‘हिंदू राष्ट्रवाद’ का झंडा बुलंद करते एबीपी ने आरक्षण के नाम पर संविधान की घंटी बजा दी!

 

भरतीय चैनलों और अख़बारों में सवर्ण वर्चस्व की बात अब तमाम शोधपत्रों का हिस्सा है, लेकिन इतनी उम्मीद तो फिर भी की जाती है कि तथ्यों और संवैधानिक मान्यताओं की बात आने पर पत्रकार अपनी कबीलाई मानसिकता को पीछे रख देंगे। अफ़सोस कि शर्म लिहाज का वह आभासी पर्दा भी दिनों दिन छीजता जा रहा है। कभी संतुलित कहे जाने वाले और आज कल टीआरपी के संकट से जूझ रहे, आनंद बाज़ार पत्रिका ग्रुप के हिंदी चैनल एबीपी न्यूज़ का 25 जुलाई का शो-घंटी बजाओ इसकी मिसाल है।

आनंद बाज़ार पत्रिका का ज़िक्र इसलिए क्योंकि उसका अंग्रेज़ी दैनिक द टेलीग्राफ़,इस कठिन समय में भी पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों पर टिके रहने के लिए सराहा जाता है।

तो बात घंटी बजाओ की करते हैं जिसे अनुराग मुस्कान नाम के एक ऐंकर महोदय प्रस्तुत करते हैं। जैसा कि आप मुख्य तस्वीर में देख रहे हैं, विषय था- हिंदूवादी राष्ट्रवाद का जवाब है आरक्षण आंदोलन?

शो के निशाने पर था मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र में शुरू हुआ आंदोलन। चैनल अगर आंदोलन के हिंसक होने पर सवाल उठाता, इस माँग की प्रासंगिकता पर चर्चा करता, तो कोई ऐतराज़ नहीं हो सकता था, लेकिन जैसा कि विषय से ही स्पष्ट है, उसे तक़लीफ़ थी कि आरक्षण आंदोलन दरअसल, देश में मज़बूत हो रही हिंदू राष्ट्रवादी गोलबंदी को कमज़ोर करने के लिए है।

क्या एबीपी यह बताएगा कि हिंदू राष्ट्रवाद, देश के हित में कैसे है और इसे क्यों कमज़ोर नहीं होना चाहिए? क्या उसे वाक़ई नहीं पता कि भारतीय संविधान हिंदू राष्ट्रवाद, मुस्लिम राष्ट्रवाद, सिख राष्ट्रवाद या ईसाई राष्ट्रवाद की इजाज़त नहीं देता। यहाँ सिर्फ भारतीय राष्ट्रवाद के लिए स्थान है जिसका आधार धर्म नहीं भारतीय संविधान है।  लगता है कि इस कार्यक्रम के प्रस्तोता से लेकर प्रोड्यूसर और संपादक तक आरएसएस की शाखा में पढ़ाए गए राष्ट्रवाद के ज़हरीले पाठ को घोट चुके हैं। तभी उन्हें संविधान और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सकंल्पों का मज़ाक उड़ाने वाला ऐसा शीर्षक रखते हुए  लज्जा नहीं आई?

वैसे, पूरे कार्यक्रम की स्क्रिप्ट चीख़-चीख़कर यह भी बता रही थी कि एबीपी का हिंदू राष्ट्रवाद दरअसल ‘सवर्णों का राष्ट्रवाद’ है। जिस बेशर्मी से कार्यक्रम के दौरान आरक्षण जैसे संवैधानिक प्रावधान को लेकर झूठ बोला गया, वह सिर्फ़ नासमझी नहीं, सीने में सुलग रहे सवर्ण वर्चस्व के ज़हर का मुज़ाहरा था।

कार्यक्रम की शुरुआत में ही ऐंकर अनुराग मुस्कान सवाल उठाते हैं— जो आरक्षण शोषित वंचित और पिछडे वर्ग में सुधार लाने का एक ज़रिया था, उस आरक्षण के अपने अधिकार के लिए शहरों को बंधक बनाने की क्य वजह है?

