डॉ.स्कन्द शुक्ल
छोटके मामा ऐसे घूम-घूम नाचे कि न्यूटन भी गच्चा खा गये !
सौरमण्डल में आठ बड़े और प्रमुख ग्रह हैं। सभी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सभी के परिक्रमा-पथ एकदम गोल नहीं हैं , कुछ अण्डाकारिता लिये हैं। इनमें भी बुध मामा सबसे विचित्र हैं। सूर्य के सबसे पास चक्कर लगाते हुए भी इनका परिक्रमा-पथ कुछ ज़्यादा ही अण्डाकार है।
किसी गोल पथ की तरह अण्डाकार पथों में सूर्य एकदम बीचों-बीच नहीं रहता। वह एक ओर को हटा हुआ रहता है। ( चित्र देखें। ) तो जब ग्रह सूर्य की परिक्रमा इस अण्डाकार रास्ते में करेगा तो कभी वह सूर्य के पास से गुज़रेगा और कभी दूर हो जाएगा। पास की निकटतम स्थिति पेरीहीलियन ( Perihelion ) और सबसे दूर की स्थिति एपहीलियन ( Aphelion ) कहलाती है।
न्यूटन ने अपने गति के नियमों के आधार पर बुध के इस पथ-नृत्य की व्याख्या की बड़ी कोशिश की , लेकिन पूरी तरह कर न सके। बुध के पथ की वास्तविक स्थिति हमेशा गणितीय स्थिति से कुछ भिन्न ही निकली।
मामा नाचते रहे , न्यूटन के बाद वालों को भी नचाते रहे। दो सौ साल गुज़र गये।
बुध मामा तुम सूरज के चक्कर लगाते हो , तुम्हारा रास्ता भी सूरज के चक्कर लगाता है। न्यूटन न समझ पाये रास्ते की गति को ठीक से , हम समझते हैं। दरअसल तुम्हारे और सूरज के बीच में एक मामा और हैं। उनका नाम ? नाम है उनका वल्कन !
न्यूटन की प्रिन्सिपिया सन् 1687 में आयी थी , जिसमें उन्होंने अपने गति के नियम प्रकाशित किये थे। उन नियमों के अनुसार उन्होंने ग्रहों की गतियों और उनके कक्षा-वृत्तों की गतियों की भी व्याख्या का प्रयास किया। हर जगह बात ठीक बैठी , लेकिन बुध की कक्षा ने न्यूटन को गच्चा दे दिया।
बात आयी-गयी हो गयी। वैज्ञानिकों में सोच-विचार , पुनर्ध्ययन-पुनरवलोकन चलता रहा।
फिर एक नयी घटना हुई जिसने बुध की कक्षा के रहस्य पर कुछ नया प्रकाश डालने की कोशिश की। हुआ यह कि सन् 1781 में विलियम हर्शेल ने एक
फिर आये योरबाँ ल वेरिये। गणित के प्रयोग से बताया कि कक्षा में घूमते यूरेनस में कुछ विसंगतियाँ हैं। उनकी गणित के अनुसार कोई है जो यूरेनस पर अपना प्रभाव चला रहा है और उसकी गति को प्रभावित कर रहा है। फिर जुटे वैज्ञानिक और यूरेनस से परे एक और नया ग्रह पाया — नेप्ट्यून।
नेप्ट्यून को ऐसा-वैसा न समझिएगा। यह पहला ऐसा ग्रह था जिसकी भविष्यवाणी गणित ने आदमी के सामने की थी। आदमी गणित के इशारे पर चला और नया ग्रह उसने तब दूरदर्शी से देख लिया।
उस काल के विज्ञान को यह विषय बहुत भाया। ज्वालामुखियों के देवता के नाम पर उस ग्रह का नामकरण किया गया वल्कन , जिसकी ढंग से पुष्टि भी न हुई थी।
शायद वल्कन मामा बुध मामा को खींचते हैं। इसीलिए वे लड़खड़ाकर सूरज के चक्कर लगाते हैं।
ल वेरिये ग़लत थे। वल्कन नाम का कोई ग्रह था ही नहीं। यूरेनस-नेप्ट्यून वाला फ़ण्डा उन्हें बुध-वल्कन के मामले में गच्चा दे गया था।
अन्तरिक्ष का गुरुत्व कोई रेखानुमा बल-वल नहीं , किसी चुलबुले की प्रेयसी की लम्बी काली लहरदार साड़ी है। साँवला आँचल जिसे माशूक़ ने शरारत में किसी पास के पेड़ में फँसा कर बाँध दिया है। फिर उसके काले फैलाव पर उसने रख दिया है अपने प्रेम का बड़ा वज़नदार कोहिनूर , जिससे कपड़े की उठती-गिरती तरंगें किसी गहरे कुएँ में समाती-सी नज़र आती हैं। हाथ में उसके हास-परिहास के नन्हें रंगीन मूँगे-पन्ने हैं , जिन्हें वह उस मुहब्बत के बड़े जगमग हीरे के इर्द-गिर्द नचा रहा है।
