झारखंड के गिरिडीह जिला के मधुबन में स्थित जैन धर्मावलम्बियों की तीन संस्थाओं के सभी कर्मचारी चार महीने से ‘अनिश्चितकालीन असहयोग आन्दोलन’ पर हैं, लेकिन ‘जियो और जीने दो’ की बात करनेवाले जैन संस्था के ट्रस्टी के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हड़ताली कर्मचारियों की दयनीय स्थिति और जैन संस्थाओं के प्रबंधन के तानाशाही रवैये को देखते हुए मधुबन के तमाम जैन संस्थाओं में काम करने वाले लगभग 5 हजार कर्मचारियों और 10 हजार डोली मजदूरों ने 20 फरवरी को एक दिवसीय हड़ताल की घोषणा की है।
तीन संस्था के तमाम कर्मचारी महीनों से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
मुझे फेसबुक व स्थानीय अखबारों में छपी खबर के माध्यम से जानकारी मिली की मधुबन में स्थित जैनियों की तीन संस्था, श्री दिगंबर जैन सम्मेदांचल विकास कमिटी, श्री धर्म मंगल जैन विद्यापीठ व भोमिया जी भवन, के कर्मचारी महीनों से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं और हड़ताली कर्मचारियों के परिवार की अब भूखमरी की स्थिति होने वाली है। इस बात की जानकारी होने के बाद 5 फरवरी को मैं मधुबन पहुंचा। मैं इससे पहले मधुबन 2015 में एक रिपोर्टिंग के सिलसिले में गया था। लगभग 5 साल के बाद मधुबन में विकास तो काफी दिखा, लेकिन सिर्फ बिल्डिंगों का। आम दूकानदार और स्थानीय लोगों की स्थिति जस की तस ही लगी।
हमलोगों ने कम किये गये वेतन को लेने से मना कर दिया और आंदोलन भी किया। फिर तत्कालीन गिरिडीह डीसी नेहा अरोड़ा व सहायक श्रमायुक्त के समक्ष संस्था से 6 नवंबर 2018 को समझौता हुआ और हमलोगों को पुराना वेतनमान मिला, लेकिन अन्य सुविधाएं नहीं ही मिली। जबकि डीसी ने छठ पूजा के बाद अन्य सुविधाएं दिलाने के लिए श्रमायुक्त को कहा भी था। हमलोगों के आंदोलन से चिढ़कर संस्था ने 28 अप्रैल 2019 को 7 स्थायी कर्मचारी मोहन टुडु, मनी सिंह, गोपी सिंह, सीताराम, बालदेव महतो, केशु महतो एवं दामोदर तुरी को बिना नोटिस दिये नौकरी से निकाल दिया, जबकि ये लोग 15-20 वर्ष से संस्था में काम कर रहे थे।
हमलोगों ने संस्था के अध्यक्ष भरत मोदी से बात भी की और छिटपुट आंदोलन भी किया, लेकिन इन लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंगा। अंततः बाध्य होकर 23 सितम्बर से संस्था के तमाम 21 कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन असहयोग आंदोलन शुरु किया है। आंदोलन शुरु होन के बाद 8 अक्टूबर को और दो कर्मचारी नाजिर आलम व सोनू को भी प्रबंधन ने बिना नोटिस दिये निकाल दिया, फिर 10 अक्टूबर को और दो कर्मचारी बसंत कर्मकार (झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के मधुबन शाखा अध्यक्ष) और निरंजन राय को भी निकाल दिया। इस तरह 21 में से 11 कर्मचारी को प्रबंधन द्वारा अबतक निकाला जा चुका है।’’
श्री धर्म मंगल जैन विद्यापीठ के कर्मचारी नौशाद आलम ने बताया कि ‘हमलोग एक महिला समेत कुल 11 कर्मचारी हैं। जिसमें से 5 कर्मचारी हम दोनों समेत दशमन उरांव, बुधन हेम्ब्रम व रासो पांडे को बिना कोई नौटिस दिये 22 मई 2019 को निकाल दिया, जबकि ये लोग लगभग 20 वर्षों से यहां काम करते आ रहे थे। कारण पूछने पर बोला कि संस्था की आर्थिक स्थिति खराब है, जबकि सच्चाई यह है कि इसी संस्था के द्वारा उदयपुर (राजस्थान) और पालीताना (गुजरात) में धर्मशाला, मंदिर आदि खोला गया है। हमलोगों ने लगातार इस संस्था के सचिव ताराबेन जैन व अन्य ट्रस्टियों से वार्ता करने की कोशिश की, लेकिन वे लोग अपनी बातों पर अड़े रहे।
