दैनिक जागरण के पटना संस्करण में रविवार को इस शीर्षक से एक सिंगल कॉलम खबर छपी: ”अपने कर्मों की सज़ा भुगत करहे लालू: माले”। पहली नज़र में ऐसा लगता है कि गलती टाइपिंग की है, ‘रहे’ की जगह ‘करहे’ छप गया है। अंदर देखने पर पता चलता है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के बिहार राज्य सचिव के हवाले से यह बयान छापा गया है। बिहार की राजनीति से परिचित कोई भी व्यक्ति झट से बता देगा कि माले और लालू के बीच का राजनीतिक रिश्ता ऐसा नहीं रहा कि इस किस्म का बयान आवे।
मौके पर इस खबर का खंडन पटना में पार्टी के कार्यालय सचिव कुमार परवेज़ ने किया है और पटना जागरण के स्थानीय संपादक को एक पत्र लिखकर कहा है कि ”ऐसा प्रतीत होता है कि भाकपा-माले के मुंह से भारतीय जनता पार्टी की बात कहलवाई गई हो”। उन्होंने पत्र में साफ़ किया है कि पार्टी ने न तो इस संदर्भ में अख़बार को अपना कोई बयान भेजा है और न ही पार्टी के किसी नेता से अख़बार के किसी प्रतिनिधि ने बात की है।
अहम बात यह है कि लालू प्रसाद यादव को हुई सज़ा के मामले में पार्टी ने 7 जनवरी को ही एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की लेकिन जागरण की खबर चूंकि इसी दिन छपी है, इससे साफ़ पता लगता है कि जानबूझ कर कोई बदमाशी की गई है। कुमार परवेज़ ने संपादक को लिखा है कि इस ख़बर की वजह से पार्टी की छवि धूमिल हुई है।
नीचे भाकपा-माले बिहार की ओर से दैनिक जागरण के पटना संपादक को लिखा पत्र है और लालू प्रसाद यादव की सज़ा पर पार्टी द्वारा जारी बयान भी प्रकाशित है।
पत्रांक 02/2018
दिनांक 07.01.2018
सेवा में,
संपादक महोदय
दैनिक जागरण, पटना.
विषय: बिना किसी आधार के खबर छापकर हमारी पार्टी की छवि धूमिल करने के संबंध में.
महोदय,
आपके अखबार दैनिक जागरण के 7 जनवरी 2018 के अंक में हमारी पार्टी के बिहार राज्य सचिव कुणाल के हवाले से लालू प्रसाद की सजा पर जो बयान छपा है, वह हमारी पार्टी के राजनीतिक स्टैंड से पूरी तरह भिन्न है. ऐसा प्रतीत होता है कि भाकपा-माले के मुंह से भारतीय जनता पार्टी की बात कहलवाई गई हो.
हमने न तो इस संदर्भ में किसी प्रकार का कोई बयान भेजा है और न ही हमारे किसी नेता से आपके अखबार के किसी प्रतिनिधि की कोई बात हुई. फिर यह कैसे संभव हुआ? इसकी वजह से हमारी पार्टी की छवि धूमिल हुई है और इससे राजनीतिक नुकसान पहुंच सकता है. आपका अखबार जनता के बीच सही खबरों को पहुंचाने की बजाए उसे तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है. यह बेहद निंदनीय है.
अतः हमारी आपसे मांग है कि आगे से ऐसी गलती न हो इसकी गारंटी करें और लालू प्रसाद की सजा पर हमारे स्टैंड को प्रमुखता से छापे.
उम्मीद है कि हमारी बातों पर गंभीरता से विचार करेंगे.
कुमार परवेज
कार्यालय सचिव, भाकपा-माले, बिहार
प्रेस रिलीज
लालू प्रसाद की सजा पर भाकपा-माले का बयान
न्याय से अधिक राजनीति हुई, पक्षपातपूर्ण कार्रवाई
पटना 7 जनवरी, 2018
भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि देवघर ट्रेजरी घोटाला मामले में लालू प्रसाद को साढ़े तीन बरसो की सजा सुनाई गई है. हमारी पार्टी का मानना है कि इसमें न्याय से अधिक राजनीति हुई है और भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों के दमन पर उतारू है.
उन्होंने कहा कि 2 जी स्पैक्ट्रम में सीबीआई दोषियों के खिलाफ एक भी सबूत नहीं जुटा सकी, क्योंकि उसमें बड़े कारपोरेट फंस रहे थे. वहीं सीबीआई मोदी सरकार के इशारे पर उनके राजनीतिक विरोधियों को हर तरह से परेशान करने में जी-जान से जुटी है.
उन्होंने यह भी कहा कि चारा घोटाले की शुरूआत डॉ जगन्नाथ मिश्र की सरकार के समय हुई और लालूजी की सरकार तक चलती रही. इसमें भाजपा के भी प्रभावशाली नेता शामिल थे. जिस देवघर ट्रेजरी स्कैम में लालू प्रसाद को सजा हुई है, उसमें उनपर आरोप है कि विभागीय टिप्पणी को नजरअंदाज कर एम प्रसाद और बीएन शर्मा को सेवा विस्तार दिया गया.
यदि इसे ही आधार बनाया जाए तो सृजन घोटाले के तार नीतीश कुमार, सुशील मोदी व गिरिराज सिंह से जुड़ते हैं. इन तमाम लोगों ने सृजन घोटाला के मास्टरमाइंड मनोरमा देवी को न केवल पुरस्कृत किया, बल्कि मनोरमा देवी को सहकारिता की ग्रैंड मदर की संझा दी थी. सृजन खजाना घोटाले के दौरान लंबे समय तक वित्तमंत्री का पद ‘घोटाला उजागर पुरुष’ सुशील कुुमार मोदी के पास ही था. राजकोष का पैसा वित मंत्रालय के इजाजत के बिना नहीं निकल सकता है. इसलिए सुशील मोदी पर कार्रवाई संवैधानिक नियमों के अनुरूप बनती है. लेकिन भाजपा नेताओं के सवाल पर ‘जीरो टाॅलरेंस’ की नीति औंधे मुंह गिर जाती है.
कुमार परवेज
कार्यालय सचिव, भाकपा-माले, बिहार