यू चलवाये जा रहे हैं. पहले कुछ आंकडे वह भी सरकारी वेबसाई ट से .
सन 2011 की जनगणना के अनुसार कैराना की आबादी89000 थी जिसमें 18ण्34 हिंदू,80.74 मुस्लिम और0.22 ईसाई, 0.62 जैने थेा संदर्भ इस लिंक परhttp://www.census2011.co.in/data/town/800642-kairana.html
यह भी सही है कि 2013 के पश्चिमी उ.प्र. के भीषण दंगों के बाद मुस्लिम आबादी जो कि 45 हजार से ज्यादा थी, ऐसी बस्तियों में पलायन कर गई जहां, मुसिलम आबादी अधिक थी. इस तरह कैराना में लगभग 10 हजार नए मुसलमान पहुंचे. वह एक दीगर स्टोरी है, लेकिन उसका जिक्र जरूरी है कि कैराना पहुंचे मुसलमानों को मिले मुआवजे के एसज में एक बडे मुस्लिम नेतना ने उनको आवास दिए, हालांकि यह भी धोखा था, क्योंकि पैसा तो ले लिया गया, लेकिन आवास का मालिकाना हक नहीं. यह भ सही है कि नई मुस्लिम आबादी, जोकि लुटी पिटी आई थी, अपने समाज के बाहुलय के बीच पहंच कर कुछ आका्रमक भी हो गई. इस छोटे से कस्बे में रोजगार की संभावनाओं पर इन नव आगंतुक लेागों के सस्ते श्रम ने विपरीत असर डालाा
जरा उन बस्तियेां में झांक कर देखें जहां विस्थापित दंगा पीडित मुसलमान हैं, जिंदगी कराहती दखिेगी, उन्हे उन मुसलमान रहनुमओं ने भी खूब लूटा जिनकी तकरीरों के बदौलत वे ”अपनों” के बीच आ गए थे. इस पलायन की सनसनी के दो झूठ तो सामने हैं , एक आबादी वाला, दूसरा हत्या वाला. कैराना के 21 हिन्दू हत्याओं और 241 पलायन किये परिवारों को सूची कोरा गप्प है…जारी की गई सूची मे मदन लाल की हत्या बीस वर्ष पहले,सत्य प्रकाश जैन की 1991 मे, जसवंत वर्मा की बीस वर्ष पहले,श्रीचंद की 1991 मे, सुबोध जैन की 2009 मे, सुशील गर्ग की 2000 मे, डाक्टर संजय गर्ग की 1998 मे हुई थी…गौर करने वाली बात ये है कि लगभग इन सभी हत्याओं मे आरोपी भी हिन्दू समाज से ही है…
हमारी मांग होगी कि पलायन की खबर की वास्तविकता की जांच हो, जिसमें सिविल सोसायटी के लेाग भी शामिल किये जाएं, यदि पलायन की खबर सही है तो उसके कारणा और यदि उसका गुडागिर्दी कारण है तो गुंडो पर रासुका जैसी कडी कार्यवाही हो.
इस तरह की खबर फैलाने, व उसके लिए टीवी पर बयानबाजी करने वले लोगों की प़ष्ठभूमि क्या है, वे किस राजनीतिक दल के लिए काम करते हैं और बीते दंगों में उनकी क्या भूमिका थी, इसके आधार पर तथ्यों को देखा जाए.
यदि खबर झूठी हो तो ऐस टीवी चैनलों व बयानवीरों पर दंगा भडकाने की कार्य्वाही हो और इनके सरकारी विज्ञापन बंद हों.
इसमें कोई शक नहीं है कि पश्चिमी उ.प्र. में भडकाउ लोगों पर पाबंदी लगाने में राज्य सरकार पूरी तरह नाकाम रही है या फिर साजिशन ध्रुवीकरण की किसी नई बारी का इंतजार कर रही है, बिसाहडा सुलग रहा है, गाजियाबाद, बुलंदशहर में हथियार वाले प्रशिक्षण चल रहे हैं, शामली, कैराना, गाजियाबद के कैलाभटटा, पसोंडा आदि में विस्थापित मुसलमनों को भडकाने के प्रयास हाे रहे हैं, यह हालात अच्छे नहीं है और देश की प्रगति, आर्थ व्यवस्था और छबि के लिए दूरगामी नुकसानदेह हैं, आप सभी इसके खिलाफ खडे हों, पलायन की खबर सच हो तो मुस्लिम सांप्रदायिकता के खिलाफ और यदि झूठी है तो दूसरे फिरके के कुछ लेागों की हरकतों के खिलाफ।”
(पंकज चतुर्वेदी की फ़ेसबुक वॉाल से)