टीवी की बहसें न्‍याय दिलवाने की प्रक्रिया में दख़ल दे रही हैं: केरल हाइ कोर्ट

केरल उच्‍च न्‍यायालय ने मंगलवार को टीवी पर होने वाली बहसों को लताड़ लगाते हुए कहा कि टीवी चैनल ”शिष्‍टता, विनम्रता और पेशेवर आचार” की सारी सीमाएं लांघ रहे हैं। अदालत की नाराज़गी विशेष रूप से उन मलयाली चैनलों से थी जिन्‍होंने सतर्कता विभाग के निदेशक के निलंबन के संबंध में अनावश्‍यक बहसों को जन्‍म देकर उच्‍च अदालत के न्‍यायाधीश को ही विवाद में खींच लिया था।

मंगलवार को उच्‍च्‍ न्‍यायालय में वीएसीबी के निदेशक थॉमस को हटाए जाने संबंधी याचिका पर सुनवाई थी। उससे पहले 30 मार्च को मीडिया के एक हिस्‍से ने रिपोर्ट किया था सतर्कता विभाग के खिलाफ़ एक याचिका पर संज्ञान लेते हुए उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश पी. ओबैद ने कहा था कि सतर्कता निदेशक को उनके पद पर कायम क्‍यों रहने दिया जा रहा है जबकि उनकी कार्रवाइयां अत्‍यधिक अराजक हैं।

कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर खुद उसे टीवी चैनलों की बहसों में खींच लाया गया जिससे अनावश्‍यक समस्‍या पैदा हो गई है। कोर्ट ने कहा, ”एक टीवी चैनल और इसमें बहस में हिस्‍सा लेने वाले एक पैरोकार तो शिष्‍टता, विनम्रता और पेशेवर आचार की सभी सीमाएं लांघ गए।” जस्टिस ओबैद ने कहा कि टीवी की बहसों को न्‍याय दिलवाने की प्रक्रिया में दखलंदाजी के तौर पर लिया जाना चाहिए।

मंगलवार को आए फैसले में कहा गया है, ”विभिन्‍न टीवी चैनलों ने यह परिचर्चा बना यह समझे-बूझे आयोजित कर दी कि कोर्ट में वास्‍तव में हुआ क्‍या था। यह बात गलत और गैर-जिम्‍मेदाराना तरीके से प्रसारित की गई कि इस अदालत ने सरकार को वीएसीबी का निदेशक बदलने का निर्देश दिया है।” जस्टिस ओबैद ने कहा कि अदालत ने वीएसीबी की अराजक कार्रवाइयों पर बेशक टिप्‍पणी की थी और सरकार से पूछा था कि वह उन्‍हें दुरुस्‍त व नियंत्रित करने के लिए कोई कार्रवाई क्‍यों नहीं कर रही है।

कोर्ट का कहना था कि उसके शग्‍दों की मीडिया ने गलत व्‍याख्‍या की है। ”हम जज लोग प्रेस मीट या चैनल परिचर्चा नहीं कर सकते। हम लोग केवल न्‍यायिक फैसलों के माध्‍यम से अपनी बात रख सकते हैं और मैं ऐसा ही कर रहा हूं”, जस्टिस ओबैद ने फैसला सुनाते हुए यह कहा।

(सामग्री न्‍यूज़मिनट से साभार)

 

 

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