भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय अमित शाह की संपत्ति में इजाफे पर दि वायर पर छपी रोहिणी सिंह की स्टोरी के मामले में सरकार खुद जय के बचाव में उतर आई है। अमित शाह भले एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष हों, लेकिन उनका बेटा एक कारोबारी है। एक कारोबारी के बचाव में केंद्र सरकार का उतर आना दिलचस्प है।
रविवार की शाम जब जय शाह ने दि वायर पर 100 करोड़ का मानहानि का मुकदमा ठोंकने और ऐसे किसी भी प्रकाशन पर जो उन आरोपों को दुहराता है या उसका संदर्भ देता है उस पर भी मुकदमा करने की बात कही, तो केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बाकायदे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के जय शाह का बचाव किया।
गोयल ने कहा कि शाह ने कोई गलत काम नहीं किया है और उन्हें जो कर्ज मिला है वह बिलकुल पारदर्शी है और उसे बाकायदे चुकाया गया।
ध्यान रहे कि पिछले दिनों आपराधिक मानहानि के औपनिवेशिक कानून पर काफी लंबी बहस सुप्रीम कोर्ट में चली थी जिसके बाद अदालत ने इसकी वैधता को पुष्ट करते हुए इस कानून को बरकरार रखा था। अभी तीन दिन पहले बुलंदशहर रेप केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की खंडपीठ के समक्ष हुई बहस में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने इसी फैसले की याद दिलाते हुए व्यक्तियों की प्रतिष्ठा की अहमियत को गिनवाया था।
पिछले साल चली बहस के दौरान जहां केंद्र सरकार ने आइपीसी के तहत मानहानि के कानून का बचाव किया था, वहीं विधि आयोग ने माना था कि मानहानि का मुकदमा अनुच्छेद 19 में मीडिया को मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन करता है और इसकी समीक्षा की जानी चाहिए। विधि आयोग के पैनल ने आइपीसी की धारा 499 और 500 को खत्म करने के लिए कई पक्षकारों से कई दौर की बहस चलाई थी।
दिलचस्प यह है कि मानहानि का कानून ब्रिटेन में पैदा हुआ था लेकिन वहां इसे खत्म किया जा चुका है, लेकिन अब तक यह भारत में राजनीतिक हितों को साधने के काम आ रहा है। वियना आधारित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट द्वारा मानहानि कानून पर प्रकाशित एक श्वेत पत्र कहता है कि ”लोकतांत्रिक राज्यों में आलोचना व असहमति का अधिकार अनिवार्य स्वतंत्रताएं हैं और अभिव्यक्ति की आज़ादी की नींव हैं।”