सोशल मीडिया के ट्रोलों को लेकर क्या शिकायत करें जब हिंदुस्तान और दैनिक जागरण जैसे शीर्ष हिंदी अख़बारों ने ही देश को सांप्रदायिक आग में झोंकने को अपना लक्ष्य बना लिया है।
कल इन दोनों अख़बारों के मेरठ संस्करण में बड़ौत में काँवड़ देखने जुटी भीड़ को व्यस्थित करने के लिए पटकी गई पुलिसिया लाठियों की ख़बर में ‘पाकिस्तान ज़िदाबाद’ के झूठ का छौंका लगा दिया।
दैनिक जागरण ने भी अपनी परंपरा के मुताबिक आग में घी डालने में कोई कोताही नहीं की। उसने ‘मुस्लिम युवकों ने डाक काँवड़ रोकी और खंडित करने का प्रयास’ जैसी सबहेडिंग भी लगाई ।
हक़ीक़त ये है कि वहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ था।
अमर उजाला की ख़बर बताती है कि यह सिर्फ़ भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास था।
जागरण ख़ुद को दुनिया का नंबर एक अख़बार बताता है और यह पुराना आरोप है कि वह नफ़रत की आग सुलगाकर ही सर्किलेशन की रोटी सेंकता रहा है। लेकिन हिंदुस्तान को क्या हुआ ? यह तो गाँधी जी की प्रेरणा से 1924 में स्थापित समाचार समूह का अख़बार है। तब इरादा था कि अंग्रेज़ों के प्रभुत्व वाले अख़बारों के सामने एक ऐसा अख़बार हो जो ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का पर्दाफाश करे। समाज में स्वतंत्रता और भाईचारे की अलख जगाए। लेकिन 93 साल बाद आज यह उस संकल्प को होम करने में जुटा हुआ है।
जागरण का तो मालिक ही संपादक है। लेकिन हिंदुस्तान के संपादक की कुछ ‘हैसियत’ मानी जाती है। हिंदुस्तान की कमान शशिशेखर के पास है। संपादक के रूप में हिंदुस्तान की इस दुर्गति के लिए वे सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं। यह केवल एक घटना नहीं है। पिछले कुछ सालों में हिंदुस्तान में ऐसी सांप्रदायिक रिपोर्टिंग की तमाम मिसाले हैं। वैसे, शशिशेखर वही हैं जिनके पास 1992 में दैनिक आज के आगरा संस्करण की कमान थी और बाबरी मस्जिद तोड़ने के दौरान हुई सांप्रदायिक रिपोर्टिंग में उन्होंने दैनिक जागरण को आगे नहीं निकलने दिया था।
यह सब प्रेस काउंसिल की रिपोर्ट में दर्ज है।
बड़ौत की ख़बर इस क़दर झूठी है कि आम लोग भी सड़कों पर उतर आए। इनमें वे बीजेपी नेता भी शामिल थे जिन्हें पता है कि आग लगने पर किसी का घर नहीं बचता। उनका भी नहीं बचेगा। यह भ्रम केवल हिंदी के शीर्ष अख़बारों को है
मीडिया विजिल इस पूरी सूचना के स्रोत के लिए मेरठ निवासी आरिफ़ ख़ान का आभारी है जिन्होंने फ़ेसबुक पर लगातार अपडेट दिए। हम उनकी दो पोस्ट साभार प्रकाशित कर रहे हैं
आख़िर किस हद तक गिरेंगी हमारे हिंदुस्तान की मीडिया…।
यूपी के 3 सबसे बड़े अखबारो में ख़बर छपती है वो भी अलग अलग…#अमर_उजाला ने सही ख़बर छापी,तो वही #दैनिक_जागरण और #हिंदुस्तान ने एक झूठी ख़बर को साम्प्रदायिक बना डाली..।
कल रात बड़ौत शहर में डाक कांवड़ियों को देखने के लिए एक हुजूम जिसमें महिलायें,बच्चे बड़े ही ख़ुशी के साथ नगर की नेहरू मूर्ति से ले कर संजय मूर्ति तक जमा थे.।ना कोई झगड़ा हुआ ना किस्सी कांवड़ियों के साथ बत्तेमिजी हुई सिर्फ़ भीड़ शोर मचा कर और हाथ हिला कर कांवड़ियों का स्वागत और अभिनंदन कर रही थी…।
कुछ ही देर में पुलिस ने आ कर भीड़ को हटाया और थोड़ी भग दड़ में लाठियाँ चलाई… इस बात को भंड़ मीडिया ने ज़हर घोलने वाली और अपने अख़बार की नई ताज़ा ख़बर बनाने के लिए क्या बेहुदा ख़बर बना डाली…।
जहाँ सारे हिंदुस्तान में मुस्लिम समाज की जानिब से कांवड़ियों की ख़िदमत कर के भाईचारे को भडावा दिया गया…।वही मुस्लिम समाज क्यूँ बत्तेमिजी करेगा…वही मीडिया ज़हर घोलने वाली न्यूज बनाती है..अफ़सोस होता है ऐसी मीडिया पर आख़िर कैसे विश्वास किया जाए मीडिया पर..।
#दैनिक_जागरण, #अमर_उजाला, #हिंदुस्तान
दैनिक जागरण और हिंदुस्तान अख़बार ने जो बागपत जिले में हिन्दु_मुस्लिम के प्यार में ज़हर घोलने की कोशिश की थी वो कोशिश #सरा_सर नाकाम हुई..।
आज फिर फूँस वाली मस्जिद पर #हिन्दु_मुस्लिम एकता की मिसाल क़ायम हुई..
दैनिक जागरण में छपी ग़लत ख़बर के ख़िलाफ़ शहर के हज़ारों मुस्लिम भाइयों ने और साथ में काफ़ी हिन्दु भाई और भाजपा नेता बागपत ज़िला अध्यक्ष #संजय_खोखर,नगर अध्यक्ष #राकेश_जैन समीत काफ़ी भाजपा नेता मुस्लिम समाज के साथ आ कर अख़बार वालों का और पत्रकारों का विरोध किया और कड़ी कार्यवाही करने और साथ देने का आश्वाशन दिया..।वही साथ ही सपा पूर्व प्रतियाशी शोकिंदर पहेलवान, सलीम चेयरमेन,इरफ़ान मलिक,इसरार खान, हाजी ज़मीरूदीन अब्बासी,नूर मलिक मोजूद रहे..।
जो लोग इस ग़लत ख़बर के ख़िलाफ़ खड़े हुए है में उन सभी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ..।
आपका ख़ादिम..#Aarif_khan