काले धन में कमी का दावा करने वाले TOI का ‘सर्वोच्च सूत्र’ कहीं सरकार ही तो नहीं!

 

संजय कुमार सिंह

 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने “सर्वोच्च सरकारी सूत्रों” के हवाले से खबर छापी है कि स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा 80 प्रतिशत कम हो गया है। यह मीडिया की इन रपटों के उलट है कि 2017 में इसमें 50 की प्रतिशत वृद्धि हुई है। खबर में कहा गया है कि “सर्वोच्च सरकारी सूत्रों” ने मंगलवार को यह जानकारी दी। आगे सूत्रों के ही हवाले से (पता नहीं सूत्र वही है या कोई और) कहा गया है कि स्विस बैंक का जो डाटा सार्वजनिक किया गया था उसकी मीडिया ने “गलत व्याख्या” की है। खबर में आगे कहा गया है कि उन्होंने (सूत्रों ने) कहा कि वित्त मंत्री पीयूष गोयल को लिखे एक पत्र में स्विस राजदूत एनड्रियस बॉम ने कहा है कि अक्सर यह मान लिया जाता है कि स्विटजरलैंड में भारतीयों की कोई भी संपत्ति अघोषित (काला धन है)।

इस खबर के साथ स्विस राजदूत की कथित चिट्ठी की कॉपी भी लगी है जो चिट्ठी के रूप में कम प्रेस विज्ञप्ति के रूप में ज्यादा नजर आ रही है। इस विज्ञप्ति के मुताबिक, 28 जून 2018 को (चार दिन कम, एक महीना पहले) स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) ने 2017 के अपने वार्षिक बैंकिंग आंकड़े जारी किए थे। इसमें प्रकाशित आंकड़े एसएनबी द्वारा किए गए बैंकों के सर्वेक्षण पर आधारित हैं और स्विस बैंकिंग क्षेत्र की व्यापक तस्वीर मुहैया कराते हैं। इसी में आगे कहा गया है कि मीडिया रिपोर्ट में अक्सर इन आंकड़ों को उस तरह नहीं लिया गया है जिस तरह इनकी व्याख्या की जानी चाहिए। नतीजतन भ्रमित करने वाले शीर्षक और विश्लेषण (प्रकाशित हुए हैं)। इसके बाद यह भी कहा गया है कि अक्सर यह माना जाता है कि स्विटजरलैंड में भारतीयों की संपत्ति को अघोषित तथाकथित काला धन माना जाता है। फिर तकनीकी विवरण हैं। एक लिंक भी है।

विज्ञप्ति के इस प्रकाशित अंश में सीधे-सीधे नहीं कहा गया है कि, “स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा 80 प्रतिशत कम हो गया है” जैसा शीर्षक बनाया गया है। इसमें 2016-17 के दौरान 44 प्रतिशत कमी की बात कही गई है और तकनीकी आधार पर पता नहीं कैसे इसे 80 प्रतिशत कहा जा सकता है। जो भी हो, यह खंडन बैंक के अपने ही आंकड़ों की कथित गलत व्याख्या के एक महीने बाद जारी किया गया है और हमें यह मान लेना चाहिए कि अब टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसकी सही व्याख्या की है। मैं उस विस्तार में नहीं जा रहा। लेकिन इसी खबर के आधार पर पीयूष गोयल राहुल गांधी पर हमला कर रहे हैं और कह रहे हैं कि राहुल गांधी मामले को जाने बगैर निराधार बात कर रहे हैं। जबकि सूचना पूरी हो तो मामला सबकी समझ में आ जाएगा।

स्विस अधिकारियों (राजदूत) के खंडन, टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर और राहुल गांधी पर पीयूष गोयल के हमले को मिलाकर देखिए तो मामला बहुत साफ है। खंडन बहुत तकनीकी है फिर भी उसमें यही कहा जा रहा है उसकी गलत व्याख्या हुई है। यह मानना मुश्किल है कि अनुभवी पत्रकारों ने गलत व्याख्या की और सरकार को स्थिति स्पष्ट करने-कराने में एक महीना लग गया। फिर भी। तथ्य चाहे जो हो, चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी यही कहते थे कि स्विस बैंक में भारतीयों का जो धन है काला है। अगर पूरा धन काला न भी हो तो कितना है यह चार साल में नहीं पता चला ना एक पैसा वापस आया। स्विस बैंक में भारतीयों का कुल कितना पैसा है (अब तो नए सिरे से बताना चाहिए) उसमें कितना काला कितना सफेद है और यह कितने समय में जमा हुआ है। यह सब तय किए बगैर किस आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीयों का धन बढ़ा या घटा। और बढ़ा या घटा वह काला धन है या सफेद। जाहिर है, इन बातों का कोई मतलब नहीं है पर राहुल गांधी की छवि खराब करनी है तो लगे हुए हैं। मीडिया का साथ है सो ऊपर से।

अब 50 प्रतिशत धन बढ़ने की खबर सही या गलत, विज्ञप्ति के आधार पर छपी थी। अब सरकार कह रही है कि बढ़ा नहीं है, घटा है और उसका श्रेय लेना चाह रही है। मैं बढ़ने या घटने के विवाद में नहीं पड़ता – मुद्दा तो यह है कि जो काला धन था (पूरा नहीं तो जो भी था) वापस क्यों नहीं आया। तथ्य यह है कि वापस आना तो छोड़िए सरकार यह भी नहीं बता सकती है कि स्विस बैंक में जमा भारतीयों के धन में कितना काला कितना सफेद है। जब चार साल पहले के मामले का कुछ नहीं हुआ तो अब विवाद किसलिए? इसीलिए ना कि आरोप न लगाए जाएं और मुद्दा बदल जाए। धन्य है यह सरकार और इसका मीडिया मैनेजमेंट। इमरजेंसी में तो खबरें छापने पर रोक थी यहां मनमुताबिक खबरें छपवाई जा रही हैं। और उसके आधार पर आरोप लगाए जा रहे हैं। तथ्यों से मुंह फेर लिया गया है सो अल!

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



 

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