देश में पहला डेटा सुरक्षा कानून का ढांचा बनाने के लिए गठित की गई विशेषज्ञ कमेटी ने मांग की है कि ”पत्रकार” और ”पत्रकारीय कर्म” को स्पष्ट तरीके से परिभाषित किया जाए ताकि इन दो श्रेणियों को डेटा सुरक्षा कानून से छूट दी जा सके।
दि हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक ख़बर के मुताबिक कमेटी ने प्रस्तावित डेटा सुरक्षा कानून में रियायत दिए जाने के लिए ”घरेलू उद्देश्यों, पत्रकारीय और साहित्यिक उद्देश्यों” पर ज़ोर देते हुए कहा है कि ”पत्रकारीय उद्देश्य” और ”पत्रकार” जैसे शब्दों को कानून में साफ़ तरीके से परिभाषित करना होगा।
इस सदस्यीय कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा कर रहे हैं। इस कमेटी ने एक श्वेत पत्र तैयार किया है जिसे बीते सोमवार को इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सार्वजनिक विमर्श के लिए जारी किया था।
यह कमेटी 31 जुलाई को गठित की गई थी जिसका काम प्राइवेसी के उल्लंघन से जुड़ी चिंताओं के आलोक में एक डेटा सुरक्षा कानून का मसविदा तैयार करना था। जानकारों का मानना है कि पत्रकार की परिभाषा तय करने के प्रयासों के चलते पत्रकारीय स्वतंत्रता का हनन हो सकता है।
सोशल मीडिया के दौर में माना जा रहा है कि पत्रकार की परिभाषा को और व्यापक किया जाना होगा क्योकि वर्किंग जर्नलिस्ट कानून के तहत एक श्रमजीवी पत्रकार की परिभाषा उस व्यक्ति को पत्रकार मानती है जिसका मुख्य काम पत्रकारिता करना हो।