नोएडा स्थित एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में शुक्रवार को दिन समाप्त होने तक कानून व्यवस्था के मामले में यथास्थिति बनी रही, लेकिन परिसर के भीतर और बाहर धरने पर बैठे कर्मचारियों की हालत रुक-रुक कर हो रही बारिश और पाबंदियों के कारण लगातार बिगड़ती जा रही है। सबसे बड़ी बात है कि सोशल मीडिया पर इस घटना की खबर फैलने के बावजूद शुक्रवार को भी किसी मीडिया का कोई प्रतिनिधि यहां नज़र नहीं आया।
शुक्रवार को दिन में कर्मचारियों को एक बड़ी राहत तब मिली जब कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष मनोज चौबे स्थानीय अदालत से यथास्थिति का आदेश लेकर वापस लौटे। अब गेट के बाहर धरनारत कर्मचारी 19 जुलाई तक वहां कायम रह सकेंगे, जब तक कि कोर्ट में अगली सुनवाई न हो। दूसरी ओर परिसर की सुरक्षा में लगे करीब 300 निजी सुरक्षाकर्मी पिछले 100 से ज्यादा घंटों से लगातार ड्यूटी कर रहे हैं और अपने घर नहीं गए हैं जिसके चलते असंतोष एक नए स्तर पर पहुंच रहा है।
कंपनी के गेट के बाहर करीब 200 कर्मचारी डटे हुए हैं जबकि गेट के भीतर 600 के आसपास कर्मचारी सोमवार से ही धरने पर हैं। शुक्रवार को दिन में 12 बजे के आसपास भीतर तनाव की स्थिति पैदा हो गई जब अचानक प्रबंधन की ओर से एक घोषणा की गई। घोषणा में कहा गया कि कर्मचारी काम पर वापस लौट आएं और ”गैर-कानूनी” हड़ताल वापस लें अन्यथा कंपनी प्रबंधन को कानूनी कदम उठाने पर बाध्य होना पड़ेगा। इस घोषणा के बाद अटकलें लगाई जाने लगीं कि पुलिस परिसर खाली कराने की जबरन कार्रवाई कर सकती है।
प्रवीण यादव कंपनी की भाषा बोलते दिखे जब उन्होंने कहा, ”आप ही बताओ, कंपनी आपका ट्रांसफर कर दे तो क्या आप ड्यूटी पर नहीं जाओगे। हमारा भी ट्रांसफर होते रहता है। अब ट्रांसफर वापस लेने की मांग करना तो गैर-कानूनी है। ये कर्मचारी तो भीतर मजे में हैं। इन्हें खाना लाकर दिया जा रहा है और कोई सख्ती नहीं की जा रही।”
गेट पर तैनात एक सुरक्षाकर्मी ने निजी बातचीत में अपने कपड़ों पर लगे पसीने के सफेद निशान और बढ़ी हुई दाढ़ी दिखाते हुए जो विवरण बताया, वह पूरी तरह एसएचओ के दावे का खंडन था। उसने कहा, ”108 घंटे से हम लोग लगातार ड्यूटी कर रहे हैं और घर नहीं गए। कहा गया है कि जब तक हड़ताल खत्म नहीं होती, हमें नहीं जाना है। भीतर टॉयलेटों पर ताले लगवा दिए गए हैं। केवल चार टॉयलेट खुले हैं। उसी में सब कर्मचारी जा रहे हैं। सबके कपड़े सील गए हैं। बारिश में किसी तरह पांच दिन से ये लोग पड़े हुए हैं। लेडीज़ तो बीमार हो रही हैं।”
इतनी मुसीबतों के बाद भी कर्मचारियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। परिसर के भीतर धरने पर बैठी अपनी पत्नी के लिए एक सज्जन कपड़े लेकर आए थे लेकिन उन्हें भीतर नहीं जाने दिया गया, न ही किसी से कपड़े भिजवाने की इजाज़त दी गई। उनके बच्चे की तबीयत पिछले पांच दिनों से खराब है, लेकिन लड़ाई का जज़्बा ये है कि उनकी पत्नी की ओर से एक संदेश आया कि वे अभी अगले तीन दिन तक अपने साथियों को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली हैं।
आठ सौ धरनारत कर्मचारियों की वजह से जो काम रुका हुआ था, उस पर कोई खास असर नहीं पड़ा है क्योंकि करीब 3500 ठेका कर्मचारी 250 की दिहाड़ी से 200 रुपये ज्यादा पर रख लिए गए हैं जो आठ घंटा लाइन पर काम कर रहे हैं। अदालत के आदेश से हड़ताली कर्मचारियों की कुछ उम्मीद बंधी है और यूनियन नेताओं मनोज चौबे, विकास शर्मा आदि की लगातार मौजूदगी उन्हें ढांढस दे रही है, लेकिन प्रबंधन के स्तर पर गतिरोध कायम है।
प्रशासन के सूत्रों की मानें तो शुक्रवार रात से लेकर शनिवार रात तक का वक्त बहुत अहम है। यह बहुत संभव है कि अदालती स्टे के बावजूद प्रबंधन और पुलिस प्रशासन मिलकर कर्मचारियों को बाहर खदेड़ने जैसी कोई कार्रवाई कर बैठे। मामले की संजीदगी को देखते हुए नोएडा की कंपनियों में सर्वाधिक सक्रिय ट्रेड यूनियन सीटू ने इस मजदूर आंदोलन को अपना समर्थन दे दिया है। मनोज चौबे ने बताया, ”सीटू वालों ने हमें आश्वासन दिया है कि वे अपने लोगों को यहां भेजेंगे। हमारी उनसे लगातार बात चल रही है।”