न्यायधीशों की एक ख़ासियत उनकी गोपनीयता भी होती है। सार्वजनिक जीवन में उनकी कम उपस्थिति उनकी गरिमा के साथ उनकी सुरक्षा से भी जुड़ा मसला है। ऐसे में बाबा गुरमीत राम रहीम को सज़ा सुनाने वाले जज जगदीप सिंह के बारे में विस्तार से तस्वीर सहित छापा जाना कहाँ तक ठीक है। ख़ासतौर पर जब डेरा समर्थक पागलपन की तमाम मिसालें पेश कर रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि यह काम बीबीसी जैसे समाचार संस्थान ने किया है।
हरियाणा के सिरसा में सोमवार को भी कर्फ़्यू रहेगा। मोबाइल इंटरनेट सेवाएँ बंद हैं। बलात्कार के दोषी क़रार दिए गए बाबा गुरमीत सिंह राम रहीम को सज़ा सुनाने के लिए रोहतक की जेल में ही अदालत बैठेगी।
समझा जा सकता है कि सीबीआई अदालत के जज जगदीप सिंह पर कितना दबाव है। पंचकूला कोर्ट में उनके फ़ेसला सुनाते ही आग लग गई थी।
कहने की ज़रूरत नहीं कि जज जगदीप सिंह की सुरक्षा एक अहम मसला है। लेकिन बीबीसी हिंदी ने ना सिर्फ़ उनकी तस्वीर छापी है, बल्कि यह भी बताया है कि वहाँ कहाँ के हैं और कहाँ पढ़े-लिखे। यानी जज साहब की शक्लो सूरत से लेकर उनके घर-परिवार तक की जानकारी डेराभक्तों को हो गई है।
हो सकता है कि बीबीसी संवाददाता और संपादक यह तर्क दें कि उन्होंने बस सूचना देने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी की। हाँलाकि बीबीसी से ही उम्मीद की जाती है कि वह ऐसे मसलों पर संयम दिखाए।
ऐसा नहीं है कि ऐसी ग़लती सिर्फ़ बीबीसी ने की है। कई चैनलों और अख़बारों ने भी यही किया है। लेकिन उनकी बीबीसी से तुलना नहीं की जा सकती। बीबीसी जिन मान्यताओं और मर्यादाओं के लिए जाना जाता है, वही उसकी कसौटी हैं ।
मशहूर व्यंग्यकार और वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ ने चिंता जताई है कि जिस तरह मीडिया जज जगदीप सिंह को हीरो बना रहा है, उससे उनकी सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है। पढ़िए–