‘हिंदुस्तान’ को झटका, 12 साल बाद 272 कर्मी होंगे बहाल !

श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाकर सैकड़ों मज़दूरों को बेरोज़गार कर देने वाले हिंदुस्तान टाइम्स के प्रबंधन को तगड़ा झटका लगा है। पटियाला हाउस कोर्ट ने 2004 में निकाले गये 272 कर्मचारियों को पूरे बकाये के साथ वापस नौकरी देने का फ़ैसला दिया है। यह फ़ैसला पत्रकारों के संघर्ष के लिए भी नज़ीर बन सकता है।

ग़ौरतलब है कि 2004 में हिंदुस्तान टाइम्स ने 362 कर्मचरियों को अवैध ढंग से नौकरी से निकाल दिया था। इसके खि़लाफ़ श्रम अदालत का दरवाज़ा खटखटाया गया। फ़ैसला मज़दूरों के पक्ष में हुआ। इसके बाद कड़कड़डूमा कोर्ट में लड़ाई चलती रही जिसने 23 जनवरी 2012 को मज़दूरों के हक़ में फ़ैसला दिया। लेकिन इस फ़ैसले को हाईकोर्ट में हिंदुस्तान प्रबंधन ने चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने उसे वापस निचली अदालत में भेज दिया। चूँकि हिंदुस्तान की संपत्तियाों का परिक्षेत्र पटियाला कोर्ट है, इसलिए मामला वहाँ पहुँचा और उसने 14 मई के चार हफ्ते के अंदर संघर्ष करने वाले सभी 272 कर्मचारियों की बहाली का आदेश जारी कर दिया। बाकी लोगों ने इस बीच प्रबंधन से समझौता कर लिया था। ॉ

ऐसे वक्त में जब सहारा के सैकड़ों कर्मचारी सड़क पर वेतन और बकाये की माँग कर रहे हैं, इस फ़ैसले का आना बड़़ी उम्मीद जगाता है। कॉरपोरेट मीडिया पत्रकारों को रातदिन यह समझाने में जुटा हुआ है कि किसी की नौकरी कभी भी ली जा सकती है, हाँलाकि श्रम सुधारों के नाम होने वाला यह क़ानूनी बदलाव अभी मुमकिन नहीं हुआ है।

हिंदुस्तान ने तमाम पत्रकारों को भी इसी नीति के तहत बाहर का रास्ता दिखा दिया था। लोगों को पहले कांट्रैक्ट पर जाने को मजबूर किया गया, जो नहीं माने उन्हें निकाल दिया गया। कांट्रैक्ट वालों के साथ भी मनमर्ज़ी व्यवहार किया गया. यह फैसला बताता है कि अगर पत्रकार ख़ुद को मज़दूर माने तो अपने हक़ की लड़ाई लड़ सकते हैं। वरना तो कारपोरेट मीडिया सब्ज़बाग दिखाएगा और फिर जवानी चूस कर गुठली की तरह तब सड़क पर फेंक देगा जब सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

ख़ास बात यह है कि हिंदुस्तान की तरफ़ से कभी मौजूदा वित्तमंत्री अरुण जेतली वकालत करते थे। समझना मुश्किल नहीं कि मीडियाकर्मियों को अपनी उपलब्धि बचाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ सकता है। पत्रकरों के लिए भी राह खुली है, अगर वे अपने को मज़दूर मानने को तैयार हों,.. क़लम का मज़दूर।

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