ध्यान से देखिए, आरक्षण को संवैधानिक अधिकार नहीं, ‘सुधार’ घोषित किया गया है और आगे पूरे कार्यक्रम के दौरान यही टोन बनी रहती है। लगता है कि ऐंकर महोदय ने न गाँधी-आंबेडकर के बीच हुए पूना पैक्ट को पढ़ा है और न संविधान सभी की बहसों से गुज़रे हैं। उन्हें तो बस यह दर्द है कि आरक्षण को लेकर चल रहे आंदोलन से देश में बने ‘हिंदूवादी माहौल’ को नुकसान होगा।

कार्यक्रम में बाक़ायदा आश्चर्य जताया गया कि जो शिवाजी हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं, उनका नाम लेकर आरक्षण का आंदोलन चलाया जा रहा है। शायद एबीपी के संपादकों को यह पता नहीं कि शिवाजी ब्राह्मणवादी श्रेष्ठताबोध का भी शिकार हुए थे जब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने उन्हें शूद्र कहकर, उनका राजतिलक करने से इंकार कर दिया था। इस काम के लिए बनारस से गागाभट्ट को बुलाया गया था, जिन्होंने राजतिलक के एवज़ में शिवाजी का ख़ज़ाना खाली करा लिया था। …और आरक्षण भी आर्थिक उन्नति का कार्यक्रम न होकर सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने का संवैधानिक उपाय है।

 

 

कार्यक्रम में बार-बार कहा जाता रहा कि  ‘आरक्षण से देश की शांति नष्ट, हिंदूवादी राजनीति को तोड़ने की कोशिश है…हिंदू वोट बैंक को धुआँ करने का हिस्सा है..”

आरक्षण को लेकर शो बनाने वालों की जातिगत घृणा छिपती नहीं। शो के बीच में मुंबई के एबीपी संवाददाता जीतेंद्र दीक्षित आकर कहते हैं–

‘सवाल ये कि जिस आरक्षण को सामाजिक सुधार के लिए लाया गया था, उसे अधिकार बताकर हिंसक आंदोलन की जरूरत क्यों..सवाल ये कि मराठा आरक्षण चाहते क्यों हैं, सवाल ये कि क्या मराठा इतने कमज़ोर हैं कि उसे आरक्षण की बैसाखी की ज़रूरत है…’

 

ग़ौर कीजिए, आरक्षण को लेकर चैनल बैसाखी शब्द का प्रयोग कर रहा है जो बेहद आपत्तिजनक है। इस बीच वह अपनी रिसर्च का हवाला देते हुए बताता है कि मराठा कैसे ब्राह्मणों के बाद सबसे मज़े में हैं। संसाधन और प्रभुत्व के लिहाज़ से। (ब्राह्मण बहुत कम आबादी के बावजूद सर्वाधिक प्रभुत्वशाली क्यों हैं, इसे जानने में चैनल की रूचि नहीं हैं।) उसकी रुचि जहाँ है, उसे संवाददाता गणेश ठाकुर प्रकट कर देते हैं। वे कहते हैं–

“ऐसे में एक सवाल उठता है कि जो मराठा सामाजिक आर्थिक और राजनितिक रूप से महाराष्ट्र में मज़बूत माने जाते रहे, वे मराठा आरक्षण की बैसाखी पाने के लिए हिंसक आंदोलन का सहारा क्यों ले रहे हैं। क्या इसकी वजह है आरक्षण की आड़ में हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद को जवाब देना..”

और फिर हद पार करते हुए वॉयस ओवर गूँजता है–

देश में जब हिंदू मुस्लिम की सीधी राजनीति की जमीन पर चुनावी अखाड़ा तैयार हो रहा है, तब महाराष्ट्र में हाथ में भगवा झंडे लेकर जुबां पर जय शिवाजी के नारे लगाकर आंदोलनकारी आरक्षण की माँग करने निकलते हैं…

ग़ौर कीजिए इस भाषा पर –‘देश में जब हिंदू मुस्लिम की सीधी राजनीति…..’

ऐसा लगता है कि ‘हिंदू-मुस्लिम की सीधी राजनीति’ देश निर्माण का कोई यज्ञ है जिसमें ‘आरक्षण माँगने वाले राक्षस’ विघ्न डाल रहे हैं..

