नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ देशभर में बीते एक महीने से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन जारी है. दिल्ली के शाहीन बाग के तर्ज पर इलाहाबाद, लखनऊ, मुंबई आदि कई शहरों में महिलाएं धरने पर बैठी हैं. वहीं देश भर में छात्र भी सड़कों पर उतरे हुए हैं. तमाम दमन और धारा 144 के बावजूद इन प्रदर्शनों को रोक नहीं पाई है सरकार. अकेले दिल्ली में ही एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ धरना-प्रदर्शन चल रहा है. निजामुद्दीन में भी महिलाएं धरने पर बैठी हैं. वहां की यह रिपोर्ट प्रस्तुत है: (संपादक)
भारी पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के बीच बरसते आसमान के नीचे तीन दिन से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठी हैं निजामुद्दीन की स्त्रियां और बच्चे। जबर्दस्त उत्साह से भरे दूसरी, तीसरी चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे चार्ट में नारे और मांगे लिखकर उसे पोस्टर बैनर में तब्दील कर देते हैं। वहीं बगल में ही कुछ बड़ी कक्षा के छात्र प्रदर्शनकारियों के शरीर के अंगों पर तिरंगा पेंट कर रहे हैं।
एक बुजुर्ग –
फिर बच्चियां मंच से नारे लगाती हैं —
आजाद देश में ………आजादी
है हक़ हमारा ……….आजादी……
शाह जहाँ आगे कहती हैं- “तीन तलाक के वक्त मोदी जी हमारे भाई बन गए थे। हम लोगो ने उस वक्त अपने घरवालों तक से झगड़ा कर लिया था कि ये कानून ठीक है आने दीजिए। इससे हमें प्रोटेक्शन मिलेगा। लेकिन ऐसा प्रोटेक्शन मिलेगा की बचाव में हमें सड़कों पर आना पड़ेगा तो नहीं चाहिए हमें। हमने बहुत से मुद्दों पर सवाल नहीं उठाई। लेकिन हम पर हमारे बच्चों के भविष्य पर बन आई है। अब हम चुप नहीं बैठेंगे। हम डंडे-गोली सब खाने के लिए तैयार हैं। जेल जाना पड़े या मरना पड़े लेकिन अब हम पीछे नहीं हटेंगी। ये हमारा हिंदुस्तान है और इस पर हमारा हक़ है हमसे हमारा हक़, हमारा हिंदुस्तान कोई नहीं छीन सकता। ”
नसीमा कहती हैं- “ हमारे खिलाफ़ जो नाइंसाफियां हो रही हैं हम उसके खिलाफ़ उतरी हैं। हर बर्दाश्त की एक इन्तहाँ होती है जो कि हो चुकी है। हम अपना हक़ लेने के लिए बैठी हैं औऱ लेकर ही उठेंगे।”
कुछ युवा मिलकर एकसाथ नारा लगाते हैं-
सीएए को नहीं मानते
एनआरपी को नहीं जानते
मोदी को भी नहीं जानते
आरएसएस पर हल्ला बोल……
बुजुर्ग रजी अहमद कहते हैं- “इन्होंने आरएसएस के एजेंडे को लागू करने के लिए आँखों में पट्टी बाँध ली है, कानों में रुई ठूँस ली है। इन लोगों को ये पता ही नहीं कि मुल्क़ चलता कैसे है। जिन लोगों के अपने घर नहीं बसा वो मुल्क़ को क्या खाक सम्हालेंगे। जिन्होंने कभी अपनी घर गहस्थी नहीं सँजोई वो मुल्क़ को खाक संजोएंगे। घर चलाने के लिए भी बहुत अकल, जजबा, जद्दोजहद और फिक्र चाहिए होती है। मुल्क़ चलाना बच्चों का खेल नहीं है। ये कोई खेल नहीं है कि आप जो चाहो मुल्क़ के साथ करते रहो।