”हिंदू एकीकरण” पर गुलाब कोठारी के लेख की भर्त्‍सना में दो प्रतिक्रियाएं

राजस्‍थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का हिंदू एकीकरण पर लेख पाठकों के निशाने पर है। एक बार फिर कोठारी ने आरक्षण के विरोध में लेख लिख मारा है। इससे पहले 30 अगस्‍त 2015 को उन्‍होंने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था, ”आरक्षण से अब आज़ाद हो देश”। गुलाब कोठारी खासकर इसलिए भी आलोचना के निशाने पर हैं क्‍योंकि पिछले दिनों राजस्‍थान मेंपारित एक पत्रकार विरोधी कानून के खिलाफ उन्‍होंने जंग छेड़ते हुए ”जब तक काला तब तक ताला” नाम का अभियान शुरू किया था और वसुधरा राजे से जुड़ी खबरों के बहिष्‍कार का आह्वान किया था। उस वक्‍त कोठारी की काफी सराहना हुई थी।
मीडियाविजिल प्रस्‍तुत लेख पर फेसबुक से साभार दो टिप्‍पणियां पाठकों के लिए छाप रहा है।

शिवदास

पत्रिका समूह के मालिक गुलाब कोठारी को आरक्षण के बूते अक्षम का सक्षम बनना खटक गया है और वह आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से कथित हिन्दूओं को ब्राह्मणवादी सवर्णों का गुलाम बनाने के लिए आरक्षण को खत्म करने की गुहार लगा रहे हैं। इसके बावजूद बहुजन हैं कि इस समूह का अखबार खरीद रहे हैं और उसकी वेबसाइट की खबरों का लिंक शेयर कर रहे हैं। आखिरकार इस समूह के उत्पादों का बहिष्कार क्यों नहीं करते?


अरविंद शेष

ओहो…! वरना राजस्थान पत्रिका और उसके गुलाब कोठारी ने तो क्रांति ही कर डाली थी…!

अभी दो महीने भी नहीं बीते हैं जब इस देश की क्रांति ने राजस्थान पत्रिका को क्रांतिकारी घोषित कर डाला था, क्योंकि उसने राजस्थान सरकार के एक विधेयक के खिलाफ संपादकीय की जगह को खाली छोड़ कर ‘ऐतिहासिक’ विरोध दर्ज किया था..!

आज यानी चार जनवरी को उसके मालिक गुलाब कोठारी ने एक बार फिर से सरकार और पूरे सिस्टम को ‘हिंदू एकीकरण’ के लिए अकेला रास्ता यह बताया है कि आरक्षण की व्यवस्था खत्म करो.. इससे अक्षम भी आगे बढ़ने लगा है… सवर्ण मुंह ताकने वाला बन कर रह गया है… भागवत जातिगत आरक्षण हटाने का आह्वान करें… आरक्षण हटाने के लिए कानून बनाओ..!

यह है असली क्रांति..! राजस्थान की अदालत परिसर में मनु की मूर्ति की प्रेरणा से गुलाबाराम कोठारी बापू की इसी क्रांतिकारी कमाल-धमाल की तो इस देश की क्रांति कुछ समय पहले आरती उतार रही थी…! दरअसल, उसके तार से जुड़ी बात यह है कि 2015 में भी गुलाब बापू ने यही धमाल किया था..!

अब समझ में आया कि इस देश की किरांति को गुलाब बापू की क्रांति काहे प्यारी है..!

First Published on:
Exit mobile version