चैनल इस बात का एक बार भी जिक्र भी नहीं करता कि खुद बीजेपी ने चुनाव के समय मराठा आरक्षण का वादा किया था। संजय राउत, शिवसेना के सांसद इसकी याद भी दिलाते हैं  लेकिन शो की पूरी स्क्रिप्ट में बीजेपी की इस वादाख़िलाफी की कोई आलोचना नहीं होती। न ही आरक्षण माँग रहे किसी मराठा आंदोलनकारी का कोई बयान ही दिखाया जाता है। बस चैनल यही बताने पर उतारू रहता है कि सिर्फ़ महाराष्ट्र नहीं अन्य राज्यों में भी यही सब करके हिंदूवादी राष्ट्रवाद को कमज़ोर करने की कोशिश हो रही है।

 

 

हद तो यह होती है जब चैनल यह बताता है कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फ़ीसदी आरक्षण की सीमा रखने का आदेश दिया था (जबकि यह सिर्फ़ राय थी) और यह भी याद नहीं रखता कि उसकी स्क्रिप्ट में ही महाराष्ट्र में 52 फ़ीसदी आरक्षण का ज़िक्र है। (तमिलनाडु में तो 69 फ़ीसदी है।)

 

 

आरक्षण के बारे में सामान्य जानकारी रखने वाले भी जानते हैं कि यह ग़रीबी दूर करने का उपाय नहीं है। यह शासन प्रशासन में भागीदारी का सिद्धांत है । इसका आर्थिक आधार असंवैधानिक है। आर्थिक आधार सीधे रोज़गार की माँग से जुड़ता है और बेरोज़गारी के लिए सराकार की नीतियाँ ज़िम्मेदार होती हैं। लेकिन एबीपी सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती जा रही बेरोज़गारी और हर  साल दो करोड़ लोगों को रोज़गार दिलाने के मोदी सरकार के वादे पर चूँ भी नहीं बोलता।

दिलचस्प तो यह है कि वह तमाम राज्यों में आरक्षण माँग रहे समुदायों की आर्थिक स्थिति का बयान करते हुए, उनकी माँग को ग़लत बताता है और फिर  आर्थिक आधार पर सभी को आरक्षण देने की सिफ़ारिश करता है।

 

तो इस तरह एबीपी न्यूज़ के क़ाबिल प्रोड्यूसरों और संपादकों की टीम संविधान और संवैधानिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ा देते हैं। इंडिया टुडे के पूर्व संपादक और कई चैनलों  में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके दिलीप मंडल ने आरक्षण को लेकर एक पोस्ट लिखी है जो ऐसे तमाम झूठ की कलई उतारता है, पर समस्या यह है कि यह अज्ञान से ज़्यादा अहंकार का मामला है जिसके पीछे हिंदू राष्ट्रवाद का झंडा उठाए ब्राह्मणवाद अपनी पूरी ताक़त के साथ अट्टहास कर रहा है। डॉ.आंबेडकर ने इसीलिए हिंदू राष्ट्र को दलितों के लिए ही नहीं लोकतंत्र के लिए भी विपत्ति बताया था।

बहरहाल, पढ़िए दिलीप मंडल की पोस्ट–

 

मराठा, पटेल, जाट, कपू आरक्षण आंदोलन पर मेरी राय-

भारतीय संविधान का एक-एक शब्द मैंने पढ़ा है. आपमें से भी कई लोगों ने पढ़ा होगा.

कहां किस पेज पर, किस अनुच्छेद में लिखा है कि आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं हो सकता?

झूठ बोल रही है सरकार.

दरअसल वह यह बात बोल भी नहीं रही है. सिर्फ भ्रम फैलाकर रखा गया है.

तमिलनाडु में 69% परसेंट आरक्षण है. संविधान के तहत है. सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के साथ है.

तमिलनाडु भारत में ही है.

बालाजी केस के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने राय दी थी कि आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

यह राय है. कोई आदेश नहीं.

पढ़िए जजमेंट – “The interests of weaker sections of society, which are a first charge on the States and the Centre, have to be adjusted with the interests of the community as a whole. Speaking generally and in a broad way, a special provision should be less than 50%. The actual percentage must depend upon the relevant prevailing circumstances in each case. ”

और अगर कभी कोई आदेश आए भी तो सुप्रीम कोर्ट संविधान से ऊपर है क्या?

60% ओबीसी के लिए 27% आरक्षण बहुत कम है. इसमें और किसी को लाने से भीड़ और बढ़ेगी. ओबीसी का हक मारा जाएगा.

जिन जातियों की सामाजिक और शैक्षणिक हालत बुरी है और सरकार नौकरियों में जो पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, उन्हें अलग से आरक्षण देने में कोई दोष नहीं है. इसके लिए जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए जाएं.

लेकिन नए समुदायों को आरक्षण OBC कोटे के अंदर नहीं.

 

 

 

बर्बरीक

 



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