हैदाराबाद में लड़कियों ने सीखा था मार्शल आर्ट, ‘असमिया प्रतिदिन’ ने बताया जेहादी ट्रेनिंग !

नई दिल्ली। राष्ट्रीय मीडिया में प्रसारित की जा रही ख़बरों ने देश के भीतर उन्माद को ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ाया है, लेकिन इस घिनौनी पत्रकारिता में अब क्षेत्रीय मीडिया भी उतर चुका है। पूर्वोत्तर राज्यों में चलने वाले अख़बार और चैनल अफ़वाहों को ख़बर बनाकर प्रसारित-प्रकाशित कर रहे हैं। इस्लामिक चरमपंथ और बांग्लादेश से आतंकियों की घुसपैठ की फ़र्ज़ी ख़बर चलाने पर असम और मेघालय के डीजीपी को बयान जारी कर स्थिति साफ करनी पड़ी है लेकिन स्थानीय मीडिया के रवैया वही है। तथ्यों की बजाय अफ़वाहों के आधार पर सनसनी परोसी जा रही है। नया मामला असम के सबसे बड़े अख़बार ‘असमिया प्रतिदिन’ का है जिसने जेहादी शिविर की फर्ज़ी फोटो और ख़बर छापी है।

11 जुलाई को इस अख़बार ने पहले पन्ने पर कनक चंद्र डेका की बायलाइन से एक ख़बर ‘चार (नदी द्वीप) पर जेहादियों का जाल’ छापी है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि असम के दुरंग समेत मुस्लिम बहुल इलाक़ों में ‘जेहादियों का जाल’ फैलाया जा रहा है। रिपोर्ट कहा गया है कि असम में जिहाद के लिए खाड़ी देशों में ट्रेनिंग चल रही है। सोशल मीडिया के ज़रिए नौजवानों को जोड़ा जा रहा है। उन्हें रुपयों का लालच देकर आतंकवाद की तरफ ले जाया जा रहा है। डेका ने अपनी रिपोर्ट की प्रमाणिकता के लिए एक ‘जेहादी ट्रेनिंग कैंप’ की फोटो भी छापी है। इसमें स्कूल यूनिफॉर्म में एक मुस्लिम छात्रा लाठी भाँजनने की कला सीख रही है।

दरअसल, कनक चंद्र डेका की ये रिपोर्ट तथ्यों की बजाय वाट्सएप के ज़रिए फैलाई जा रही अफ़वाहों पर आधारित है। तस्वीर हैदराबाद के मशहूर सेंट माज़ पब्लिक स्कूल के ‘सेल्फ़ डिफ़ेंस प्रोग्राम’ की है जिसे फ़रवरी 2011 में स्कूल के फ़ेसबुक पेज पर अपलोड किया गया था। सेंट माज़ स्कूल इस ‘सेल्फ़ डिफेंस प्रोग्राम’ की वजह से कई बार मीडिया की सुर्ख़ियों में आ चुका है। साउथ के न्यूज़ चैनल TV9 के अलावा मशहूर वेबसाइट्स MVSLIM और SCOOPWHOOP  इस सेल्फ डिफेंस पर स्टोरी कर चुके हैं लेकिन ‘असमिया प्रतिदिन’ ने इसे जेहादी ट्रेनिंग कैंप बना दिया। (https://www.scoopwhoop.com/School-Kids-Martial-Arts/), वह भी पाँच साल बाद।

इस फर्ज़ी स्टोरी की हक़ीक़त गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एडवोकेट अमन वदूद ने अपने फ़ेसबुक हैंडल पर शेयर करके बताया था। ‘मीडिया विजिल’ को उन्होंने बताया कि इस्लामिक चरमपंथ, घुसपैठ के बाद अब इस्लामिक जेहाद के बारे में अफ़वाहें फैलाकर ख़बर बनाई जा रही हैं। रिपोर्टर मनमाने तरीक़े से नई मस्जिदों के निर्माण और कथित घुसपैठ की वजह आबादी घटने-बढ़ने की फर्ज़ी रिपोर्ट्स छाप रहे हैं। बार-बार ऐसी रिपोर्ट्स दहशत पैदा करने के इरादे से लिखी जा रही हैं जो पूरे असम में एक ख़ास तरह का तनाव पैदा कर रही हैं।

