अकबर के इस्तीफ़े पर अखबारों के दिलचस्प शीर्षक और ‘न्याय का पुजारी’ बताता TOI

संजय कुमार सिंह


आज की खबरों में निश्चित रूप से अकबर के इस्तीफे की खबर सबसे महत्वपूर्ण है। वैसे तो सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला कम महत्वपूर्ण नहीं है पर उत्तर भारत और उसमें भी हिन्दी भाषियों के अखबार में इसे कम महत्व दिया जाना समझ में आता है। हालांकि, यह मामला टीआरपी का ही है और आज मीडिया पर यह सबसे बड़ा आरोप है कि वह वही करता है जिससे टीआरपी मिलती है। आदर्श पत्रकारिता में उसकी चर्चा भी जरूरी है पर उसपर अलग से चर्चा हो सकती है।

अकबर की खबर को टेलीग्राफ ने आठ कॉलम में बैनर बनाया है। शीर्षक है,अकबर रिजाइन्स टू फाइट ‘पर्सनल बैटल’ (निजी लड़ाई लड़ने के लिए अकबर ने इस्तीफा दिया)। टेलीग्राफ की बात अलग है उसमें इस्तीफे पर पहले ही पेज पर एक और खबर है। आफ्टर पोएटिक जस्टिस वेट फॉर जस्टिस। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे सात कॉलम में लीड बनाया है। शीर्षक है, एमजे अकबर एकसिस्ट्स वर्कप्लेस (एमजे अकबर कार्यस्थल से बाहर)। यौनशोषण के आरोपी का कार्यस्थल से बाहर होना मतलब रखता है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने सबरीमाला मंदिर की खबर को लीड बनाया है पर अकबर की खबर को भी प्रमुखता दी है। हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक रूटीन है। अकबर क्विट्स ऐज मिनिस्टर एमिड माउंटिंग प्रेशर, चार्जेज। अखबार ने उपशीर्षक लगाया है, कोर्ट केस टुडे। सेज स्टेपिंग डाउन टू चैलेंज ऐक्यूजेशंस इन पर्सनल कैपेसिटी (अदालत में आज कार्रवाई। कहा कि गलत आरोपों को निजी तौर पर चुनौती देने के लिए इस्तीफा दिया है।

इसमें खास बात यह है कि सत्तारूढ़ दल का राज्यसभा सदस्य जो 2016 में चुना गया 2022 तक पद पर रहेगा की निजी क्षमता क्या होगी इसका पता सबको है और इस लिहाज से अखबार का शीर्षक बहुत कुछ कहता है, मंत्री के रूप में पद छोड़ा। यह निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है। मंत्री पद तो वैसे भी नौ महीने भी नहीं रहना था। इसका महत्व तकनीकी ही है। मुकदमा कोई निजी नहीं रहेगा और इसीलिए प्रिया रमानी ने उम्मीद जताई है कि वे उस दिन का इंतजार कर रही हैं जब उन्हें अदालत में भी न्याय मिलेगा। यही नहीं, अमित शाह तो सरकार में नहीं हैं पर जज लोया की मौत की जांच की मांग रुकवाने के लिए वकीलों की फौज खड़ी करने से लेकर जो सब हुआ वह उनके पद के कारण ही है।

मुझे लगता है कि आरोपों की गंभीरता, 16 महिलाओं के आरोप और 20 की गवाही देने की पेशकश के कुल नौ दिन बाद राज्यमंत्री के पद से इस्तीफा बड़ी बात नहीं है। ऐसे व्यक्ति को निजी लड़ाई ही लड़नी है तो राज्यसभा से भी इस्तीफा देना चाहिए था और चूंकि भाजपा में इस्तीफे नहीं होते इसलिए यह इस्तीफा भी बड़ा लग रहा है। वरना इस्तीफा देकर खुद को निर्दोष साबित करने या उसकी जरूरत का मतलब यही है कि आप मुकदमा लड़ने या आरोपों को छिपाने-दबाने या कमजोर करने में अपने पद और स्थिति का दुरुपयोग न कर पाएं। इस लिहाज से अकबर का यह कहना कि वे निजी तौर पर मुकदमा लड़ने के लिए इस्तीफा दे रहे हैं दरअसल अपनी तारीफ खुद करना है।

दिल्ली के हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में खबरों के पहले पन्ने से पहले लंबाई में आधा पन्ना और रहता है। इस लिहाज से इन दोनों अखबारों में दो लीड रहती है। आज इन दोनों अखबारों में इन दोनों पन्नों पर खबरों का चयन उल्टा है। टीओआई ने आधे पन्ने पर सबरीमाला मंदिर की खबर को छापा है और अकबर की खबर को पहले पन्ने पर लीड बनाया है जबकि एचटी ने आधे पन्ने पर अकबर को छापा है और पहले पन्ने पर सबरीमाला मंदिर की खबर है। अकबर पर टीओआई की लीड का शीर्षक और भी भोला-भाला बेवकूफ बनाने वाला है। शीर्षक है, अकबर क्विट्स ऐज मिनिस्टर ऑन ईव ऑफ डिफेमेशन हीयरिंग।

यह शीर्षक उन्हें और महान बनाता लगता है। अवमानना मामले पर सुनवाई से पहले अकबर ने मंत्री पद छोड़ा। यह प्रेस विज्ञप्ति के उनके दावे का विस्तार ही है और उन्हें न्याय के बड़े पुजारी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश है यह बता कर कि मंत्री पद छोड़ दिया तो अब वे आम नागरिक हो गए।



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