BJP की पोस्‍टकार्ड राजनीति यानी 15000 करोड़ का घाटा झेल रहे डाक विभाग को करोड़ों का चूना

बंगाल में बीजेपी के नवनिर्वाचित सांसद अर्जुन सिंह मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी से इतना नाराज़ हैं कि उन्होंने निश्चय किया है कि वे दस लाख लोगों से ममता बनर्जी को को ‘जय श्री राम’ लिखे हुए दस लाख पोस्टकार्ड भिजवायेंगे. आजकल एसएमएस और वॉट्सऐप का ज़माना है. ऐसे में पोस्टकार्ड कौन भेजता है?

अर्जुन सिंह का कहना है कि ममता की सरकार ने ‘जय श्री राम’ कहने पर दस लोगों को गिरफ्तार किया है. ‘’हम देखते हैं दस लाख लोगों को ‘जय श्री राम’ लिखे पोस्टकार्ड भेजने पर वे उन्हें कैसे गिरफ्तार करती हैं’’.

मीडिया रिपोर्ट और तस्वीरों को देख कर लगता है कि अर्जुन सिंह वास्तव में दस लाख पोस्टकार्ड भेजने वाले हैं. इस कार्य के लिए पोस्टकार्ड वितरित हो चुके हैं जिनमें अनुरोध किया गया है कि वे उस पर ‘जय श्री राम’ लिख कर ममता बनर्जी को भेज दें.

यदि यह दस लाख पोस्टकार्ड भेजने की बात प्रतीकात्मक है तब तो ठीक है किन्तु यदि वे वास्तव में दस लाख पोस्टकार्ड भेजने वाले हैं, तो यह एक गंभीर मामला है जिस पर ध्यान देना चाहिए.

ममता बनर्जी को भेजे जाने वाले पोस्टकार्ड के जो चित्र मीडिया में आए हैं उनमें ममता का पता रबर स्टाम्प से छापा गया है. इसी प्रकार जो पत्र भेजने का अनुरोध है वह भी रबर स्टाम्प से छापा गया है.

भारतीय डाक के नियमों के अनुसार ऐसे पोस्टकार्ड जिन पर लेखन छपाई, साइक्‍लोस्‍टाइल या प्रिंट किया जाए, वे प्रिंटेड पोस्टकार्ड की श्रेणी में आते हैं. ऐसे पोस्टकार्ड का मूल्य छह रूपये है. यह पोस्टकार्ड का व्यवसायिक उपयोग है.

आप देखेंगे कि बीजेपी ने इस कार्य के लिए 50 पैसे वाले पोस्टकार्ड का प्रयोग किया है जो दो व्यक्तियों के निजी संवाद के लिए होता है.

इस प्रकार आप देखेंगे कि डाक विभाग को प्रति पोस्टकार्ड पांच रूपये और पचास पैसे का नुकसान हो रहा है. इस हिसाब से दस लाख पोस्‍टकार्ड से हो रहे नुकसान की गणना आप कर लीजिए.

बीजेपी के राजनीतिक अभियान की कीमत सरकारी डाक विभाग को पचपन लाख रुपए का नुकसान झेलकर चुकानी होगी।

बंगाल से बीजेपी की पोस्‍टकार्ड राजनीति की खबर बाहर आते ही अब मुंबई और हैदराबाद से भी ऐसे ही पोस्‍टकार्ड ममता बनर्जी  को भेजे जाने की खबरें आई हैं। अगर बीजेपी का यह अभियान इसी तरह ज़ोर पकड़ता रहा तो डाक विभाग का नुकसान लाखों नहीं करोड़ों में पहुंच जाएगा।

सूचना के अधिकार के तहत किए गए एक आवेदन के हवाले से इकनॉमिक टाइम्‍स ने बताया है कि 2013 में जो पोस्टकार्ड पचास पैसे का बेचा जाता था उस पर डाक विभाग को लगभग सात रुपए खर्च करने पड़ते थे. इसी प्रकार प्रिंटेड पोस्ट कार्ड की कीमत छह रूपये थी जबकि विभाग को उसके प्रचालन में सात रुपये उन्नीस पैसे खर्च करने पड़ते थे.

इस आकलन के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज की तारीख में डाक विभाग को यह पचास पैसे का एक पोस्टकार्ड कितने का पड़ता होगा.

अब एक दूसरा मुद्दा- पोस्टकार्ड एक स्वीकृत डाक नहीं है. इसे आप डाक काउंटर पर नहीं देते हैं. इसे लेटरबॉक्स में डालना होता है. ऐसे में यह जरूरी नहीं है कि भेजने वाला उस पर अपना नाम और पता लिखे.

ऐसे में डाक विभाग अपने पांच रुपये पचास पैसे (साधारण पोस्टकार्ड और प्रिंटेड पोस्टकार्ड की कीमत का अंतर) किससे वसूल करेगा? पत्र पाने वाला (ममता बनर्जी) ऐसे पत्र को स्वीकार करने से ही मना कर सकता है, पैसे देने का तो सवाल ही नहीं उठता.

एक और सवाल. जब पत्र भेजने वाले का नाम और पता यदि पत्र में नहीं लिखा है या यदि  लिखा भी है तो यह पता नहीं कि वह गलत है या सही. ऐसे में ममता सरकार किसको गिरफ्तार करेगी और किसे जेल भेजेगी? बीजेपी के लोग ममता सरकार को यह कैसी चुनौती दे रहे हैं?

जब डाक विभाग का पोस्टकार्ड लेटर बॉक्स में पड़ जाता है तो उस के निबटान की जिम्मेदारी डाक विभाग की हो जाती है, यह विभाग सरकार का है अत: जिम्मेदारी सरकार की हो जाती है. हमें ज्ञात नहीं है कि डाक विभाग इस चुनौती से कैसे निबटेगा.

भारतीय डाक को वर्ष 2018-19 में 15,000 करोड़ का घाटा हुआ था. घाटे के मामले में डाक विभाग ने बीएसएनएल और एयर इण्डिया को भी पीछे छोड़ दिया है. अब यह सरकार की सबसे ज्यादा घाटा खाने वाली कम्पनी बन गई है.

अर्जुन सिंह सत्तारूढ़ दल बीजेपी से सांसद हैं. उन्हें राजनीति करने का अधिकार है. सरकार की सहमति और सहयोग भी उन्हें मिलेगा. मगर यह कैसा विरोध प्रदर्शन या चुनौती है जिसकी कीमत भारत सरकार के एक उपक्रम को चुकानी पड़ रही है. वह भी ऐसा उपक्रम जो मरणासन्न है और जिसे बचाने की जिम्मेदारी सरकार की है. सरकार उसी विभाग को मार कर अपनी राजनीति चमकाती प्रतीत होती है.


लेखक सरकारी सेवा से रिटायर्ड स्‍वतंत्र लेखक और वर्तमान में जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय में विजिटिंग फैकल्टी हैं

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