भोमिया जी भवन के कर्मचारी चिक्कू भक्त और रोशन सिन्हा ने बताया कि ‘हमलोग 2 महिला समेत 20 कर्मचारी हैं। हमलोगों को बहुत ही कम मजरूरी मिलता था, 4000 से 5500 रूपये तक। हमलोगों के संस्था का सचिव कंवरलाल कोचर कहता था कि हमारे संस्था में किसी सरकार का कानून नहीं चलता है। हमलोग लगातार झारखंड सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी देने की मांग करते रहते थे, न्यूनतम मजदूरी मिलना तो दूर मार्च 2019 से हमलोगों को प्रतिमाह मात्र 2-3 हजार रूपये ही मिलता था और बांकी पैसा अगले महीने देने की बात करने लगा। इसी बीच 17 अगस्त को कर्मचारी चिक्कू भक्त को नौकरी से ही निकाल दिया। संस्था के वर्तमान सचिव मनोज बंठिया ने भी हमलोगों का बकाया राशि देने में आनाकानी करने लगा। अंततः एक दिसंबर से हम सभी कर्मचारी असहयोग आंदोलन पर हैं।’
बैठक में उक्त तीनों संस्थाओं समेत लगभग संस्थाओं के एक-दो कर्मचारी मौजूद थे। राजेन्द्र धाम के कर्मचारी कृष्ण कुमार मंहिलवार ने बताया कि ‘हमलोग 27 कर्मचारी पिछले 18 वर्षों से यहां काम कर रहे हैं, लेकिन अभी तक स्थायीकरण नहीं किया गया है। न तो हमें झारखंड सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम मजदूरी मिलता है और न ही कोई अन्य सुविधा।’ तलेटी तीर्थ कोढ़िया बाउंड्री के कर्मचारी ने बताया कि ‘मुझे समेत 5 कर्मचारियों पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर 18 मार्च 2018 को नौकरी से निकाल दिया, जबकि उस दिन हमलोग काम पर आए ही नहीं थे।’ जैन श्वेताम्बर सोसाइटी के एक कर्मचारी ने कहा कि वहां पर सभी को 9800 रूपये मिलता है, लेकिन मुझे सिर्फ 7500 रूपये ही मिलता है। वहां पर मौजूद तेरहपंथी संस्था की डेगनी देवी, गुणायतन संस्था की पूजा देवी, जैन श्वेताम्बर सोसायटी की कलावती देवी व बीसपंथी संस्था की धरमी देवी ने कहा कि इन संस्थाओं में महिलाओं के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। डेगनी देवी ने कहा कि तेरहपंथी में 12 कर्मचारियों को मात्र 6300 रूपये ही महीने में मिलते हैं, जबकि और सभी कर्मचारियों को 10 हजार से उपर ही मिलता है।
बैठक में मौजूद कच्छी भवन में कार्यरत सुनीता देवी ने बताया कि ‘मेरी सास कच्छी भवन में काम करती थी, उनकी मृत्यु के बाद 20 साल से मैं और मेरी गोतनी चंद्रिका देवी महीने में 15-15 दिन बांट कर काम करते हैं। उस समय प्रबंधन ने कहा था कि दोनों को नौकरी दे देंगे, लेकिन अभी तक नहीं दिये हैं।’ कच्छी भवन के दो कर्मचारियों को भी बेवजह कार्यमुक्त कर दिया गया है, जबकि सराक जैन संगठन में मात्र 4700 रूपये पर ही कर्मचारियों से काम लिया जाता है। मधुबन में स्थित संस्थाओं में समान मजदूरी नहीं है, किसी संस्था में सुरक्षा गार्ड को 10 हजार रूपये मिल रहा है, तो दूसरे संस्था में मात्र 5 हजार। कुछ संस्था झारखंड सरकार के श्रम कानून को मानता है, तो कुछ संस्था नहीं मानता है।
डोली मजदूरों की स्थिति और भी बदतर
