दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में मीडिया के भारी जमावड़े के बीच सोमवार की शाम ”ब्लैकआउट इन बस्तर” नामक रिपोर्ट का अनावरण किया गया. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ से पत्रकार कमल शुक्ला, सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया और जगदलपुर लीगल एड की अधिवक्ता ईशा खंडेलवाल भी मौजूद रहे.
एमनेस्टी की रिपोर्ट का लोकार्पण करते हुए संस्था के कार्यकारी निदेशक और वरिष्ठ अंग्रेजी पत्रकार आकार पटेल ने कहा, “स्थानीय प्रशासन की हालत इतनी बुरी है कि पुलिस स्वयं ही मिथ्या दोषारोपण कर के पत्रकारों को गिरफ्तार कर रही है. राज्य सरकार द्वारा मानव अधिकार के परिरक्षकों को यह अशुभ समाचार स्पष्ट रूप से दिया जा रहा है कि या तो चुप रहें नहीं तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें”.
बस्तर के अखबार ‘भूमकाल समाचार’ के संपादक कमल शुक्ला ने कहा, “हमें हमेशा राज्य के पुलिसकर्मियों द्वारा यह याद दिलाया जाता है कि अगर हमने सरकार के बनाए नियमों का उलंघन किया तो हमारी जान को खतरा है और अब राज्य द्वारा समर्थित स्वयंभू गुंडा दस्तों (vigilante groups) के आ जाने से हम जैसे स्वतंत्र पत्रकारों के लिए बस्तर में काम करना और भी मुश्किल हो गया हैं”.
इस साल फरवरी में जगदलपुर कानूनी सहायता समूह (जैगलेग) के मानव अधिकार अधिवक्ता, जो आदिवासियों को निशुल्क सेवा प्रदान करते हैं और प्री-ट्रायल बंदियों की कानूनी लड़ाइयां लड़ते हैं, उन्हें भी जगदलपुर पुलिस के दवाब की वजह से अपने स्थानीय निवास को छोड़ना पड़ा था. जैगलेग की एक वकील ईशा खण्डेलवाल ने कहा, “छत्तीसगढ़ में पुलिस का साम्राज्य चलता है. जो कार्य पुलिस स्वयं/कानूनी तौर पर नहीं कर सकती, वह सारे काम वह गुंडा दस्तों द्वारा करवाती है. ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि ये गुंडे खुले आम लोगों को धमकी देते हैं और परेशान करते हैं. छत्तीसगढ़ सरकार पर प्रश्न करने वालों के लिए यह एक भयप्रद राज्य बन गया हैं”.
(एमनेस्टी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)
BLACKOUT IN BASTAR रिपोर्ट को अंग्रेजी में यहाँ पढ़ें:
Blackout-in-Bastar-English
“बस्तर अँधेरे में” रिपोर्ट को हिंदी में यहाँ पढ़ें:
Bastar-Andhere-Mein