देश के चुनिंदा गंभीर और तेज़-तर्रार टीवी ऐंकरों में शुमार किए जाने वाले करन थापर अब इंडिया टुडे चैनल के हिस्से नहीं रहे। करन थापर सोमवार से शुक्रवार तक शाम साढ़े सात बजे ‘टू द प्वाइंट; नाम से शो करते थे जिसमें देश की किसी ज्वलंत मुद्दे पर गंभीर चर्चा होती थी। वैसे उनका अनुबंध 31 मार्च तक ही था लेकिन उन्होंने अपना आख़िरी शो 14 अप्रैल को श्रीनगर में हुए बेहद कम मतदान पर किया था। अनुबंध के बावजूद उनका शो में बने रहना संकेत दे रहा था कि चैनल का उन्हें विदा करने का कोई इरादा नहीं है।
करन थापर के इसी शो में नरेंद्र मोदी को पसीना आ गया था और वे माथा पोछते हुए उठ खड़े हुए थे। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे जब अक्टूबर 2007 में करन उनका इंटरव्यू लेने पहुँचे थे। 2002 के दंगे से जुड़े सवालों से असहज मोदी बीच में ही शो छोड़कर चले गए थे।
मुकेश अंबानी के टेकओवर करने के साथ ही करन थापर ने ‘सीएनएन आईबीएन’ के साथ अपनी पारी समाप्त कर दी थी। शायद उन्हें अंदाज़ा हो
लेकिन ढाई साल बाद आज यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या अरुण पुरी ने किसी ‘ऊपरी दबाव’ की वजह से करन थापर का अनुबंध आगे नहीं बढ़ाया। यह तो सच है कि बीजेपी के नेता आमतौर पर करन थापर के शो में नहीं आते थे। ऐसी चर्चा थी कि ऐसा करके वे मोदी जी के कोपभाजन नहीं बनना चाहते। वे मानते हैं कि मोदी 2007 का वह इंटरव्यू भूले नहीं हैं जिसमें थापर ने उन्हें पानी पिला दिया था।
करन थापर की विदाई के बाद सवाल यह भी खड़ा हो गया है कि क्या राजदीप सरदेसाई की इंडिया टुडे से विदाई निकट है। सरदेसाई का कान्ट्रैक्ट भी सितंबर तक ही है। राजदीप उन गिने चुने टीवी पत्रकारों में हैं जो मोदी जी के ढाई साल के शासन के बाद भी ‘सुधरे’ नहीं हैं। यानी सवाल करने की आदत गई नहीं है। गुजरात दंगों की रिपोर्टिंग के समय से ही सरदेसाई बीजेपी की आँखों में चढ़े हुए हैं। सोशल मीडिया में मोदी भक्तों का खेमा उनके ख़िलाफ़ लगातार अभियान चलाता है।
जो भी हो दो चीजे़ं बेहद साफ़ हैं। पहली यह है कि यह पत्रकारिता का ‘चारण युग’ है, ख़ासकर टीवी चैनल जिस तरह ‘मोदीवंदना’ में जुटे हुए हैं, वह अभूतपूर्व है। दूसरी यह है कि मोदी जी पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों के लिए कथित मुख्यधारा की पत्रकारिता में कोई जगह नहीं है।
आइये करन थापर के उस शो की झलकी देखिए जिसमें मोदी जी पानी माँग उठे थे–
.बर्बरीक