राममंदिर पर मुसलसल दंगल यानी एजेंडा सेटिंग का खुला खेल फ़र्रुख़ाबादी !

साकेत आनंद


पत्रकारिता की पढ़ाई में एक थ्योरी पढ़ाई जाती है- एजेंडा सेटिंग थ्योरी।

इस सिद्धांत की अवधारणा यह है कि मीडिया के द्वारा मुद्दों का निर्माण किया जाता है। मीडिया कुछ ख़ास मुद्दों को तरजीह देकर अन्य सभी मुद्दों की उपेक्षा करता है। लोगों को ये बार-बार बताया जाता है कि ये मुद्दा आपके लिए काफ़ी अहम है। आम लोगों को भी अख़बार या समाचार चैनल से ही पता चलता है कि कौन-से मुद्दे प्रमुख हैं। इसलिए वे इन संचार माध्यमों को देखने के बाद अपनी प्राथमिकताओं को तय करते हैं।

ये सभी तस्वीरें पिछले एक महीने के दौरान की हैं (एक को छोड़कर)। जो आपके ‘सबसे तेज़’ चैनल पर बहस का विषय बना रहा। एजेंडा किस तरीके से स्थापित किया जाता है, इसका इससे बढ़िया उदाहरण और कुछ नहीं हो सकता है। ज़्यादा लिखने की ज़रूरत नहीं है, आप भी समझते हैं।

प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार वाल्टर लिपमैन ने अपनी पुस्तक “पब्लिक ओपिनियन” में एजेंडा सेटिंग के बारे में लिखा था- लोग वास्तविक दुनिया की घटनाओं पर नहीं, बल्कि उस मिथ्या छवि के आधार पर प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हैं जो हमारे दिमाग़ में बनाई गई है/जाती है। मीडिया हमारे मस्तिष्क में ऐसी छवि बनाने और एक झूठा परिवेश (माहौल) बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इस प्रोपेगैंडा से बचिए। आपको ये विषय भले ही चटकदार लगते हों, लेकिन ये आपके ही ख़िलाफ़ एक साज़िश है। आपको बहुत ही शानदार तरीके से भटका दिया गया है

 

लेखक युवा पत्रकार हैं।

 



 

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