जैश के आतंकियों की गिरफ्तारी बताती है कि दूसरी लाइन सुरक्षित है
राजनाथ जी, बिना पाकिस्तान गए प्रायोजित खबरों से ही समझ आ रहा है
संजय कुमार सिंह
आज के ज्यादातर अखबारों में लीड पाकिस्तान में 44 आतंकवादियों के पकड़े जाने की खबर है। बालाकोट में जैश का शिविर नष्ट कर दिए जाने, उसमें 200 से लेकर 600 आतंकवादियों के मारे जाने की खबरों और दावों के बीच ये 44 आतंकवादी गिरफ्तार किए गए हैं। इनमें कुछ दिन पहले मीडिया में ‘मार’ दिए अजहर मसूद का भाई और बेटा भी है। दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से छापा है, “हम्माद अजहर जैश सरगना अजहर मसूद का बेटा है और ज्यादातर समय उसके साथ ही रहता है।” यहां सवाल उठता है कि आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर पर 1000 किलो बम गिराया गया और उसमें सबसे बड़ा आतंकवादी अजहर मसूद ‘घायल’ होकर बाद में ‘मरा’ उसके साथ रहने वाला उसका बेटा अब सकुशल गिरफ्तार किया किया गया है तो मरे कौन? मोबाइल फोन? कौन बताएगा? कैसे पता चलेगा?
कम से कम ये तो बताना चाहिए था कि हम्माद अजहर का फोन मिला कि नहीं। या उसके पास फोन था कि नहीं और यह बालाकोट शिविर में सक्रिय 280 फोन में शामिल है कि नहीं। दैनिक भास्कर ने अब्दुर रऊफ को भी गिरफ्तार किए जाने की खबर छापी है और उसके बारे में सूचना दी है कि, “वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के जैश के अलग-अलग गुटों का मुखिया है। इस आतंकवादी संगठन में अजहर मसूद के बाद यही सबसे पावरफुल माना जाता है।” मतलब साफ है कि भारतीय वायु हमले के बावजूद पाकिस्तानी आतंकवादियों में दूसरा सबसे पावरफुल आतंकवादी अभी सुरक्षित है। कितने मरे और मरे कि नहीं के विवाद में नहीं जाया जाए तो गिरफ्तारी की आज की खबर से साफ है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों की दूसरी लाइन या दूसरी पीढ़ी अभी सुरक्षित है।
इतनी जल्दी इन्हें जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है। भाषण देने और अखबारों में बयान छपवा लेना अलग बात है। अखबार ने लिखा है और इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि गिरफ्तार 44 आतंकवादियों में दो 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण कर मसूद अजहर को छुड़ाने के अपराधी हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग 2014 में भाजपा की सरकार बनने के तुरंत बाद क्यों नहीं की गई? अपराधी तो ये तब भी थे और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले पाकिस्तान को ‘उसी की भाषा में’ जवाब देने की जरूरत बता रहे थे। मनमोहन सिंह सरकार पर ‘लव लेटर’ लिखने का आरोप लगा रहे थे। पर खुद सत्ता में आए तो पांच साल तक शॉल और साड़ी का आदान-प्रदान चला, रिश्तेदारी निभाने जैसे काम हुए और अब जब कार्यकाल खत्म होने को आया तो आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई तथा आतंकवाद को जड़ से मिटाने की बाद हो रही है ।
अखबारों ने लिखा है कि पाकिस्तान ने दुनिया के दबाव में इन आतंकवादियों पर कार्रवाई की है पर यह भी बताया है कि भारत की नजर में यह दिखावा है। अब आप तय कीजिए कि हो क्या रहा है और वायु हमला कितना कारगर रहा। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि मसूद अजहर का भाई अब्लुल रउफ असगर पर 2016 में पठानकोट हमले का मास्टरमाइंड होने का आरोप है। क्या भारत को पाकिस्तान से उसी समय कार्रवाई की मांग नहीं करनी चाहिए थी? की गई थी? मुझे नहीं पता। आज अखबारों में (हिन्दुस्तान टाइम्स) छपा है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि वायु हमले में कितने मरे जानना है तो जाकर गिन लें। पर मुद्दे की बात नहीं कर रहे हैं। अगर भारत सरकार ने यही बता दिया होता कि उसने आतंकवाद के खात्मे के लिए पांच साल क्या किया तो हम यह नहीं कहते कि अभी सब कुछ चुनाव में लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है।
