हरियाणा के मानेसर में स्थित दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी होंडा में 5 नवंबर से क़रीब 1600 कर्मचारी धरने पर बैठे हुए हैं। शुक्रवार को कंपनी ने 2 दिन का शटडाउन घोषित किया और साथ ही अंदर बैठे हुए 16 साल कैजुअल मजदूरों के लिए कैंटीन को बंद कर दिया।
नाम ज़ाहिर करने की शर्त पर अंदर धरने पर बैठे एक मजदूर ने फोन पर बताया कि कंपनी में कर्मचारियों के इस्तेमाल की जाने वाले टॉयलेट को वेल्डिंग करके सील कर दिया गया है।
शुक्रवार को कैंटीन बंद थी लेकिन यूनियन के पदाधिकारियों ने मैनेजमेंट से बातचीत कर कैंटीन खुलवाई तब जाकर दोपहर का खाना धरनारत मज़दूरों को मिला।
लेकिन मैनेजमेंट ने यह स्पष्ट कर दिया की इसके बाद न तो कैंटीन चलेगी और ना ही अंदर धरनारत मज़दूरों को कोई अन्य सुविधा दी जाएगी।
मज़दूरों ने बताया कि शुक्रवार शाम को उनको खाना नहीं मिला और पानी भी बंद कर दिया गया है। टॉयलेट पहले से ही सील कर दिया गया है इसलिए शनिवार को भी मज़दूर बिना खाना पानी के फैक्ट्री में बैठे रहे।
कंपनी गेट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों ने कहा कि शनिवार को जब केले से और खाने पीने का अन्य सामान अंदर धरनारत मज़दूरों को पहुंचाने की कोशिश हुई तो मैनेजमेंट ने और पुलिस फोर्स ने उनको रोक दिया।
वर्कर्स यूनिटी को पता चला है कि मैनेजमेंट और संबंधित ठेकेदार अंदर बैठे मजदूरों को लगातार धरना खत्म करने का दबाव दे रहे हैं।
यूनियन के एक प्रतिनिधि ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर वर्कर्स यूनिटी को बताया कि मैनेजमेंट की कोशिश है कि किसी तरह यह धरना तुड़वा दिया जाए और वो भी बिना मांग को माने हुए।
मज़दूरों की मांग है कि मंदी की आड़ में जिस तरह से 10-10 साल पुराने कैजुअल मज़दूरों की छंटनी की जा रही है उसको तत्काल बंद किया जाए और उनको या तो नौकरी दी जाए या फिर इतने सालों तक कंपनी में काम करने का मुआवजा दिया जाए।
कंपनी प्रबंधन दोनों ही मांगों को नहीं मान रहा है ऐसा बातचीत में शामिल यूनियन प्रतिनिधि ने वर्कर समिति को बताया।
शनिवार को भी बहुचर्चित बीएसएफ़ के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव होंडा के मज़दूरों से मिलने पहुंचे।
तेज बहादुर ने कहा कि सरकार की नीतियों के कारण देश में बेरोजगारी बढ़ रही है और कंपनियों को छंटनी के लिए खुलेआम छूट दे दी गई है।
5 नवंबर को यह मजदूर तक धरने पर बैठ गए जब दीपावली से पहले कंपनी की ओर से दिए गए आश्वासन के बावजूद लगातार छंटनी जारी रही।
उसी दिन तकरीबन ढाई सौ से 300 मजदूरों का आई कार्ड ले लिया गया और उन्हें कंपनी में घुसने से मना कर दिया गया।
यह पता चलते ही नौकरी से अचानक निकाल दिए गए मजदूर गेट पर ही धरने पर बैठ गए। अंदर जैसे ही सूचना मिली सारे कैजुअल वर्कर टूल डाउन कर अंदर धरने पर बैठ गए।
इन मज़दूरों में से कई लोगों ने हरियाणा की जेजेपी पार्टी के मुखिया दुष्यंत चौटाला के चुनाव में मदद की थी लेकिन इन मज़दूरों के बुलावे पर भी दुष्यंत चौटाला कंपनी गेट पर नहीं पहुंचे।
दुष्यंत चौटाला की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें वह गुड़़गांव में एक हॉस्पिटल का दौरा करते हुए नजर आ रहे हैं।
मज़दूरों ने बताया कि वह दुष्यंत चौटाला से उम्मीद बांधे हुए हैं लेकिन इस बात से निराश हुए हैं कि जिन दुष्यंत चौटाला की जेजेपी पार्टी को जिताने में उन्होंने अपनी अहम भूमिका निभाई थी वो गुड़गांव आ करके भी उन्हें हौसला देने तक के लिए मौका नहीं निकाल पाए।
वर्कर हरियाणा में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेताओं से भी खासा नाराज़ नज़र आए क्योंकि उनका कोई भी नेता 5 दिन हो गए अभी तक नहीं उनके पास नहीं पहुंचा है।
इस बीच वर्कर्स यूनिटी को ऐसे मज़दूर भी मिले जो खुले आसमान के नीचे इस ठंड और प्रदूषण में सोते हुए बीमार पड़ गए हैं।
कई मज़दूरों ने कई दिन से भोजन नहीं किया है। एक मज़दूर को डेंगू डिटेक्ट हुआ है लेकिन वह भी खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है।
मज़दूरों का आरोप है कि मैनेजमेंट लगातार कोशिश कर रहा है कि धरना खत्म हो इसीलिए उसने गेट पर लगातार नोटिस जारी करने की कोशिश की।
कभी नोटिस में धरना खत्म करने की अपील की गई तो कभी कहा गया कि अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। मैनेजमेंट ने 2005 की कोर्ट के फैसले का हवाला देकर कहा गया है कि कंपनी गेट से 200 मीटर दूर धरना होना चाहिए।
मज़दूरों ने बताया कि आम तौर पर पिछले महीने की सैलरी 6-7 तारीख तक आ जाती है लेकिन इस बार देर से वेतन दिया गया, उसमें भी कुछ मज़दूरों ने दावा किया कि उन्हें सैलरी नहीं मिली।
मुआवजे को लेकर की कंपनी ने एकदम चुप्पी साध रखी है और मज़दूरों को नियमित करने पर भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे रही है।
यूनियन के प्रतिनिधि रमेश कुमार ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि मैनेजमेंट से लगातार वार्ता चल रही है लेकिन वो अपने स्टैंड से जरा भी हिलने को राजी नहीं है।
ऐसे में होंडा का धरना एक ऐसे गतिरोध तक पहुंच गया है जहां यह मानवीय संकट में तब्दील होता नज़र आ रहा है और लगभग 3,000 मज़दूर बिना इंसाफ लिए उठने को तैयार नहीं हैं।
वर्कर्स यूनिटी से साभार प्रकाशित