एक वेलेंटाइन वीर की व्यथा कथा !

सात पीढ़ियों के ब्रहचर्य का संचित तेज बटोरकर भइया जी ने दरवाजे से बाहर कदम रखा। लेकिन बाहर परिस्थितियां वीरोचित नहीं थीं। बसंती बयार की मादकता मदमस्त कर रही थी। दिल पतंग होकर टॉप फ्लोर वाली के आसमान में अठखेलियां करने को मचल रहा था। मन मतंग आज सारी बेड़ियां तोड़ देना चाहता था। हैलमेट हाथ में लिये भइया जी कुछ देर तक यूं ही खड़े रहे। फिर मन को लक्ष्य की तरफ केंद्रित करने के लिए बजरंग बली का नाम लिया। लेकिन बजरंगबली जैसे आज कैजुअल लीव पर थे और जाने से पहले भइया जी को कामदेव को हवाले कर गये थे। बजरंग बाण पर कामबाण भारी थी और भइया जी की निगाहे बार-बार सामने वाले टॉप फ्लोर की बालकोनी को तक रही थीं।…. बस एक बार वो देख लें तो चलूं।

प्राचीन वीरांगानाएं रणभूमि पर जा रहे अपने प्रियतम को रक्त तिलक लगाकर विदा किया करती थीं। सांस्कृतिक पतन के इस दौर में ऐसी कोई उम्मीद बेमानी थी। अब कहां हैं, वैसी वीरांगनाएं! हां भइया जी जैसे कुछ वीर ज़रूर हैं, जो पतन की ओर अग्रसर युवा पीढ़ी को रास्ते पर लाने का युद्ध लड़ रहे हैं। वह सामूहिक पतन का दिन यानी वेलेंटाइन डे था। पूरी दुनिया इसे प्यार के इज़हार का दिन मानती है। लेकिन कुछ लोगो के लिए यह शौर्य के प्रदर्शन का दिन है। भइया जी उन्ही लोगो में एक हैं। उन्हे लगता है कि प्रेम सड़क पर प्रदर्शित करने की चीज़ नहीं है। सड़क पर प्रदर्शित की जाने लायक इकलौती चीज़ वीरता है। सड़क पर प्रेम का प्रदर्शन राह चलते लोगो का ध्यान भटका सकता है और इससे दुर्घटना हो सकती है। यह कई लोगो के मन में ईर्ष्या भी पैदा कर सकता है, जो समाज के लिए हानिकारक है। लेकिन बीच बाज़ार वीरता का प्रदर्शन युवकों में साहस भरता है। इसलिए बेकसूरों की पिटाई और कुटाई जैसे सारे वीरोचित काम सदियों से सड़क पर ही किये जाते रहे हैं। वीरता के सार्वजनिक प्रदर्शन का लाभ यह भी है कि इसके परिणामस्वरूप कभी-कभी प्रेम भी हो जाता है। आखिर राजकुमारियां वीरता पर मोहित होकर ही तो राजकुमारों को वरण करती थीं। भइया जी ध्यान टॉप फ्लोर वाली राजकुमारी पर अंटका हुआ है, जिसने अभी तक दर्शन नहीं दिये.. वरण करने की बात तो दूर ही है। मुहल्ले में नई आई है और शायद उसने भइया जी की वीरता का बखान नहीं सुना है। सुन भी ले तो क्या गारंटी?

पिछले वेलेंटाइन डे पर भइया जी ने कई जोड़ो को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था और वीरता का यश फैला तो राखी बहनो की तादाद बढ़ गई। लेकिन भइया जी ने माइंड नहीं किया। चेचक के दाग वाली मुंहबोली बहने जितनी ज्यादा होंगी, बायोडाटा उतना ही प्रभावशाली होगा। भइया जी का दृढ़ विश्वास है कि सुंदर युवतियां वीर पुरुषो को कभी भाई नहीं बनाती हैं। इस बार भइया जी ने मीडिया कवरेज का ज्यादा पुख्ता इंतजाम किया है। लोकल मीडिया के साथ नेशनल न्यूज़ चैनल के स्टिंगर्स को भी इत्तला दी जा चुकी है। शाम होते-होते पूरा देश भइया जी को पहचान लेगा और टॉप फ्लोर वाली राजकुमारी संस्कृति के रक्षक वीर का उसी तरह वरण कर लेगी जिस तरह संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान किया था। भइया जी ने बाइक के शीशे में खुद को देखा, मूंछे ऊंची की। नायिका के स्मरण से चेहरे पर जो मृदु भाव आ गया था उसे हटाकर वीरो वाली एक परमानेंट मुख मुद्रा बनाई और बाइक लेकर निकल पड़े ऋंगार रस पर वीर रस की विजयगाथा लिखने।

भइया जी की बाइक सीधे सिटी मॉल पर जाकर रुकी। पहले से मौजूद संस्कृति रक्षकों ने अपने कमांडर की अगवानी की। लेकिन कमांडर का चेहरा उतर गया और वो चिल्लाया–  सिर्फ चार लोग, कहां मर गये बाकी सब के सब?