सच कड़वा होता है इसीलिए कितने मरे पूछना बुरा लग रहा है और राजनाथ सिंह तो खिसिया ही गए हैं। लेकिन मंत्री लोग दावा करना नहीं छोड़ रहे हैं। कल कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि 400 मरे हैं (द टेलीग्राफ)। जागरण ने उपशीर्षक लगाया है, “घबराए पाक ने आतंकी ढांचे पर शुरू की कार्रवाई, हाफिज के संगठन जमात और एफआईएफ पर प्रतिबंध”। और खबर में बॉक्स है, “(पाकिस्तान ने) पहले भी किया है ऐसा दिखावा”। अगर ऐसा ही है तो इसे लीड बनाने की क्या जरूरत थी? जागरण में लीड के साथ एक और खबर है, “जैश सरगना मसूद अजहर बीमार है”। भारतीय मीडिया ने हाल में उसे मार दिया था और आज छपा है कि बीमार है। “2004 में ओसामा बिन लादेन और 2007 में मुल्ला उमर के बारे में पाक के शीर्ष नेताओं ने आधिकारिक तौर पर बताया था कि दोनों मारे जा चुके हैं। कई वर्षों तक ये पाकिस्तान में छिपे रहने के बाद मारे गए।” इसके बावजूद इस बार भारतीय मीडिया ने जानते हुए अजहर के मारे जाने की खबर छापी।
दैनिक जागरण ने उपशीर्षक लगाया है, “घबराए पाक ने आतंकी ढांचे पर शुरू की कार्रवाई, हाफिज के संगठन जमात और एफआईएफ पर प्रतिबंध”। और खबर में बॉक्स है, “(पाकिस्तान ने) पहले भी किया है ऐसा दिखावा”। अगर ऐसा ही है तो इसे लीड बनाने की क्या जरूरत थी? जागरण में लीड के साथ एक और खबर है, “जैश सरगना मसूद अजहर बीमार है”। भारतीय मीडिया ने हाल में उसे मार दिया था और आज छपा है कि बीमार है। “2004 में ओसामा बिन लादेन और 2007 में मुल्ला उमर के बारे में पाक के शीर्ष नेताओं ने आधिकारिक तौर पर बताया था कि दोनों मारे जा चुके हैं। कई वर्षों तक ये पाकिस्तान में छिपे रहने के बाद मारे गए।” इसके बावजूद इस बार भारतीय मीडिया ने जानते हुए अजहर के मारे जाने की खबर छापी।
आज की गिरफ्तारी की खबर को नवभारत टाइम्स ने मसूद के बेटे-भाई को हिरासत का कवच शीर्षक से छापा है। इसके ऊपर दो हिस्से में दो लाइन के दो फ्लैग शीर्षक हैं। एक में कहा गया है, भारत को शक है कि यह हिरासत के नाम पर सुरक्षा देने की चाल है। बेशक यह संभव है और इस आलोक में क्या आपको लगता है कि आतंकवाद को जड़ से मिटाने और घर में घुसकर मारने जैसी बातों के अलावा भारत सरकार की कार्रवाई पर्याप्त है? बेशक, जो हो रहा है वह अखबारों में ही है और कार्रवाई उतनी ही हो रही है जिससे अखबारों में माहौल बना रहे। ज्यादातर अखबार यह सेवा मुहैया करा रहे हैं।
इन तमाम तथ्यों के बावजूद हिन्दुस्तान के पहले पेज पर छपी यह लीड देखिए। शीर्षक से लेकर फ्लैग, उपशीर्षक सब सरकारी लग रहे हैं। पूरी तरह सकरात्मक जैसे सब गुडी-गुडी चल रहा हो। इसके साथ एक खबर है, आतंकी हमला हुआ तो फिर कार्रवाई करेंगे। आपको यह बच्चों जैसी बात नहीं लगती है? एक के बदले 10 सिर लाने से शुरू करके 40 के बदले 400 मारे का दावा और घर में घुसकर मारूंगा, पाताल से निकाल लाऊंगा और अब यह। कहने की जरूरत नहीं है कि ज्यादातर अखबारों में लीड बनी गिरफ्तारी की खबर द टेलीग्राफ में लीड नहीं है और पहले पन्ने पर भी नहीं है। द हिन्दू में पहले पन्ने पर फोल्ड के नीचे है, पर लीड नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )