महाराष्ट्र में पत्रकार सुरक्षा कानून पारित, गाय में फंसा रह गया छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा का कानून लाने की ज़रूरत जब सबसे ज़्यादा थी, ऐसे वक़्त में महाराष्ट्र की सरकार ने शुक्रवार को यह कानून पारित कर रमन सिंह की बीजेपी सरकार को पीछे छोड़ दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों में इस विधेयक को शुक्रवार को मंजूर कर लिया गया। विधेयक में कानून का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ भी कार्यवाही का प्रावधान किया गया है। शुक्रवार को राज्य मंत्री डॉ. रणजीत पाटील ने दोनों सदनों में महाराष्ट्र पत्रकार और पत्रकारीय संस्थान (हिंसक कृत्य व संपत्ति नुकसान अथवा हानि प्रतिबंध) अधिनियम-2017 विधानसभा और विधान परिषद में रखा।

विधेयक के मुताबिक, हमला करने वाले को तीन साल की सजा अथवा 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। हमले में हुए नुकसान या फिर पत्रकारों के इलाज का खर्च भी हमलावर से वूसल किया जाएगा। यही नहीं, कानून में इसका भी प्रावधान किया गया है कि अगर पत्रकार इसका दुरुपयोग करता है तो उस पर भी कार्रवाई होगी। अगर वह मान्यता प्राप्त पत्रकार है, तो उसकी अधिस्वीकृति भी समाप्त की जा सकेगी। दोनों सदनों में विधेयक रखते हुए राज्य मंत्री डॉ. पाटील ने कहा कि पत्रकारों पर बढ़ते हमले को रोकने में यह विधेयक महत्वपूर्ण होगा।

उन्होंने कहा कि राज्य में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हमले की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर इस तरह के कानून की मांग की जा रही थी। पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग 2005 से ही हो रही है। तत्कालीन गृहमंत्री आर आर पाटील ने पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ा कानून बनाने का वादा किया था। इसके बाद नारायण राणे के नेतृत्व में एक समिति बनाई गई थी, लेकिन सरकार कानून बनाने में सफल नहीं रही। इस तरह के कानून बनाने के लिए राज्य भर में कई बार प्रदर्शन किया गया। विधेयक के मुख्य बिंदु:

गौरतलब है कि मीडिया पर दमन को लेकर इधर के सालों में सबसे ज्‍यादा कठघरे में छत्‍तीसगढ़ सरकार को खड़ा किया गया है। अंतरराष्‍अ्रीय संस्‍था कमेटी टु प्रोटेक्‍ट जर्नलिस्‍ट्स के मुताबिक 1992 से लेकर अब तक भारत में 40 पत्रकारों की हत्‍या की जा चुकी है। जहां तक हमलों का सवाल है तो इसकी कोई ठोस गिनती नहीं है। पत्रकारों पर झूठे मुकदमों के मामले में छत्‍तीसगढ़ अव्‍वल रहा है। राज्‍य में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने को लेकर लंबे समय तक आंदोलन चला है और दिल्‍ली तक पत्रकारों की आवाज़ पहुंच चुकी है लेकिन रमन सिंह की सरकार को केवल गायों की फि़क्र है। ध्‍यान रहे कि उन्‍होंने पिछले दिनों कहा था गाय की हत्‍या करने वालों को फांसी पर लटका दिया जाएगा। यह बात अलग है कि इस पर भी कोई कानून नहीं मौजूद है, कुल जबानी जमा खर्च है।

इसके बावजूद छत्‍तीसगढ़ के पत्रकारों ने महाराष्‍ट्र सरकार के इस कदम का खुलकर स्‍वागत किया है।

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