असमिया प्रतिदिन का मालिक जयंत बरुआ है। ये शख़्स वास्तव में क्या है, ये डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी के अस्सिटेंट प्रोफेसर पार्थ प्रतिम बोरा के एक पुराने आर्टिकल ‘Tame Media Mafia of Assam’ से पता चलता है। इसमें लिखा गया है कि 2011 में जब उल्फा समर्थकों ने सरकार से बातचीत और राज्य के कारोबार में सक्रिय होने की घोषणा की तो असम का सारा मीडिया इसके ख़िलाफ़ हो गया। वजह यह थी कि मीडिया मालिकान ख़ुद अवैध धंधों में लगे हुए हैं। उल्फा के आने से उनका कारोबार सीधे तौर पर प्रभावित होता। जयंत बरुआ के बारे में पार्थ लिखते हैं, ‘असम में सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले दैनिक अख़बार ‘असमिया प्रतिदिन’ को असम का सबसे बड़ा ठग चलाता है। ऐसा शातिर माफ़िया ठेकेदार असम में पहले कभी नहीं हुआ। अख़बार को हथियार बनाकर ब्लैकमेलिंग करने के साथ-साथ हर बुरे काम में उसका नाम रहा है।’ (https://www.timesofassam.com/headlines/tame-media-mafia-of-assam/)

अमन वदूद कहते हैं कि ‘असमिया प्रतिदिन’ या इस समूह का समाचार चैनल घोषित तौर पर ‘राष्ट्रवादी’ हैं। चूंकि सूबे में अब सरकार बीजेपी की है तो उन्हें ख़ुश रखने के लिए ख़बरों की जगह राष्ट्रवादी ज़हर बेचा जा रहा है। अमन वदूद कहते हैं कि असम में चुनाव की घोषणा होने के साथ ही स्थानीय मीडिया रातों-रात ज़हरीली ख़बरें बेचने लगा। तब अख़बार और टीवी चैनलों पर अवैध घुसपैठ पर लगातार स्टोरी करके ध्रुवीकरण की जमकर कोशिश की गई।

यह सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि 1-2 जुलाई की रात ढाका हमले के बाद से असम का मीडिया इस्लामिक जेहाद पर मनगढ़ंत स्टोरी प्रसारित कर रहा है। सोमवार को असम के टीवी चैनलों पर बांग्ला भाषी आईएस चरमपंथी का एक वीडियो दिखाया गया। चरमपंथी इसमें एक शब्द ‘अल-शाम’ बोलते हुए हमले की धमकी देता है। अमन ने बताया कि चैनलों ने ‘अल-शाम’ को जानबूझकर ‘असम’ कहकर दिखाया और ये भी दावा करने लगे कि अब इस्लामिक स्टेट के लड़ाके असम पर भी हमला करने की तैयारी में हैं। राज्य के डीजीपी डीजीपी मुकेश सहाय ने 12 जुलाई को प्रेस रिलीज़ जारीकर बताया कि चरमपंथी ‘अल-शाम’ बोल रहा है ना कि ‘असम।’ असम के चैनलों और अख़बारों ने इस स्पष्टीकरण के बाद ही इस अफ़वाह का पीछा छोड़ा। (http://timesofindia.indiatimes.com/city/guwahati/IS-video-sparks-panic-in-Assam/articleshow/53184563.cms)

इससे पहले जुलाई के पहले हफ़्ते में बांग्लादेश से पांच आतंकियों के मेघालय सीमा से घुसने की फर्ज़ी अफ़वाह फैलाई गई थी। इसमें कहा गया था कि दक्षिण मेघालय की अंतरराष्ट्रीय सीमा से पांच इस्लामिक आतंकी देश में घुस आए हैं। सभी असम में हमला करने की फिराक में हैं। इस अफ़वाह के सहारे भी असम मीडिया ने दुष्प्रचार शुरू कर दिया गया था। मेघालय के डीजीपी एस.के जैन ने 7 जुलाई को बयान जारी कर इसे अफ़वाह करार दिया था। (http://indiatoday.intoday.in/story/no-truth-in-jihadhi-influx-rumours-meghalaya-dgp/1/710015.html)

कुल मिलाकर असम में ऐसी ज़हरीली ख़बरों की बाढ़ आ गई है। हालात किस कदर भयावह हैं, ये दिल्ली में रहने वाले असम के एक्टिविस्ट बोनोजित हुसैन के फ़ेसबुक स्टेटस से पता चलता है। उन्होंने लिखा, ‘मैंने असमिया चैनल प्राग न्यूज़ की प्राइम टाइम बहस में कहा और अब यहां फ़ेसबुक पर भी दोहरा रहा हूं। असम के अख़बार और चैनलों में इस्लामिक चरमपंथ को इस स्तर पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है कि अगर कोई सिर्फ़ घर में बैठकर अख़बार पढ़े और न्यूज़ चैनल देखे तो उसे लगेगा कि ये असम नहीं इराक़ या सीरिया है।’

इन तमाम फर्ज़ी ख़बरों से असमिया मीडिया के इरादे साफ़ हैं। अगर इसे समय रहते रोका न गया तो अफ़वाहों के आधार पर उन्मादी ख़बरें फैलाने की बीमारी पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों को भी चपेट में ले सकती है।

.शाहनवाज़ मलिक

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