`दुर्गा की नई शादी हुई है। बीवी ने मना किया है, इसलिए नहीं आएगा।–  चेले ने जवाब दिया।

.. और बाकी सब?

`बाकी है ही कौन? राजू और हेमंत पहले ही बोल चुके हैं कि तुम्हारी नेतागीरी के चक्कर में हम और रिस्क नहीं लेंगे। पप्पू की नौकरी लग गई है और मुन्ना फोन नहीं उठा रहा है। ले देकर हम चार ही हैं।‘

नेशनल चैनल वाले पार्ट टाइम रिपोर्टर ने भइया जी एंड कंपनी को हिकारत से देखा और बोला—तुम लोग तो कह रहे थे वेलेंटाइन डे विरोध में विशाल प्रदर्शन होगा? फालतू टाइम बर्बाद करवाया।

भइया जी ने रिपोर्टर को भरोसा दिलाया कि वे भारतीय संस्कृति के जांबाज सिपाही है। संस्कृति की रक्षा संख्या से नहीं बल्कि हौसलो से की जाती है। पांच हो या पच्चीस कोई फर्क नहीं पड़ता है। कैमरा लेकर साथ आओ।

भइया जी एंड कंपनी आगे-आगे चली और रिपोर्टर पीछे-पीछे। सुबह का वक्त था, प्यार के सार्वजनिक इज़हार का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ था। मार्केट में घूमते हुए संस्कृति के सिपाहियों को ऋंगार पर वीरता की विजयगाथा लिखने लायक कोई दृश्य नज़र नहीं आया। कैमरा थामे चल रहा रिपोर्टर झुंझला रहा था। लेकिन भइया जी को पता था कि असली शिकार कहां मिलेगा। उन्होने रिपोर्टर से अनारकली पार्क चलने का आग्रह किया। पार्क में कदम रखते ही संस्कृति के सिपाहियों के चेहरे पर चमक आ गई। सुबह की गुनगुनी धूप में बैठे कई जोड़े नज़र आये। फौरन नारेबाजी शुरू हो गई–  विदेशी संस्कृति नहीं चलेगी। वेलेंटाइन डे बंद करो। पार्क में भगदड़ मच गई। जोड़े इधर-उधर भाग रहे थे और भइया जी विजयी भाव से आगे बढ़ रहे थे और रिपोर्टर शूटिंग कर रहा था। पार्क के बीचो-बीचो एक बहुत ही ढीठ किस्म का जोड़ा बैठा था। शोर-शराबे से बेखबर अपने आप में खोया। भइया जी के करीब आने का भी उनपर कोई असर नहीं हुआ। संस्कृति रक्षकों के कमांडर उर्फ भइया जी ने प्रेमी नौजवान को कॉलर पकड़कर उठाया,  हाव-भाव से एथलीट दिखने वाला नौजवान शांति से बोला—ये क्या बदत्तमीजी है?

भइया जी ने जवाब में चांटा जड़ दिया। लेकिन तभी एंटी क्लाइमेक्स शुरू हो गया। लड़की ने अपने प्रेमी के बचाव में सैंडिल उतार ली और भइया जी पर टूट पड़ी। भइया जी ने युवती को रोकने की कोशिश की और नतीजे में उन्होने खुद को भीड़ में घिरा पाया। मौके की नजाकत भांपकर उनके तीन सिपाहियों ने पतली गली पकड़ ली। चौथा जो बच गया, भीड़ ने भइया जी के साथ उसका भी यथोचित सत्कार किया।  .. शाम होते-होते भइया जी एक राष्ट्रीय ख़बर बन चुके थे। नेशनल चैनल के एंकर चीख-चीख कर ब्रेकिंग न्यूज़ बता रहे थे– वेलेंटाइन डे के दिन प्रेमियों ने संस्कृति के पहेदार की चप्पल से धुनाई। कई दिनों तक स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद भइया जी आज घर से बाहर निकले। बाइक स्टार्ट करते वक्त उनकी नज़र सामने वाले टॉप फ्लोर की बालकोनी पर पड़ी। राजकुमारी अपने बाल सुखा रही थी। पृथ्वीराज ने संयोगिता को देखा तो संयोगिता को हंसी का दौरा पड़ गया। पागलो की तरह हंसती हुई वह अंदर चली गई और पृथ्वीराज बाइक की हैंडिल थामे मिनटो वहीं हतप्रभ खड़ा रहा।

 

राकेश कायस्थ

(लेखक मशहूर व्यंग्यकार हैं.)

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