टीवी चैनलों के संपादकों की संस्था ब्रॉडकास्ट एडिटर्स असोसिएशन को टीवी ऐंकर रोहित सरदाना की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अचानक हमला होता दिखा है। इस संगठन ने मंगलवार को एक बयान जारी कर के आजतक के ऐंकर को उनके एक ट्वीट के बदले मिल रही धमकियों की कड़ी निंदा की है।
अपने बयान में बीईए कहता है, ”आजतक के ऐंकर रोहित सरदाना ने अपने ट्वीट में भारत के मनोरंजन उद्योग में अभिव्यक्ति की आज़ादी के असंतुलित इस्तेमाल पर चिंता जतायी थी… प्रच्छन्न हितों वाले लोगों ने उनके सिर पर ईनाम का एलान कर दिया है… बीईए दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ऐसी असहिष्णुता भरी हरकतों की निंदा करता है जो आज़ाद अभिव्यक्ति की रक्षा करने को संवैधानिक रूप से बाध्य है।”
रोहित सरदाना ने क्या ट्वीट किया था? उन्होंने लिखा था कि ”अभिव्यक्ति की आज़ादी- फि़ल्मों के नाम सेक्सी दुर्गा, सेक्सी राधा रखने में ही है क्या? क्या आपने कभी सेक्सी फ़ातिमा, सेक्सी आएशा, सेक्सी मेरी जैसे नाम सुने हैं फि़ल्मों के?” बीईए के मुताबिक यह ट्वीट ”भारत के मनोरंजन उद्योग में अभिव्यक्ति की आज़ादी के असंतुलित इस्तेमाल पर चिंता” जताता है।
आइए, देखते हैं कि बीईए का रोहित सरदाना के पक्ष में यह बयान खुद कितना असंतुलित, अज्ञानता से भरा हुआ और हितों के टकराव का घटिया उदाहरण है।
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के कहने पर ‘सेक्सी दुर्गा’ नामक फिल्म के निर्देशक ने इसका नाम बदलकर ‘एस दुर्गा’ कर दिया था। लिहाजा नाम बदले जाने के बाद ‘सेक्सी दुर्गा’ के बहाने की गई कोई भी टिप्पणी सचेतन रूप से बासी कढ़ी में उबाल लाने जैसी बात होगी या दूसरे शब्दों में कहें तो यह उन लोगों को भड़काने वाली अभिव्यक्ति मानी जाएगी जिन्हें इसके मूल नाम पर आपत्ति थी। रोहित सरदाना का ट्वीट इस लिहाज से ”सार्वजनिक व्यवस्था”, ”शालीनता” और ”नैतिकता” (अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 19(अ) में दी गई बंदिशों में वर्णित कारण) के खिलाफ़ जाता है।
- चूंकि ट्वीट फि़ल्म के नाम पर है, फिल्म के कंटेंट पर नहीं लिहाजा सरदाना का उठाया सवाल अपने आप में तकनीकी रूप से गलत साबित हो जाता है क्योंकि फि़ल्म के भीतर हिंदुओं की देवी ‘दुर्गा’ का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है। केंद्रीय पात्र जो महिला है, उसका नाम दुर्गा है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं। बिना फिल्म देखे भी इस बात को लोग जानते हैं क्योंकि फिल्म के निर्देशक इस पर काफी लंबा बयान दे चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की सूची से फिल्म को हटाए जाने के दौरान इस पर काफी बातें हुई हैं। रोहित सरदाना इससे बेख़बर नहीं होंगे, न ही बीईए। फिर इस ट्वीट को करने का क्या मतलब? बीईए को आखिर सरदाना के ट्वीट में कौन सी ‘चिंता’ दिखाई दे रही है?
- फिर भी समस्या यदि वास्तव में फिल्म के नाम से ही है, तो रोहित सरदाना ने ज़ी न्यूज़ में रहते हुए ”ताल ठोंक के” और आजतक में आने के बाद ”दंगल” में जैसे कार्यक्रम किए हैं उनके नामों की एक झलकी देखें:
– विकास के ‘मारे’, ‘हिंदू आतंकवाद’ के सहारे
– पीएम को ‘गाली’, हाफि़ज़ को ‘ताली’
– ”राष्ट्रवादी” ताकतों के खिलाफ चर्च?
– ट्रिपल तलाक़ को आखिरी ”तलाक़”
– ‘मुजरे’ करा कर कश्मीर को पालेगा पाकिस्तान?
– भारत में कब तक पलेंगे ‘पाकिस्तानी नेता’ और ”दूत”?
– “मुग़ल” भारत के लिए बोझ या विरासत?
इन कार्यक्रमों के नाम पर बात करें, कंटेंट पर नहीं। सार्वजनिक व्यवस्था बिगाड़ने,नैतिकता और शुचिता के खिलाफ़ जाने, विदेशी राज्य से मित्रवत संबंध को बिगाड़ने आदि का आरोप बड़ी आसानी से इन पर लगाया जा सकता है। उसके बावजूद बीईए को आज तक इन कार्यक्रमों में कहीं कुछ गलत नहीं दिखा है। क्या बीईए के शब्दकोश में केवल अनुच्छेद 19(अ)(1) आता है, 19(अ)(2) नहीं?
- अभिव्यक्ति की आज़ादी निरपेक्ष नहीं है। संविधान में इसके ऊपर अनुच्छेद 19(अ)(2) के तहत तर्कपूर्ण बंदिशें लगाई गई हैं। कहा गया है कि यह आज़ादी निम्न कारणों से बाधित की जा सकती है- भारत की सम्प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्य से मित्रवत रिश्ते, सार्वजनिक व्यवस्था, शुचिता, नैतिकता, अदालत की अवमानना, मानहानि, हिंसा को उकसावा। इस आधार पर देखें तो रोहित सरदाना का हर अगला कार्यक्रम किसी न किसी श्रेणी में ज़रूर आता है और विशेष रूप से जिस ट्वीट पर बवाल मचा है, क्या वह ”हिंसा को उकसावा” नहीं है?