गुरुत्व द्विआयामी सपाट मुहब्बती न्यूटनी मामला नहीं , आइन्स्टीनी चतुरायामी चंचल-चपल हृदय का तरंगण है। सत्रहवीं सदी ने जैसे प्रेम को समझा , वैसे ही गुरुत्व को भी। अब बीसवीं सदी में हर चीज़ प्रकाश की गति से जानी-बूझी जाने लगी।
भय और आलस्य से मिलकर उपजी अकर्मण्यता ही आस्था कहलाती है मामा। सदियों पहले तुम्हारी कक्षा की गति को न्यूटन ने साधने की कोशिश की , नहीं सधी। ल वेरिये नया काल्पनिक ग्रह वल्कन लेकर उस कक्षा की गति सिद्ध करने चले , असफल रहे।
मामा , तुम्हारी कक्षा सूर्य के बहुत क़रीब है और सबसे ज़्यादा अण्डाकार भी। तुम सूरज की परिक्रमा लगाते हो , तुम्हारी कक्षा भी आहिस्ता-आहिस्ता सूरज की परिक्रमा करती है। जिस गति से यह परिक्रमा करती है , उसे भौतिकी प्रीसेशन ऑफ़ पेरीहीलियन कहती है। सचमुच नापने पर और गणित से इसे निकालने पर एक ही नतीजे नहीं मिलते , अन्तर आता है। यह अन्तर बहुत थोड़ा है , लेकिन है।
सवाल है : यह बहुत थोड़ा अन्तर क्यों हैं मामा ?
एल्बर्ट आइंस्टीन का सामान्य सापेक्षता का सिद्धान्त प्रस्तुत करना भौतिकी-जगत् की एक अतिविशिष्ट घटना थी। एक ऐसी घटना जिसने सदियों से स्थापित
आइंस्टीन अपने सिद्धान्त में समय और दूरी को मिलाकर एक कर देते हैं। आप और मैं लम्बे हैं , हमारी कुछ चौड़ाई है। हमारी कुछ मोटाई भी है। हर वस्तु के ये तीन आयाम हैं , जिनसे हम परिचित हैं। लेकिन फिर एक चौथा आयाम भी है। समय। काल। वह दिखता नहीं , लेकिन महसूस होता है। हम सभी उसे महसूस करते हैं। वह हर पल बीत रहा है। लगातार। वह चौथा आयाम है। इस तरह से किसी भी वस्तु का वर्णन तीन नहीं बल्कि चार आयामों में किया जाना चाहिए। अमुक समय पर इतना लम्बा , इतना चौड़ा और इतना ऊँचा अमुक व्यक्ति या वस्तु।
हमारी आँखें या दूसरी इन्द्रियाँ समय को लगातार देख या महसूस कर नहीं पाती। वे समय के बीतने को जोड़कर नहीं देखतीं , ऐसा वे कर ही नहीं सकतीं। हर पल लगातार होते बदलाव हमारे लिए निरन्तर कहने को तो हैं , लेकिन जो जिस घड़ी जहाँ है , वहीं दिख रहा है। पिछला जो बीत चुका अब नहीं दिख सकता। अगला जो बीतेगा , वह भी अदृश्य है। लेकिन जो अदृश्य है , वह है नहीं ऐसा नहीं। अतीत वर्तमान से जुड़ा हुआ है कपड़े के रेशों-सा। भविष्य अनिश्चित ज़रूर है लेकिन जुड़ता जाएगा।
इसी कारण समय भी अन्तरिक्ष में हर जगह एक-सा नहीं बीतता , वह फैलता-सिकुड़ता है। सूरज-जैसे
आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धान्त के अनुसार बुध का कक्षा-वृत्त सूर्य के चारों ओर बिलकुल ठीक और सटीक चलता पाया गया।
न न्यूटन का बताया रेखीय आकर्षण , न वेरिये के किसी काल्पनिक वल्कन का संकर्षण !
बुध के प्रीसेशन ऑफ़ पेरीहीलियन के पीछे है आइन्स्टीनी आँचल का तरंगण !
( चित्र इंटरनेट से साभार। )
पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं। मीडिया विजिल उनके इस प्रयास के साथ जुड़कर गौरवान्वित है।