सुप्रीम कोर्ट के धमकाने के करीब साल भर बाद उत्तर प्रदेश सरकार केे श्रमायुक्त द्वारा पेश की गई मजीठिया पर स्टेटस रिपोर्ट आंखों में धूल झोंकने वाली है। यह रिपोर्ट श्रमायुक्त को श्रमजीवी पत्रकार और समाचार पत्र के अन्य कर्मचारी (शर्तें व सेवाएं ) और प्रकीर्ण प्रावधान अधिनियम,1955 की धारा 17(1)(ए) के तहत न देकर मालिकों के अनुसार दी गई है।
राज्य के तीन सबसे बड़े अखबारों के बारे में दी गई रिपार्ट चौंकाने वाली है । 75 अखबारों में सिर्फ शाह टाइम्स की रिपार्ट है कि वहां के कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन मिल रहा है। अमर उजाला के बारे में कहा गया है कि इसके अलीगढ़ सेंटर को छोड़कर सभी जगह मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को आंशिक रूप से लागू कर दिया गया है। मजेदार बात यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने चार किस्तों में एरियर का भुगतान करने को कहा है, जबकि अमर उजाला 48 किस्तोंं में भुगतान करेगा।
श्रमायुक्त ने 20-जे का हवाला देकर दैनिक जागरण के उत्तर प्रदेश के सभी केन्द्रों पर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को उन पर लागू होने लायक ही नहीं समझा। शायद उत्तर प्रदेश सरकार और श्रमायुक्त किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं है कि वे इनसे पूछ सकें कि इस अखबार में कभी किसी आयोग की रिपोर्ट कभी लागू की भी है या नहीं। कभी इन संस्थानों की जांच हुई होती तो पता चलता कि श्रमजीवी पत्रकार और समाचार पत्र के अन्य कर्मचारी (शर्तें व सेवाएं) और प्रकीर्ण प्रावधान अधिनियम,1955 की धारा 13(बी) भी है।
इतना ही नहीं, दैनिक जागरण के अलीगढ़ और झांसी केन्द्र में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू नहीं करने की रिपोर्ट दी गई है। सवाल उठता है कि क्या यहां श्री संजय गुप्त ने 20-जे का सहारा नहीं लिया या ये संस्थाएं किसी दूसरे की हैं।
हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर लिमिटेड के बारे में श्रमायुक्त का कहना है कि यहां लोगों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों से अधिक वेतन दिया जा रहा है। साथ ही यह भी कि हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर लिमिटेड के सभी केन्द्रों में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू कर दी गई हैं, लेकिन रिपोर्ट में कितना वेतन मिल रहा है इसका कहीं जिक्र नहीं है। हकीकत तो यह है कि एचटी मीडिया लिमिटेड की इस कंपनी ने दिल्लीं सरकार को साफ-साफ लिख कर दिया है कि उनके यहां मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके यहां कोई बेज बोर्ड के तहत काम करने वाला कर्मचारी है ही नहीं।
इन तथ्योंं से पता चल जाता है कि यूपी में मालिकों और उनकी थैली के इशारे पर मजीठिया की स्टेटस रिपोर्ट बनाई गई है।
(मजीठिया मंच से साभार)