- सरदाना का ट्वीट आने से पहले चूंकि ‘सेक्सी दुर्गा’ का नाम ‘एस दुर्गा’ आधिकारिक रूप से किया जा चुका था और केरल उच्च न्यायालय ने निर्देशक की याचिका पर सुनवाई करते सूचना और प्रसारण मंत्रालय को फिल्म महोत्सव में फिल्म के प्रदर्शन का आदेश दे दिया था, लिहाजा रोहित सरदाना का ट्वीट ”सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने” और समुदाय विशेष की ओर से ”हिंसा को उकसाने” की श्रेणी में आता है। क्या बीईए इसके बाद भी सरदाना के ‘ट्वीट’ के पक्ष में खड़ा होगा?
- बीईए के अध्यक्ष हैं आजतक के संपादक सुप्रिय प्रसाद। रोहित सरदाना आजतक में काम करते हैं। क्या रोहित के पक्ष में बयान जारी करना सुप्रिय प्रसाद के संदर्भ में हितों का टकराव नहीं है? जो बयान जारी किया गया है, उस पर खुद सुप्रिय प्रसाद के दस्तखत हैं। रोहित सरदाना को अभी आजतक में आए महीना भर भी नहीं हुआ है और यह बात जगजाहिर है कि उन्हें ज़ी न्यूज़ से आजतक में 5 बजे वाले स्लॉट की टीआरपी बढ़ाने के लिए लाया गया है। ज़ाहिर है इस विवाद से ‘दंगल’ की टीआरपी बढ़ी है और सरदाना के ज़ी छोड़ने के कारण ‘ताल ठोंक के’ की टीआरपी घटी है। तो क्यों न पूछा जाए कि क्या बीईए नाम की संस्था आजतक के कारोबारी हितों के लिए काम कर रही है?
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रोहित सरदाना से जुड़े विवाद के मामले में एक बात बिलकुल साफ़ कर दी जानी चाहिए। उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के खिलाफ निकल रहे फ़तवों का विरोध करना एक बात है, लेकिन रोहित के ट्वीट के पक्ष में खड़ा रहना दूसरी बात। दोनों में फ़र्क है। किसी भी पत्रकार को धमकी, फ़तवा स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसलिए रोहित सरदाना की जान की कीमत अभिव्यक्ति की आज़ादी के अनुच्छेद के लिहाज से उतनी ही कीमती होगी जितनी इस देश के किसी भी नागरिक की, लेकिन सरदाना की अभिव्यक्ति पर 19(अ)(2) के तहत तर्कपूर्ण बंदिशें भी लागू हैं। यह नहीं भूलना चाहिए। हमलों की सूरत में सरदाना के साथ खड़े होने के साथ ही यह बात कही जानी ज़रूरी है कि सरदाना का ट्वीट माहौल बिगाड़ने और हिंसा को उकसाने के लिए था।
अगर बीईए इतना ही ईमानदार है, तो उसे सरदाना के शो पर भी टिप्पणी करनी चाहिए जो हर रोज़ किसी न किसी संवैधानिक मूल्य की धज्जियां उड़ाता दिखता है। बीईए को यह भी देखना चाहिए कि रोहित सरदाना के साथ इस विवाद में वे कौन से लोग खड़े हैं जिन्होंने खुद कभी अभिव्यक्ति की आज़ादी की शुचिता का सम्मान नहीं किया है। एक उदाहरण भाजपा के गिरिराज सिंह हैं। ऐसे ढेरों उदाहरण सरदाना के पक्ष में उनकी ट्विटर टाइमलाइन पर मिल जाएंगे जिन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी को सिर के बल खड़ा कर दिया है। सरदाना पर कोई भी हमला निंदनीय है, लेकिन सरदाना द्वारा स्क्रीन पर रोज़ किया जाने वाला हमला भी उतना ही निंदनीय है।
जब तक दोनों बातें साथ नहीं कही जाएंगी, तब तक सरदाना की अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा एकतरफ़ा और बौद्धिक बेईमानी होगी। बीईए ने सरदाना के ट्वीट के समर्थन में बात कर के दरअसल मूर्खता का परिचय दिया है। वह अगर सीधे उन्हें धमकी और फ़तवे देने वालों की निंदा करता तो काम चल जाता लेकिन सरदाना के ट्वीट को ”भारत के मनोरंजन उद्योग में अभिव्यक्ति की आज़ादी के असंतुलित इस्तेमाल पर चिंता” का नाम देकर उसने खुद को हंसी का पात्र बना दिया है।
साथ ही रोहित सरदाना की आजतक में लगी नौकरी के पीछे की राजनीति और सुप्रिय प्रसाद के बीईए अध्यक्ष होने से पैदा हुआ हितों का टकराव- ये सब मिलकर एक डिज़ाइन यानी साजिश की बू देता है। बहुत संभव है कि कल को यह बात सामने आवे कि सारा का सारा विवाद ‘दंगल’ की टीआरपी बढ़ाने के लिए खड़ा किया गया था और आजतक व ज़ी न्यूज़ की कारोबारी रंजिश में रोहित सरदाना की लोकप्रियता का लाभ इस विवाद के जरिये उठाया गया। हो सकता है ऐसा न भी हो, लेकिन दोनों ही सूरतों में बीईए को मुंह छुपाने को जगह नहीं होगी।