संस्थाओं में कार्यरत मजदूरों की स्थिति से और भी बदतर स्थिति डोली मजदूरों की है। डोली मजदूरों को न तो सर छुपाने के लिए कोई जगह है, न शौचालय व पेयजल का कोई प्रबंध। झारखंड सरकार द्वारा तीर्थयात्रियों को पर्वत बंदना के लिए दोपहिया व चारपहिया वाहन के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाया गया है, लेकिन स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से दोपहिया व चारपहिया वाहन फर्राटे से तीर्थयात्री को लेकर पहाड़ पर चढ ़रहे हैं। झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केन्द्रीय कमिटी सदस्य द्वारिका राय व अजीत राय बताते हैं कि ‘मधुबन थाना के कोटाटांड़ निवासी पुशन राय ने अपना एक एकड़ जमीन डोली मजदूर भवन (शेड) के लिए दिया, जिसपर झारखंड पर्यटन विभाग से करोड़ों रूपये का डोली मजदूर भवन का निर्माण भी हो गया, लेकिन उसमें अभी पुलिस का कैम्प बना दिया गया है। लेकिन 27 जनवरी 2020 को गिरिडीह डीसी की अध्यक्षता में हुई बैठक में फिर से सीओ को डोली मजदूर भवन के लिए जमीन चिन्हित करने का निर्देश दिया गया है।
डोली मजदूर भवन के नाम पर बहुत ही बड़ा घपला यहां चल रहा है।‘‘ डोली मजदूर हराधन तुरी बताते हैं कि ‘पहले प्रत्येक वर्ष हमलोगों की मजदूरी बढ़ती थी, लेकिन मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगने के बाद से मजदूरी वृद्धि बंद हो गई है। पहले मजदूर संगठन समिति का कार्यालय डोली मजदूरों का बसेरा हुआ करता था, लेकिन वहां पुलिस ने ताला मार दिया है, अब तो सर छुपाने के लिए कोई जगह ही नहीं है। अस्पताल की भी कोई व्यवस्था नहीं है, पहले मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में हमलोगों ने ‘श्रमजीवी अस्पताल’ खोला था, जिसमें सभी का फ्री इलाज होता था, लेकिन पुलिस ने उसे भी सीज करके ताला मार दिया। लाखों रूपये का दवाई अभी भी अंदर ही बंद होगा।’ सभी मजदूर एक स्वर में बोलते हैं कि अगर अभी मजदूर संगठन समिति होता, तो संस्थाओं की मनमानी नहीं चलती। संस्थाओं के प्रबंधन हमेशा धमकाते हैं कि जब तुम्हारे 28 साल पुराने पंजीकृत ट्रेड यूनियन को बंद करवा सकते हैं, तो तुम्हें भी बंद करवा सकते हैं।
20 फरवरी को होगा सभी संस्थाओं में हड़ताल
बैठक में मौजूद झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के मधुबन शाखा अध्यक्ष बसंत कर्मकार व सचिव मनोज महतो बताते हैं कि ‘यह बात तो सही है कि मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगाने के बाद प्रबंधन का मनोबल काफी बढ़ा है, लेकिन अब मजदूर और कर्मचारी हमारे यूनियन के बैनर तले गोलबंद होने लगे हैं। लेकिन पुलिस-प्रशासन की नजर अब भी टेढ़ी ही है। मधुबन में आयोजित तमाम बैठकों में गिरिडीह एसपी सुरेन्द्र कुमार झा कहते हैं कि यहां बाहरी लोगों की नेतागिरी नहीं चलने देंगे। हमारी यूनियन के केन्द्रीय अध्यक्ष बच्चा सिंह व केन्द्रीय महासचिव डीसी गोहाई का मधुबन आना प्रशासन को पसंद नहीं है। मधुबन थाना प्रभारी भी हमें ध्मकाते हैं कि तुमलोग को अंदर कर देंगे।
तीन सूत्रीय मांगें इस प्रकार हैः- 1. 24 अक्टूबर 2019 से जो झारखंड सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी एवं सेवा अवधि के आधार पर प्रतिशत दर में वृद्धि की गई है, को लागू किया जाय, 2. आन्दोलनरत कामगारों की मांगों को अविलंब पूरा किया जाय व 3. डोली मजदूरों के साथ 19 दिसंबर 2017 को जो समझौता हुआ है, उसे अविलम्ब लागू करवाया जाय।’ साथ ही उन्होंने बताया कि ‘हमलोगों ने एक आवेदन झारखंड के मुख्यमंत्री को भी भेजा है कि किस प्रकार मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगने के बाद यहां कर्मचारियों व मजदूरों का जैन संस्था द्वारा शोषण हो रहा है। अगर हमारी कोई नहीं सुनेंगे, तब मधुबन को अनिश्चितकाल के लिए ठप्प कर देना हमारी मजबूरी हो जाएगी।’