”आज के दौर में पत्रकार होना बीस-तीस साल पहले के मुकाबले ज्‍यादा कठिन हो गया है”!

लॉर्ड एंथनी विलियम हॉल यानी टोनी हॉल बीबीसी के पुराने दिग्‍गज हैं। माना जाता है कि 2013 में इसके महानिदेशक का पद संभालने के बाद हॉल ने बीबीसी का कायाकल्‍प कर डाला। इस महीने बीबीसी ने भारत की चार और भाषाओं में अपना प्रसारण शुरू किया है– तेलुगु, पंजाबी, मराठी और गुजराती। टोनी हॉल ने भारत में बीबीसी के विस्‍तार, डिजिटलाइज़ेशन और आज के दौर में पत्रकार होने से जुड़े विषयों पर किम अरोड़ा से बात की। यह साक्षात्‍कार मीडियाविजिल टाइम्‍स ऑफ इंडिया से साभार अपने हिंदी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत कर रहा है।

वर्ल्‍ड सर्विस में पहले तो छंटनी की बात सामने आई लेकिन अब हम नई सेवाओं को खुलता देख रहे हैं। क्‍या हुआ था?

वर्ल्‍ड सर्विस दरअसल लाइसेंस के पैसे से अनुदानित था और उसी के भरोसे हमारी सारी क्षमता इत्‍यादि टिकी हुई थी। मैंने सरकार के सामने वर्ल्‍ड सर्विस के विस्‍तार की दलील रखी और मैं कामयाब रहा। वर्ल्‍ड सर्विस का सालाना बजट 215 मिलियन पाउंड है। अगले कुछ वर्षों के लिए हम अतिरिक्‍त 85 मिलियन पाउंड अर्जित करने में सफल रहे हैं। मैं अब उनसे यही कहना चाहूंगा कि हमारे काम को देखें और उसके आधार पर इसे जारी रखें।

रेडियो के मामले में आप क्‍या कर रहे हैं?

यहां चूंकि एफएम पर कुछ बंदिशें हैं, लिहाजा हम भविष्‍य के बाज़ारों और आंशक रूप से टेलिविज़न पर ज़ोर लगा रहे हैं। हमारे बाज़ार के लिहाज से एक और हिस्‍सा बहुत निर्णायक है। वो है ऑनलाइन, मोबाइल, इत्‍यादि। मेरे लिए यही भविष्‍य है।

ऑनलाइन वीडियो और पॉडकास्‍ट को लेकर भारत में आपकी क्‍या योजनाएं हैं?

मेरी चिंता का विषय वे लोग हैं जिनके पास मोबाइल फोन तो है लेकिन डेटा नहीं है। उन तक अपनी ख़बरें पहुंचाना एक सवाल है। हमारे लिए एक बड़ा मसला यह है कि लोग जहां कहीं मौजूद हैं, हम वहां तक कैसे पहुंचें ताकि वे हमें देख सकें। फिर दो चीज़ें मायने रखती हैं। एक तो सामग्री पर अधिकार का मामला है। लोगों को यह पता होना चाहिए कि उन्‍हें जो सामग्री मिली है वह बीबीसी की है। दूसरी चीज़ लोगों के डेटा उपभोग के बारे में जानकारी हासिल करना है।

मैं लंदन में किसी को नियुक्‍त करूंगा जो इस बात का ध्‍यान रख सके कि हम अपने दर्शकों के लिए डेटा के मामले में विश्‍वस्‍तरीय कैसे हो सकें। अपनी सेवाएं कायदे से प्रसारित करने के लिए हमें यह पता होना चाहिए कि हम किसके लिए प्रसारण कर रहे हैं। यह एक अवसर भी है क्‍योंकि अगर मुझे पता हो कि आप क्‍या देखना चाहते हैं तो हम अपनी सेवाओं को उसके हिसाब से सटीक अनुकूलित कर सकते हैं। एक और बात यह भी कही जा सकती है कि ”हम जानते हैं कि आप क्‍या चाहते हैं लेकिन हमारा मानना है कि आपको यह भी जानना चाहिए।” हम इसके खिलाफ हैं कि लोग और ज्‍यादा संकीर्ण होते जाएं और वही सामग्री पाएं जो उनके विचारों को पुष्‍ट करती हो। आखिर हम लोगों को उन चीज़ों के बारे में सोचने को कैसे प्रेरित करें जो उनकी धारणा के खिलाफ हों? हमारे जैसे पत्रकारों के लिए यह भूमिका अहम है।

भारत में भाषायी पत्रकार संकट में हैं। दो पत्रकारों गौरी लंकेश और पंकज मिश्रा को हाल ही में मार दिया गया। ऐसे दौर में भारतीय भाषाओं में बीबीसी के प्रवेश को आप कैसे देखते हैं?

मेरा मानना है कि हम सभी पत्रकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पत्रकार अपने पेशे में सुरक्षित रहें और उनके साथ हमें खड़ा रहना चाहिए। बीस साल पहले जब मैं बीबीसी न्‍यूज़ चलाता था और अब जबकि मैं वापस आया हूं, एक फ़र्क जो मुझे तंग करता है वो यह कि अब पत्रकार निशाने पर हैं। जब मैं समाचार प्रभाग चलाता था, उस वक्‍त कभी-कभार ही पत्रकार मारे जाते थे। यह भयंकर था। उस वक्‍त ऐसा इसलिए होता था क्‍योंकि परिस्थितियां अपरिहार्य हो जाती थीं। पत्रकार लोगों के सामने केवल सच रखने का काम करता है। इसलिए हमें उनकी सुरक्षा करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। लोगों का मारा जाना त्रासद है। इन घटनाओं तक ले जाने वाली प्रक्रियाएं, जैसे ट्रोलिंग इत्‍यादि, हमारी दुनिया के लिए अनिष्‍ट का संकेत है और उतनी ही भयानक है।

क्‍या विदेशी समाचार प्रतिष्‍ठानों के लिए काम करने के लिहाज से भारत मुश्किल जगह है?

मैं इस पर टिप्‍पणी नहीं करना चाहूंगा कि भारत में काम करना या प्रसारण करना कैसा अनुभव है। मैं इतना कहूंगा कि दुनिया भर में अब (एक पत्रकार के रूप में) काम करना ज्‍यादा मुश्किल हो गया है, लेकिन ज्‍यादा अहम बात यह है कि पत्रकार वह काम करें जिसके लिए उन्‍हें पैसे मिलते हैं यानी सत्‍ता में बैठे लोगों से सवाल करना। इससे भी ज्‍यादा ज़रूरी है कि पत्रकारिता प्रतिष्‍ठानों में बैठे हम लोग तात्‍कालिकता के पार जाकर उन व्‍यापक मुद्दों को देखें जिनके बारे में दुनिया को गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है। फिर भी मुझे लगता है कि आज से 20 या 30 साल पहले के मुकाबले अब पत्रकार होना कहीं ज्‍यादा मुश्किल है। इस बारे में मुझे कोई संदेह नहीं।


देखें चार भारतीय भाषाओं में बीबीसी के प्रसारण की शुरुआत का प्रोमो वीडियो

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